झारखंड में उद्योगों के लिए जमीन अधिग्रहण के नाम पर क्या हो रहा है. इसका एक छोटा सा उदाहरण आपको हम सरायकेला जिले का दिखा रहे हैं. आपको याद दिला दें कि एसिया की दूसरी सबसे बड़ी औद्योगिक सेक्टर आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र है. जो सरायकेला- खरसावां जिले में स्थित है. पूरे जिले में छोटी- बड़ी ढाई हजार से भी ज्यादा कंपनियां स्थापित हैं.यहां झारखंड गठन से पूर्व और झारखंड गठन के 21 साल बाद भी सैकड़ों कंपनियों द्वारा उद्योग लगाने के एवज में यहां के मूलवासियों के जमीनों का अधिग्रहण किया गया, मगर आज भी दर्जनों औद्योगिक इकाइयों और मूल रैयतों के बीच विवाद और गतिरोध जारी है. यहां ऐसे ही बड़े उद्योग समूह आधुनिक नेचुरल एंड पावर रिसोर्सेज कंपनी की बात हम कर रहे हैं आपको बता दें कि जब साल 2007- 08 के समय यह कंपनी अस्तित्व में आ रही थी, उस समय झारखंड अलग राज्य अस्तित्व में आ चुका था. गम्हरिया प्रखंड के दुग्धा पंचायत के पदमपुर मौजा में जमीन का अधिग्रहण शुरू हुआ. रैयतों को कई प्रलोभन दिए गए. मसलन नौकरी- मुआवजा, मगर क्या उसका अनुपालन हुआ ! हमारे पास जो दस्तावेज दिए गए हैं, उससे हम कह सकते हैं कि बिल्कुल नहीं. झारखंड अलग राज्य बने 21 साल और आधुनिक पावर एंड रिसोर्सेज के अस्तित्व में आने के करीब 14 साल बाद भी पदमपुर मौजा के दर्जनों विस्थापित जमीन के एवज में मुआवजा और नौकरी के लिए अंचल से लेकर उपायुक्त और राज्य सरकार तक फरियाद लगा चुके हैं, लेकिन रैयतों को उनका अधिकार अब तक नहीं दिया गया है. अब इसके लिए किस सरकार और किस अधिकारी को दोषी ठहराया जाए, क्योंकि लगभग राज्य के सभी सत्ताधारी और विपक्षी दलों ने 14 साल के कार्यकाल में राज्य पर राज किया है. ऐसे ही एक रैयत का मामला हमारे संज्ञान में आया है. जिसका नाम तारा चंद महतो और सुनील कुमार महतो है. दोनों के नाम पदमपुर मौजा में 2.25 एकड़ जमीन है, जिसे 2007- 08 से कंपनी ने कब्जा कर रखा है. पीड़ित तारा चंद द्वारा बताया गया, कि जमीन के एवज में न तो मुवावजा, न ही नौकरी दिया गया है.
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उल्टा जमीन पर अवैध रूप से तालाब खुदवा दिया गया है, और हानिकारक रसायन उसमें बहाया जा रहा है. पीड़ित ने बताया, कि कंपनी के सुरक्षा कर्मियों द्वारा उन्हें अपनी जमीन पर जाने भी नहीं दिया जा रहा है. बताया कि कंपनी की ओर से फर्जी ग्रामसभा के जरिए उनके जमीन के इर्द- गिर्द के रैयतों का जमीन अधिग्रहण कर लिया गया और उनके जमीन पर भी कब्जा कर उसे अपनी बाउंड्री में मिला लिया गया है. उन्होंने बताया, कि आज तक उक्त जमीन का मालगुजारी स्वयं चुका रहे हैं, और जमीन पर कंपनी ने कब्जा कर रखा है. तमाम प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं से इंसाफ की गुहार लगा चुका हूं.
देखिये कहां-कहां पीड़ित ने फरियाद लगाई
अबतक इंसाफ तो दूर किसी ने मामले में सुध लेना भी मुनासिब नहीं समझा. उन्होंने बताया, कि पदमपुर मौजा के थाना नंबर 47, खाता संख्या 45, प्लॉट संख्या 561, रखवा 0.36 एकड़, खाता संख्या 31, प्लॉट संख्या 603, रकबा 0.52 एकड़, प्लॉट संख्या 521 रकबा 0.11 एकड़, प्लॉट संख्या 621 रखवा 0.14 एकड़, प्लॉट संख्या 518 रकबा 0.28 एकड़, खाता संख्या 14, प्लॉट संख्या 519, रकबा 0.19 एकड़, खाता संख्या 58, प्लॉट संख्या 522, रकबा 0.06 एकड़, खाता संख्या 64, प्लॉट संख्या 525 रखवा 0.08 एकड़ और खाता संख्या 63 प्लॉट संख्या 620 रकबा 0.23 एकड़ जमीन कंपनी ने जबरन कब्जा कर रखा है.
देखिए ज़मीन से संबंधित दस्तावेज़
अब सवाल उस सरकार से जो स्थानीय आदिवासी और मूलवासियों के अधिकारों की रक्षा करने का दावा करती है, फिर इस मामले में चुप्पी क्यों साध रखी हैं ? सवाल उन अधिकारियों से जो फर्जी ग्रामसभा के गवाह बन भोले-भाले ग्रामीणों की जमीन अपनी आंखों के आगे लुटते देखते हैं. सवाल उन जनप्रतिनिधियों से जो ऐसे संवेदनशील मामलों में चुप्पी साध लेते हैं. आखिर किस आदिवासी- मूलवासियों के अधिकारों की बात वे करते हैं. क्या यही इंसाफ है ?
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