DESK आगामी 7 जनवरी को गम्हरिया स्थित पूर्व सांसद दिवंगत सुनील महतो समाधि स्थल से साकची आम बागान मैदान तक डहरे टुसू का आयोजन किया गया है. इस कार्यक्रम के माध्यम से एक तरफ जमशेदपुर समेत कोल्हान के लोग झारखंड आंदोलन के अगुवा क्रांतिकारी पूर्व सांसद दिवंगत सुनील महतो को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे. वहीं, दूसरी ओर अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण देने का एक आधुनिक प्रयोग होगा. निश्चित तौर पर इस कार्यक्रम से झारखंड की प्राचीन परंपरा टुसू पर्व के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ेगी. सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह डहरे टुसू क्या है ?
झारखंड में मकर संक्रांति पर पौष पर्व मनाने की प्राचीन परंपरा है. इसी समय पर टुसू पर्व मनाने की पुरानी परंपरा है. झारखंड तथा पश्चिम बंगाल में मूल निवासियों द्वारा टुसू पर्व मनाने के पीछे प्रामाणिक इतिहास भी है. धीरे- धीरे अब यह पर्व और परंपरा गौण हो चला है. आधुनिक तकनीक से उत्पन्न एंड्रॉयड स्मार्टफोन पर ऐसे पर्व त्यौहार सीमित हो गया है. जहां दो दशक पहले मकर संक्रांति की अहले सुबह बड़ी संख्या में लोग नदियों में स्नान करते थे जो अब देखने को नहीं मिलती हैं. टुसू पर्व से जुड़े उन सुरीले लोकगीतों को सुनकर मन नहीं भरता था, जिसे आज सुनने को कान तरसते हैं. जहां कहीं भी टुसू मेला लगता था वहां हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती थी. अब मेले की संख्या बढ़ रही हैं तो दूसरी ओर लोगों की रुचि कम होती जा रही है. इसलिए अब फिर से लोगों को एकसूत्र में बांधने तथा अपनी पहचान को जीवित रखने के उद्देश्य किए जा रहे आयोजन डहरे टुसू आधुनिक प्रयोग कहा जा सकता है.
जमशेदपुर शहर में रहने वाले लोगों को टुसू का महत्व और टुसू पर्व से रूबरू कराने वाले पूर्व सांसद सुनील महतो को लोग भूल रहे हैं. सुनील महतो ने जमशेदपुर शहर के बीचोंबीच रीगल मैदान में सर्वप्रथम वृहद टुसू पर्व आयोजन की नींव रखी थी. उसी समय जमशेदपुर में रहने वाले प्रवासियों को पता चला कि झारखंडियों की प्राचीन पर्व का नाम टुसू पर्व है. आगामी 7 जनवरी को गम्हरिया स्थित सुनील महतो समाधि स्थल से साकची आम बागान मैदान तक डहरे टुसू का आयोजन है, इसमें कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों से लोग शामिल होंगे. प्राचीन वाद्य यंत्रों की धुन पर लोग नाचते- थिरकते हुए समाधि स्थल से साकची पहुंचेंगे. इस दौरान वह लोकगीत सुनाई देंगे जिसे लोग भूल चुके हैं. सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे, जिसमें प्राचीन झूमर संगीत, धमसा और नगाड़े की धुन सुनाई देगी. यह कार्यक्रम अपने आप अनोखा होने वाला है. इस डहरे टुसू में जो लोग शामिल होंगे वह फिर से अपने मसीहा सुनील महतो को याद करेंगे. फिर से अपने दादा- दादियों के गाए हुए टुसू गीतों को याद करेंगे.