कांड्रा: आनन्द मार्ग स्कूल कांड्रा में एक दिवसीय प्रथम डिट स्तरीय सेमिनार का आयोजन किया गया. सेमिनार में सरायकेला- खरसवां जिले के गम्हरिया, आदित्यपुर, सीनी सरायकेला, खरसावां, चांडिल, नीमडीह, राजनगर एवं आसपास के आनन्द मार्गियों ने डिट स्तरीय सेमिनार का लाभ उठाया.
आनन्द मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित प्रथम डिट स्तरीय सेमिनार 2022 के अवसर पर आनन्दमार्ग के
आचार्य नवारुणानन्द अवधूत ने ”लोकायत और लोकोत्तर” विषय पर बोलते हुए कहा कि कोष और लोक क्रमशः अणु मन
एवं भूमा मन के स्तर हैं. मनुष्य का मन पांच कोष या स्तरों में विभक्त है. उसी प्रकार भूमा मन सात लोकों में
विभक्त है. पंच कोष सप्तलोकों में ही अवस्थित है अणु मन के जिस कोष में जब रहते हैं ब्रह्माण्डीय मन के उसी
लोक में तब रहते हैं. उन्होंने बताया कि पांच कोष हैं, काममय, मनोमय, अतिमानस, विज्ञानमय और हिरण्यमय. सात लोक
भू, भुवः, स्व: महः, जनः, तपः और सत्यलोक हैं. आचार्य ने कहा कि मन के पंचकोष एवं सप्तलोक के यथोपयुक्त
ज्ञान से साधना में विशेष सुविधा प्राप्त होती है. उन्होंने मन की तीन अवस्थाओं चेतन, अवचेतन एवं अचेतन तथा
जाग्रत स्वप्न और सुषुष्ति अवस्थाओं के बारे में विस्तार से समझाते हुए कहा कि जाग्रत अवस्था में चेतन, अवचेतन
एवं अचेतन तीनों मन सक्रिय रहता है, स्वप्नावस्था में चेतन मन असक्रिय हो जाता है तथा अवचेतन तथा अचेतन
मन सक्रिय रहता है. चेतन मन को स्थूल मन, अवचेतन मन को सूक्ष्म मन एवं अचेतन मन को कारण मन भी कहा
जाता है. कारण मन में संस्कार की अवस्थिति रहती है. स्थूल मन इच्छाओं का स्तर है। सूक्ष्म मन चिन्तन, मनन एवं
स्मरण का स्तर है और कारण मन विवेक, वैराग्य, संस्कार का स्तर है.
आगे आचार्य जी ने बताया कि आत्म ज्योति की मदद से अपने कारण मन के अंधकार जगत पर आलोक
सम्पात करना ही आत्मिक साधना है. जिनका मानस कुर जितना ही स्वच्छ है, मलिनतामुक्त है, उतनी ही
आत्मज्योति या ब्रह्मज्योति उस पर पूर्ण भाव से बिम्बित होती है. वृत्ति तरंग या संस्कार की मलिनता के कारण मानस
पट पर परमात्मा के प्रतिफल की ठीक भाव से समझा नहीं जा सकता. अतः मन की मलिनतामुक्ति ही मुक्ति है. मन
को मलिनतामुक्त करने का एकमात्र उपाय है कौषिकी साधना अर्थात अष्टाज्योग साधना. अन्नमय कोष की शुद्धि
आसन एवं षोडश विधि के पालन से होती है. काममय कोष की शुद्धि यम नियम के पालन करने से होती है. पाँच
यम हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह. पाँच नियम हैं, शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय एवं
ईश्वर प्राणिधान. मनोमय कोष की शुद्धि प्राणायाम साधना द्वारा होती है. अतिमानस कोष की शुद्धि प्रत्याहार साधना
की ब्रिशुद्धियों, भूत शुद्धि, आसन शुद्धि एवं चित्त शुद्धि से होती है. साथ ही साथ मधुविद्या एवं वर्णार्ध्यदान के
द्वारा होती है. विज्ञानमय कोष की शुद्धि धारणा तथा चक्रशोधन साधना के द्वारा होती है और हिरण्यमय कोष की
शुद्धि ध्यान साधना के द्वारा होता है. इस प्रकार मन के प्रत्येक कोष या स्तर अष्टाज्नयोग के विभिन्न अंगों द्वारा शुद्ध
तथा परिष्कृत किये जाते हैं. मन के पाँच कोष शरीर स्थित पाँच चक्रों एवं चक्रामयी भूत तत्वों, वृत्तियों एवं ग्रन्थियों
का नियंत्रण करते हैं. स्वरूप स्थिति की साधना ही ज़ीव को शान्ति या कल्याण दे सकती है. ब्रह्म प्राप्ति के लिए
संयम में प्रतिष्ठा आवश्यक है. उन्हें समझने के लिए हृदयवत्ता के साथ संवेदना की संगति का प्रयोजन है. जब सभी
वृत्तियाँ निरुद्ध हो जाती हैं तब परमाशक्ति परमशिव में समाहिता हो जाती है. उस अवस्था में साधक इस मरशील जगत पर ही बैठकर अमृत सिन्धु में अपनी संस्त सत्ताओं को मिला देता है.