जमशेदपुर: झारखंड में तीन टर्म के पंचायती राज के पूरा होने के बावजूद राज्य में अबतक पेशा कानून की नियमावली नहीं बनना तथा शिड्यूल एरिया में नयी- नयी नगर पंचायतें, नगर निगम का गठन कर चुनाव कराने की कवायदों को आदिवासी स्वशासन व्यवस्था को ध्वस्त करने का आरोप लगाते हुए झारखंड आंदोलनकारी मंच और संयुक्त ग्राम सभा मंच ने इसे झारखंडी भावना के साथ खिलवाड़ बताया. मंगलवार को दोनों संगठनों ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी जानकारी दी.
दोनों संगठनों ने साझा बयान जारी करते हुए कहा झारखंड राज्य में जल, जंगल, जमीन और झारखंडी पहचान की लड़ाई को कमजोर किया जा रहा है. झारखंड राज्य के नव निर्माण का सपना धराशाही हो गई है और परिणाम स्वरूप झारखंडी कंगाल और गुलामी का शिकार हो चुके हैं.
विकास के नाम पर झारखंड के जल, जंगल, जमीन की लूट चारों तरफ मची हुई है. झारखंड में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की आड़ में बाहरी अबादी को पांचवीं अनुसूची वाले जिलों में डम्पिंग करने की नीति चल रही है.
झारखंड के अनुसूचित जिलों में बिना केन्द्र सरकार द्वारा शहरी आदिवासी क्षेत्रों में पेसा के समान ‘मेसा’ का कानून बनाए ही झारखंड नगरपालिका अधिनियम 2011 के तहत नगरपालिका का गठन एवं चुनाव कराये जा रहे हैं जो कि घोर असंवैधानिक एवं संविधान के प्रावधानों का खुल्लम- खुल्ला उल्लंघन है. संविधान की पांचवीं अनुसूची पंचायती राज अधिनियम और नगरपालिका अधिनियम से अलग कानूनों को आदिवासी बहुल क्षेत्रों और कस्बों के प्रशासन के लिए अनिवार्य करती है. संसद ने जनजातीय क्षेत्रों के लिए पंचायत विस्तार अनुसूचित क्षेत्र (पेसा) अधिनियम 1996 में अधिनियमित किया लेकिन अबतक अनुसूचित क्षेत्रों के शहरी म्यूनिसिपल इलाकों के लिए ‘मेसा’ को संसद से पारित नहीं किया गया है जबकि भूरिया कमिटी ने इस पर गंभीरता से पहले करने की अनुशंसा की है.
इस तरह बिना संसद द्वारा मेसा कानून बनाए राज्य के 49 नए नगर निगम, नगर पंचायत का गठन कर चुनाव कराने जा रहे हैं तथा पेसा के नियमावली को बिना ही पंचायत राज्य व्यवस्था को चलाया जा रहा है.
मौके पर झारखंड आंदोलनकारी मंच के डेमका सोय, संयुक्त ग्राम सभा मंच के संयोजक अनूप महतो, सुकलाल पहाड़िया, गुरुचरण सिंह सरदार, सत्यनारायण मुर्मू, विष्णु पोदो गोप आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे.
Reporter for Industrial Area Adityapur