चक्रधरपुर के विधायक सुखराम उरांव ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक ज्ञापन सौंपकर खरसावां शैली छऊ नृत्य के विकास एवं उसकी पहचान दिलाने का की मांग की। इस दौरान बाल एवं महिला विकास मंत्री जोबा मांझी ने भी मुख्यमंत्री को बताया कि न केवल खरसावां में बल्कि पश्चिमी सिंहभूम के सोनुआ, गोइलकेरा, मनोहरपुर, बंदगांव, चक्रधरपुर सहित कई अन्य प्रखंडों के सैकड़ों कलाकार खरसावाँ शैली छऊ का प्रदर्शन करते हैं। मुख्यमंत्री ने इस मामले को गंभीरता से लेकर तत्काल आवश्यक कार्यवाही करने का आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री को सौपे ज्ञापन में कहा गया है कि झारखंड, पश्चिम-बंगाल एवं ओडिशा के सीमावर्ती क्षेत्र में अवस्थित सरायकेला-खरसावां एवं पश्चिमी सिंहभूम जिले के सैकडों गावों में एक कला प्रचलित है, जिसे छऊ कहते हैं। यह कला न केवल क्षेत्र के कला प्रेमी जनता का मनोरंजन का साधन है बल्कि धार्मिक मान्यताओं एवं पूजा परंपराओं से जुडे रहने के कारण ईश अराधना का माध्यम भी है। चैत्र माह के प्रारंभ से ही गांव के चैपालों में आसर का निर्माण कर क्षेत्र के ग्रामीण इस कला का प्रदर्शन करते हैं। कोल्हान को केवल छऊ कला के माध्यम से सात पद्मश्री पुरस्कार दिला चुकी यह कला न केवल कोल्हान बल्कि झारखंड के लिए भी एक अमूल्य धरोहर है। यूनेस्को ने इस कला को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रुप में मान्यता दी है।
झारखंड में छऊ की तीन शैलियां हैं प्रचलित
विधायक सुखराम उरांव ने ज्ञापनं में कहा कि झारखंड में छऊ की तीन शैलियां प्रचलित हैं। सरायकेला शैली-सरायकेला-खरसावां जिले के सरायकेला एवं गम्हरिया प्रखंड के कई गावों में, मानभूम शैली- सरायकेला-खरसावां जिले के नीमडीह, चांडिल, ईचागढ प्रखंड के विभिन्न गावों में जबकि खरसावां शैली का प्रचलन – सरायकेला-खरसावां जिले के खरसावां, कुचाई प्रखंड एवं पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर, बंदगांव, मनोहरपुर, सोनुवा, नोवामुडी प्रखंड के सैकडों गावों में हैं। बसंत के आगमन के साथ ही गांव के युवा पारंपरिक साज ढोल, नगाडे, बांसुरी व शहनाई के साथ इस कला का प्रदर्शन करते हैं।
खरसावां शैली छऊ नृत्य की पहचान और उत्थान की मांग
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से विशेषकर खरसावां शैली छऊ नृत्य की पहचान और इसके उत्थान की मांग की है। जिसमें कहा गया है कि इस क्षेत्रीय कला में नृत्य कला की सभी विशिष्टताऐं होने के वावजूद अब तक इसे वह पहचान नहीं मिल पाई है जिसका वह हकदार है।
खरसावां में 30 कलाकारों के प्रशिक्षण की व्यवस्था
कोल्हान यूनवर्सिटी के सिलेबस में छऊ की सरायकेला शैली को तो शमिल किया गया परन्तु खरसावां शैली को नहीं। मात्र सरायकेला में आयोजित होने वाले छऊ महोत्सव में इस शैली की प्रतियोगिता का आयोजन एवं कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग द्वारा खरसावां में 30 कलाकारों के प्रशिक्षण की व्यवस्था से ही इस कला का उत्थान संभव नहीं है। यद्यपि इस संस्थान मे वर्ष 2021 के अप्रैल माह से प्रशिक्षण कार्य बंद है एवं कलाकारों का बर्ष 2019-20 का मानदेय भी नहीं मिल पाया है। झारखंड के चंदन कियारी बोकारो में आयोजित छऊ चैपाल में केवल सरायकेला शैली को शामिल किया गया परन्तु खरसावां शैली को नहीें। इस दौरान मुख्य रूप से मंत्री चंपाई सोरेन, मंत्री बन्ना गुफ्ता, मंत्री जोबा माझी, विधायक दशरथ गागराई, विधायक सुखराम उरावं, विधायक दिपक बिरूवा, विधायक सविता महतो, विधायक निरल पुर्ति मौजूद थे।
छऊ कलाकारों की मुख्य मांगे
1. अप्रैल 2021 से बंद पडे छऊ नृत्य कला केन्द्र, खरसावां सहित अन्य केन्द्रों में प्रशिक्षण कार्य पुनः प्रारंभ किया जाय।
2. कलाकारों के बर्ष 2019-2020 के बकाया मानदेय का तत्काल भुगतान किया जाय।
3. कोल्हान यूनवर्सिटी के सिलेबस में छऊ की खरसावां शैली को भी शामिल किया जाय।
4. छऊ की अन्य शैलियों की तरह खरसावां शैली छऊ को भी झारखंड की कला शैलियों में शामिल कर इसके उत्थान एवं पहचान के लिए कार्य योजना बनाई जाय।
5. न केवल खरसावां बल्कि चक्रधरपुर, सोनुवा एवं बंदगांव प्रखंडों में भी खरसावां शैलीे कला केन्द्रों की स्थापना कर कलाकारों को प्रशिक्षण दिया जाय।
6. हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि अपनी कला संस्कृति को राज धर्म मानने वाली हमारी झारखंड सरकार झारखंड की अन्य कलाओं की तरह खरसावां शैली छऊ के विकास और पहचान बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाया।
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