खरसावां: श्रद्वालुओं के आस्था व विश्वास के प्रतिक खरसावां के प्रसिद्ध तेलीसाई पदमपुर मां काली मेला में मुर्गा पाड़ा आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है. बता दें कि परंपरा के नाम पर मुर्गा लड़ाई का खेल सदियों से यहां खेला जाता रहा है. लेकिन समय के साथ पारंपरिक मनोरंजन का साधन मुर्गा लड़ाई धीरे- धीरे जुआ का रूप धारण करता जा रहा है.
जुए के कारण इस परंपरागत मनोरंजन में आपराधिक घटनाओं का इजाफा हो जा रहा है. मेला में सबसे अधिक भीड़ मुर्गापाड़ा में लग रहा है. मेला में मुर्गा लड़ाई का आयोजन न हो, ऐसा बिरले ही देखने को मिलता है. यह परंपरा से जुड़ा मनोरंजन का साधन आज जुए का अड्डा बन गया है. जहां यहां के भोले भाले गरीब की गाढ़ी कमाई जुए की भेंट चढ़ रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले इस मुर्गा लड़ाई के खेल में नशे की हालत में ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई को दुगनी करने के चक्कर में दांव लगाते हैं.
20 से 25 हजार रुपये तक का होता है खेल
इस खेल में 10 रूपये से लेकर एक हजार तक की बोली लगती है, और हरेक दांव में करीब 20 से 25 हजार रुपये तक का खेल होता है. मुर्गा लड़ाई करवाने वाले गांव के ही दबंग लोग होते हैं. जो चालाकी से ग्रामीणों के पैसे उनके नशे का फायदा उठा कर हारने वाले मुर्गे पर दांव लगवाकर हड़प लेते हैं. खेल के नाम पर ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई लुटाकर बस हाथ मलते रह जाते हैं. मुर्गा लड़ाई में जहां ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई लुटा रहे हैं. वहीं इस खेल में हार जीत के बीच आपराधिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिल रहा है. मुर्गा लड़ाई के दौरान अक्सर मारपीट होने के मामले प्रकाश में आते रहे हैं.
ऐसे चलता है खेल, दोनों तरफ से दांव लगाते हैं
मुर्गा लड़ाई शुरू होने से पहले लोग दोनों मुर्गा पर दांव लगाते है. इसके बाद खेल शुरू होता है. लड़ाई शुरू होते ही कुछ देर तक दोनों मुर्गा की लड़ाई बराबरी पर रहता है. इसके बाद लड़ाई तेज हो जाती है. पता नहीं चलता कि लड़ाई में कौन मुर्गा जीतने वाला है. लोग दोनों तरफ से दांव लगाते हैं. कुछ देर बाद एक मुर्गा लड़ते- लड़ते थक जाता है. इतने में सामने वाला मुर्गा हावी हो जाता है. मुर्गे के पैर पर धारदार चाकू बंधा होने से हारने वाला मुर्गा खून से लतपथ हो जाता है.
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