चाईबासा: राजनीति भी गजब के रंग दिखाती है. कल तक जो साथी होते हैं एक झटके में धूर विरोधी बन जाते हैं. कल तक एक थाली में खाने वाले नेता अचानक एकदूसरे के खिलाफ जहर उगलने लगते हैं. जनता इसे सही मान लेती है और अपने- अपने हिसाब से आंकलन करने लगते हैं.
झारखंड में भी इन दिनों ऐसा ही मौसम चल रहा है. यहां हर नेता शक के दायरे में है. किसी नेता को लेकर यह दावा करना बेमानी हो चला है कि वह किसी दल का स्थायी नेता है. बात मधु कोड़ा- गीता कोड़ा से शुरू करें या चंपाई सोरेन से. लोबिन हेम्ब्रम की करें या सीता सोरेन की. इन नेताओं के विषय में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ये बीजेपी का हिस्सा हो सकते हैं, मगर बदले सियासी घटनाक्रम में सभी नेता आज बीजेपी का हिस्सा है. वहीं बाबूलाल मरांडी की अगर बात करें तो उनका वो बयान ” कुतुब मीनार से कूदना पसंद करूंगा, मगर बीजेपी में वापस नहीं जाऊंगा” आज भी झारखंड की जनता भूली नहीं है. कल तक ये नेतागण बीजेपी को झोला भर- भर कर कोसते नजर आते थे मगर आज उनके लिए बीजेपी से बढ़िया पार्टी देश में कोई नहीं है.
यहां हम बात कर रहे हैं कोल्हान की यहां का सियासी पारा इन दोनों पूरा गर्म है. पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद यहां का सियासी पारा चढ़ने लगा है. चंपई सोरेन की गिनती ऐसे नेता के रूप में होती है जो हवाओं का रुख भी अपनी ओर मोड़ लेते हैं. तभी तो प्रचंड मोदी लहर में भी उन्होंने न केवल अपनी सीट निकाली बल्कि 2014 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान में बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया और 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य के पांच एसटी सीटों पर “इंडिया” गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत में अहम भूमिका निभाई, मगर उन्हें क्या पता था कि उन्हें उसी बीजेपी का हिस्सा बनना पड़ेगा जिस बीजेपी की धार को उन्होंने भोथरा किया. खैर अब चंपाई को एक और अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा. विधानसभा चुनाव सर पर है. उनपर न केवल अपनी सीट बचाने की चुनौती होगी, बल्कि कोल्हान में मुरझाए “कमल” को खिलाने की भी जवाबदेही होगी.
इधर चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद बीजेपी ने प्रदेश में परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की है. जिसका समापन 2 अक्टूबर को होना है. प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री तक. केंद्रीय मंत्रियों से लेकर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री तक झारखंड के परिवर्तन यात्रा का हिस्सा बन रहे हैं. इधर भाजपा के परिवर्तन यात्रा के समानांतर झारखंड सरकार ने “मंईयां सम्मान यात्रा” की शुरुआत की है. दोनों ही कार्यक्रमों में उमड़ते भीड़ को देखकर ऐसा लग रहा है कि इस बार मुकाबला कांटे का होना तय है. “मंईयां सम्मान यात्रा” की कमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायक पत्नी कल्पना सोरेन संभाल रही है. यूं कहे तो कल्पना सोरेन इस यात्रा की स्टार कैंपेनर भी है. इन दिनों वे कोल्हान दौरे पर हैं और अपने चीर- परिचित अंदाज में बीजेपी पर निशाना साध रही है और अपने पति यानी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को दोबारा सत्ता में वापसी कराने की जी तोड़ कोशिश में लगी है. उनके रोड शो और सभाओं में जनता को संबोधित करने का अंदाज लोगों को खूब भा रहा है. कोल्हान की जनता का इसका क्या असर पड़ेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताया. मगर कल्पना जिस अंदाज में बीजेपी पर हमले कर रही है उससे विरोधियों मैं खलबली मची हुई है. शनिवार को कल्पना सोरेन मंझगांव विधानसभा के दौरे पर पहुंची. यहां मंच से उन्होंने बीजेपी को खूब खरी- खोटी सुनाई. उनके हर एक संबोधन पर मौजूद भीड़ ने जमकर तालियां बजाई और अगली सरकार हेमंत सोरेन की बनाने का भरोसा दिलाया. मंच पर मौजूद मंत्री दीपिका सिंह पांडे ने तो पूर्व सांसद गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को “कोल्हान का कलंक” करार दे दिया. वही सभा के बाद जब मीडिया ने कल्पना सोरेन से चंपई सोरेन को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा “चंपई जी तो हमारे चाचा हैं उनके विषय में कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकती”. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जनता इसे किस रूप में ले. खैर अब कुछ ही दिन बचे हैं. कभी भी चुनाव आयोग की डुगडुगी बज सकती है. झारखंड का सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा इस पर राजनीतिक पंडित नजर गड़ाए हुए हैं. फिलहाल आप कल्पना सोरेन का वह बयान सुने और आकलन करें.
बाईट
कल्पना सोरेन (विधायक- गांडेय)