आज हूल दिवस है. आजादी की लड़ाई से भी पहले फिरंगियों के खिलाफ लड़ी गयी सबसे बड़ी लड़ाई. वैसे इतिहास के पन्नो में 1857 के सिपाही विद्रोह को ही आजादी की लड़ाई का सबसे बड़ा आंदोलन का दर्जा प्राप्त है, मगर 1857 से 2 साल पहले ही यानी 1855 में ही सिदो- कान्हू, चांद- भैरव और फूलो- झानो के नेतृत्व में संथाल विद्रोह का उलगुलान हुआ जिसमें 50 से 60 हजार आदिवासियों ने जल- जंगल और जमीन के लिए फिरंगियों से लोहा लिया. अंततः अंग्रेजी हुकूमत ने 22 दिसंबर 1855 को संथाल परगना जिले का निर्माण किया और आदिवासियों की जमीन पर उनका अधिकार दिलाने के लिए सीएनटी एसपीटी एक्ट बनाया. 1874 में शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट बनाया जिसके कारण आज आदिवासियों की जमीन सुरक्षित है. इसी को हूल क्रांति के नाम से जाना जाता है. अलग राज्य बनने के बाद 30 जून को हूल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. इस मौके पर सिदो- कान्हू, चांद- भैरव और फूलो- झानो को याद कर सरकार और सरकारी महकमा अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं. इसी क्रम में बुधवार को जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र के भुइयांडीह पटेल नगर स्थित सिदो- कान्हू की प्रतिमा पर जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए हूल दिवस के प्रासंगिकता गिनाई. उन्होंने बताया, कि इतिहास के पन्नों पर झारखंड के आंदोलनकारियों को उचित स्थान नहीं मिला है. इतिहास को नए सिरे से परिभाषित करने की बात उन्होंने कही. उक्त स्थल के सौंदर्यीकरण की घोषणा उन्होंने की.
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