BUREAU REOPRT झारखंड अलग राज्य हुए 23 साल हो चुके हैं. इन 23 सालों में झारखण्ड ने कई उतार – चढ़ाव देखे. राज्य ने निर्दलीय मुख्यमंत्री से लेकर डबल इंजन की सरकार देखा. कई सियासी दांव – पेंच देखे. अलग झारखंड राज्य का आंदोलन देखने के बाद यहां की जनता ने कभी डोमेसाइल की आंधी देखी तो काभी सरना बिल को लेकर झारखंड को जलते देखा.
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कभी बाहरी- भीतरी के नारे बुलंद हुए तो, कभी अबुआ दिशुम- अबुआ राज के नाम पर सियासत हुई. कभी बंद लिफाफे के नाम पर सियासत हुई, तो काभी ईडी और सीबीआई के बहाने राज्य को अस्थिर करने का प्रयास किया गया. हर सियासी बिसात पर मोहरा यहां की जनता बनी. डोमेसल की आग ने कुतुबमीनार वाले बाबा को सत्ता से बेदखल किया, तो भ्रष्टाचार की तपिश ने मधु को स्वादहीन बनाया. बड़े तामझाम से डबल इंजन की सरकार गद्दी पर काबिज हुई, मगर पत्थरगड़ी की आग ने डबल इंजन को डिरेल कर दिया. अब राज्य में अबुआ राज की सरकार बनी है, मगर राज्य एकबार फिर से सुलग रहा है.
राज्य में इस समय 1932 खतियान आधारित नियोजन नीति को लेकर घमासान मचा हुआ है. इसके अलावे सरना बिल को लेकर भी खूब सियासत हो रही है. राज्य सरकार ने दोनों बिल को केंद्र के पाले में डालकर वाहवाही लूटने का प्रयास किया, मगर दोनों ही बिल राज्यपाल ने बैरंग वपस लौटाकर सरकार को झटका दे दिया.
वर्तमान सरकार को अब अपनों से ही चुनौती मिल रही है. कभी बाहरी- भीतरी के नाम पर सियासत करनेवालों को आज अपने यानी आदिवासी – मूलवासी के कोपभाजन का शिकार होना पड़ रहा है. आज आदिवासी- मूलवासी आमने- सामने हैं. कुड़मी जो खुद को मूलवासी बताते हैं, वे 1932 खतियान आधारित नियोजन नीति और खुद को एसटी का दर्जा देने की मांग कर आंदोलन कर रहे हैं. वहीं आदिवसी इसे अपने अधिकारों का हनन मानते हुए इसके खिलाफ सरकार से दो- दो हाथ करने की तैयारी कर दी है.
रविवार को सरायकेला के चांडिल में जिस तरह का नजारा देखने को मिला उससे यह साफ हो गया है, कि राज्य एकबार फिर से जलनेवाला है, मगर इस बार इस आग में बाहरी नही बल्कि यहां के आदिवासी- मूलवासी जलेंगे. जिसके जिम्मेदार यहां के सियासी दल होंगे. क्योंकि उन्ही की देन है कि गठन के 23 साल बाद आज भी राज्य जल रहा है.
आप चांडिल में रविवार को हुए आदिवासियों के जनाक्रोश रैली की झलकियां और इसमें शामिल आदिवासी नेताओं के बयानों को सुनिए फिर तय कीजिये क्या वाकई में राज्य में आंदोलन की चिंगारी नहीं सुलग रही है ? यूं कहें तो हर सरकारों ने यहां की साढ़े तीन करोड़ जनता को ठगने का काम किया है. यदि ऐसा नहीं है, तो आज डोमेसाइल के नाम पर राज्य को जलाने वाले चुप क्यों बैठे हैं. पत्थरगड़ी के नाम पर राज्य को अशांत करनेवले कहां छुपे बैठे हैं. अबुआ दिशुम- अबुआ राज का नारा देनेवाले क्या कर रहे हैं. उनका राज कौन लूट रहा है. क्या बाहरी उन्हें परेशान कर रहे हैं ? राज्य के आदिवासी- मूलवासियों के रहन- सहन, पहनावा, शिक्षा- दीक्षा में जो बदलाव हुए हैं उसके पीछे यहां के सियासत की नहीं, बल्कि बाहरी आवो- हवा है. जिसकी वजह से आदिवासी- मूलवासी आज के दौर में हाईटेक हो रहे हैं.
देखें रविवार के जनाक्रोश रैली की झलकियां और आदिवासी नेताओं के बयान
गीताश्री उरांव (पूर्व मंत्री)
जरूरत है सियासी लोगों को सबक सिखाकर आपसी सौहाद्र से राज्य के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की. क्योंकि झारखंड गरीब राज्य नहीं है. इसके कोख में पूरे देश की अमीरी छिपी है. सियासी लोग यहां के साढ़े तीन करोड़ जनता को आपस में लड़ा कर इसकी कोख को खोखला बना रहे हैं. समय रहते इसपर लगाम नहीं लगा तो बाद में यही कहना होगा, कि अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत.
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