DESK REPORT: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने झारखंड की 21 साल से 49 साल तक की महिलाओं के लिए जो सपना देखा था उसे वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने धरातल पर उतारने की शुरुआत की है, मगर पहले दिन से ही इसको लेकर अफरा- तफरी का माहौल देखा जा रहा है. विदित हो कि राज्य के 21 से 49 साल तक कि योग्य युवतियों और महिलाओं के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने “झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना” का ब्लूप्रिंट तैयार किया था. इसके तहत उक्त योग्यताधारी युवतियों एवं महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपए देना निर्धारित किया था. हालांकि राज्य के बदले सियासी घटनाक्रम के बाद चंपई सोरेन को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, मगर वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन की योजना को हाथों- हाथ लिया और पूरे तामझाम के साथ इस योजना का शुभारंभ कर दिया.
शनिवार से पूरे राज्य में आगामी दस अगस्त तक सभी पंचायत भवनों में शिविर लगाकर योजना के योग्य लाभुकों से आवेदन प्राप्त करते हुए ऑन द स्पॉट भरने की तैयारी की गई थी, मगर बगैर पर्याप्त तैयारी के पहले दिन से ही जिले के लगभग सभी केंद्रों पर अफरा- तफरी का माहौल देखा जा रहा है. न तो सर्वर काम कर रहा है, न ही पर्याप्त मात्रा में लाभुकों को आवेदन दिया जा रहा है, जिससे पहले दिन से ही सभी केंद्रों पर भगदड़ की स्थिति देखी गई.
योग्य- अयोग्य युवतियों और महिलाओं को केंद्रों पर आवेदन पत्र के लिए भटकते देखा गया. हालांकि जिला प्रशासन के अधिकारी लगातार केंद्रों पर घूम- घूमकर जायजा ले रहे हैं मगर ऊपर से ही जब सर्वर काम नहीं कर रहा है तो कोई क्या करे.
हां इसकी आड़ में राजनीतिक तेज हो गयी है. वैसे इस योजना का सपना देखने वाले सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन करीब तीन दिन अपने विधानसभा प्रवास पर रहे मगर अपने सपनों की दुर्दशा जानकर वे एक भी केंद्र पर नहीं गए और वापस रांची लौट गए. हालांकि उन्होंने इतना जरूर कहा कि राज्य की योग्य युवतियां, माताएं- बहनें इस योजना का लाभ जरूर लें इससे उन्हें आर्थिक संबल मिलेगा. उन्होंने भरोसा जताया कि जल्द ही सर्वर को दुरुस्त कर लिया जाएगा. मगर चार दिन बाद भी जमीनी हकीकत यही है कि इस योजना के लाभुकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जबकि सभी बीडीओ, सीओ, मुखिया, पंचायत सेवक, निकायों के कर्मियों को पूर्व से ही निर्देशित किया गया था कि 3 अगस्त से सभी केंद्रों में पर्याप्त पानी, बिजली, शौचालय इंटरनेट जैसे जरूरी मूलभूत सुविधाएं बहाल रखनी है, मगर सेंट्रल सर्वर ही टॉय- टांय फिस्स हो गया जिससे ना तो जनप्रतिनिधि कुछ बोल पा रहे हैं ना ही सरकारी पदाधिकारी.
विपक्ष ने खुलकर बोला हमला, सत्ता पक्ष के लोग मौन
इधर भाजपा नेता गणेश महली ने सरकार की मंशा पर तंज करते हुए कहा कि बगैर पर्याप्त तैयारी के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री ने योजना की शुरुआत की है, ताकि इसका चुनाव में लाभ ले सके, मगर जनता जागरुक है. उसे पता है कि चुनाव में क्या करना है. ₹1000 के लिए माता- बहनों को कतार में खड़ा करने से अच्छा होता आंगनबाड़ी सेविकाओं, बीएलओ और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से घर- घर जाकर योग्य लाभुकों के आवेदन लिए जाते. थोड़ा समय लगता मगर भगदड़ की स्थिति नहीं होती. आपके राज्य में इतने योग्य कर्मी नहीं है जो 10-15 दिनों के अंदर योजना को धरातल पर उतार सके. वैसे भी कभी भी चुनाव आयोग की डुगडुगी बज सकती है. उसके बाद योजना अधर में लटक जाएगा.
हड़बड़ाहट व बिना तैयारी के झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना द्वारा महिलाओं को परेशान करना गलत: मनोज चौधरी
इधर योजना को लेकर भाजपा नेता और सरायकेला नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी ने कटाक्ष करते हुए इसे जल्दबाजी में लिया गया निर्णय करार दिया है. श्री चौधरी ने बताया कि “झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना” शुरुआती दौर में ही विफल हो रही है. कहा कि शनिवार से ही पंचायत कार्यालयों एवं शहरी केन्द्रों में कैम्प आयोजित कर महिलाओं से आवेदन लिया जा रहा है. पर एक भी आवेदन का ऑनलाइन नही हो पा रहा है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. कम्प्यूटर ऑपरेटर सर्वर नहीं होने का हवाला दे रहे हैं. गांवों में अभी धान रोपाई का काम चल रहा है. महिलाएं रोपा छोड़ कर पंचायत भवन में आयोजित कैम्प में घंटों कतार में लग कर अपना समय बर्बाद कर मायूस होकर घर लौट रही हैं. लोगों में अंदेशा यह हो रहा है कि जमा तो कर रहे हैं पर पता नहीं काम होगा या फिर ब्लॉक में बाबुओं का चक्कर लगाना पडेगा. श्री चौधरी ने कहा कि सरकार ने घोषणा तो की है पर ना तो कोई अधिकारी चयनित किया गया और ना ही कोई समुचित व्यवस्था की गई है. ऐसा लग रहा है कि यह योजना महिलाओं के लिए सिर्फ चुनावी जुमला बनकर रह जायगा. क्योंकि इसके फार्म में इस योजना को लिंक करने का मियाद दिसंबर 2024 दी गई है जो समझ से परे है. सरकार को चुनाव में कैसा डर है जो बिना तैयारी के इतनी हड़बड़ी में योजना लागू करना चाह रही है. उन्होंने कहा कि सर्वर को दुरुस्त करने के बाद ही कैम्प का आयोजन करवाना चाहिए था.
निकायों के पूर्व जनप्रतिनिधियों को किया गया नजरअंदाज
इधर निकायों के पूर्व प्रतिनिधियों को योजना के लाभुकों के बीच आवेदन बांटने से अलग रखा गया है. इसको लेकर कई पूर्व पार्षदों ने नाराजगी जताई. पार्षदों ने बताया कि हम जब पद पर थे तो सरकार के जनकल्याणकारी योजनाओं में बढ़- चढ़कर हिस्सा लेते थे. सरकार की लापरवाही की वजह से 1 साल से भी अधिक का समय बीत चुका है, मगर अब तक चुनाव नहीं कराए गए हैं, बावजूद इसके वार्ड की जनता किसी भी योजना के लिए उनसे संपर्क करने आती हैं, मगर नगर निगम की ओर से उन्हें यह कहकर टाल दिया जाता है कि इस काम के लिए हमारे कर्मियों को लगाया गया है. इस दौरान कई पूर्व वार्ड पार्षदों को अंचल कार्यालय का चक्कर काटते भी देखा गया.