खरसावां के तलसाही स्थित श्रीराम कृष्ण तारक मठ आश्रम में सादगी के साथ मां जगधात्री श्रद्वापूर्वक पूजा- अर्चना हुई. विधि- विधान से मंत्रोच्चारण के साथ मां जगधात्री की प्रतिमा स्थापित कर भक्तो ने परंपरागत ढंग से पूजा अर्चना की.
कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी व नवमी को मां जगधात्री की पूजा का विधान है. बुधवार को जगधात्री का पट खोला गया. पट खुलते ही मां के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पडी. पुजारी वैदिक मंत्रोंच्चारण के साथ जगत को धारण करने वाली मां दुर्गा की शक्ति स्वरूप माता का पूजन की. तत्पश्राच्त ने मां जगधात्री से परिवार की सुख, शांति और समृद्वि का वरदान मांगा. श्रीराम कृष्ण तारक मठ आश्रम से भक्ति यात्रा निकाली गई.
इससे पूर्व रामकृष्ण प्रमानंद, शारदा देवी एवं स्वामी विवेकानंद के प्रतिमा के साथ भक्ती यात्रा आश्रम से निकलकर राजमहल चौक पहुची. इसके पश्चात पुनः भक्ती यात्रा बजारसाही होते हुए तलसाही स्थित श्रीराम कृष्ण तारक मठ आश्रम पहुचकर पूजा- अर्चना शुरू हो गई. पूजा अर्चना के दौरान विशेषकर बंगााली समुदाय के लोग काफी संख्या में जुटे. खरसावां, सरायकेला, जमशेदपुर आदि क्षेत्रों से बंगाली समाज के श्रद्वालु खरसावां पहुचे. और मां जगधात्री की भक्ती में डूबे रहे. मां जगधात्री की पूजा के बाद आरती हुई. कोरोना के कारण पहली बार भक्ति संगीत, भजन व प्रवचन सहित आध्यात्मिक कार्यक्रम और भंडारा नही हो पाया. मां जगधात्री की पूजा- अर्चना में मुख्य रूप से स्वामी विश्वआत्मा नंद महाराज, निर्वाणानंद महाराज, स्वामी ब्रहाचारी निखीलेश महाराज सहित दारा खडवाल, रवि कुंवर, जितवाहन मंडल, सपन मालाकार, सुबोध मिश्रा, अन्नतो विषेई आदि ने उपस्थित थे.
पूजा अर्चना से होती है मोक्ष की प्राप्ति: विश्वआत्मा
विश्वआत्मा नंद महाराज ने कहा कि देवी माता जगधात्री सृष्टि की देवी है. उनकी पूजा अर्चना से सांसरिक सुख के साथ साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होगी. माता उन्ही के हद्धय में वास करती है जो अपने अंदर उन्मत हाथी के भाव को नियंत्रित कर सकते है, अर्धात जो अपने गलत एवम अहम भाव को खत्म कर चुके है.
वर्ष 1941 में हुई थी आश्रम की स्थापना
श्रीराम कृष्ण तारक मठ आश्रम खरसावां की स्थापना स्वामी तपानंद जी महाराज ने वर्ष 1941 में की थी. आश्रम में पूजा अर्चना 81 वर्षो से होती आ रही है. प्रत्येक वर्ष श्रद्वालुओं की संख्या बढती जा रही है.
पुनर्जन्म के खुशी में मना जगधात्री पूजा
कहते है इस त्योहार की शरूआत रामकृष्ण की पत्नी शारदा देवी ने रामकृष्ण मिशन में की थी. वे भगवान के पुनर्जन्म में बहुत विश्वास रखती थी. इसकी शुरूआत के बाद इस त्योहार को दुनिया के हर कोने में मौजुद रामकृष्ण मिशन के संटर में मनाने लगे है. इस त्योहार को मां दुर्गा के पुनर्जन्म की खुशी में मनाते है, माना जाता है देवी पुथ्वी पर बुराई को नष्ट करने और अपने भक्तों को सुख-शांति देने आई थी.