देश भले डिजिटल होने और 5G तकनीक की बात कर रहा है, लेकिन आज भी तकनीक के मामले में काफी सुधार की जरूरत है. निजी बैंक और संस्थान हाईटेक सुविधा अपने ग्राहकों को दे रहे हैं, जबकि सरकारी संस्थानों में मूलभूत जरूरी सुविधाओं का घोर अभाव अभी भी देखने को मिल रहे हैं. सरायकेला जिले के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों के पोस्टऑफिस अभी भी तकनीक के मामले में काफी पीछे हैं. यहां आज डिजीटल युग में सुविधाओं का हवाला देकर उपभोक्ताओं को बैरंग वापस कर दिया जाता है. वैसे हम जिस पोस्ट ऑफिस की बात कर रहे हैं वह गम्हरिया पोस्ट ऑफिस की है. वैश्विक महामारी के दौर में शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में पार्सल करने की सुविधा इस पोस्ट ऑफिस में उपलब्ध नहीं है. यहां के पोस्ट मास्टर ग्राहकों को पार्सल के बदले रजिस्ट्री करने के लिए प्रेरित करते हैं. जो काम 70 रुपए में होने हैं, उसके लिए उपभोक्ताओं को 212 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं. बताया जाता है, कि यह शाखा ऑनलाइन शाखा नहीं है, एक तरफ प्रधानमंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री डिजिटल भारत का हवाला देते हैं. दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों के पोस्ट ऑफिस में जरूरी मूलभूत सुविधाएं तक मौजूद नहीं है. औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण ज्यादातर मजदूर वर्ग के कामगार इस क्षेत्र में रहते हैं, उनके लिए पोस्ट ऑफिस एक सुरक्षित संसाधन माना जाता है, लेकिन तकनीक के इस दौर में पिछड़े होने के कारण उपभोक्ताओं को इसका लाभ नहीं मिल पाता है. हैरान करने वाली बात ये है, कि पोस्ट ऑफिस के ठीक सामने वर्ल्ड क्लास टाटा स्टील की अनुषंगी इकाई स्थापित है, लेकिन इस पोस्ट ऑफिस में जरूरी मूलभूत सुविधाएं नहीं होने से साफ समझा जा सकता है, कि कारपोरेट तकनीक के मामले में काफी आगे निकल चुके हैं, लेकिन सरकारी तंत्र अभी भी पुराने पारंपरिक तरीके से काम कर रहे हैं. ऐसे में डिजिटल भारत का दावा करना बेमानी ही समझा जा सकता है.
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