JHARKHAND DESK झारखंड में राज्यसभा चुनाव के लिए तारीख तय हो गयी है. 21 मार्च को दो सीटों के लिए मतदान होने हैं. इसको लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गयी है. “एनडीए” और “इंडिया” खेमे की ओर से फिलहाल पत्ते नहीं खोले गए हैं. इस बीच समीर उरांव को बीजेपी ने लोकसभा का टिकट थमा दिया है मतलब साफ है कि “एनडीए” इसबार किसी अन्य उम्मीदवार को राज्यसभा भेजेगी. ज्यादा संभावना किसी ओबीसी नेता पर पार्टी दांव लगाने की तैयारी में है.
विधायकों के लिहाज से दोनों ही दलों के पास अपने- अपने प्रत्याशियों को राज्यसभा भेजने के लिए पर्याप्त संख्या में वोट हैं, मगर दोनों ही दलों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, जिससे कयासों का बाज़ार गर्म है. कांग्रेस कोटे से धीरज साहू के जगह किसी अन्य उम्मीदवार को लेकर चर्चा जोरों पर है, मगर इस बार झामुमो ताल ठोक रही है. वैसे अभी तक खुल कर बातें नहीं आईं हैं कि झारखंड में सत्ता पक्ष से राज्य सभा का उम्मीदवार कौन हो सकता है, यह भी खुल कर नहीं आया है कि गठबंधन कांग्रेस और झामुमो दोनों में से किसका उम्मीदवार जायेगा. उम्र अधिक और कुछ अंदरूनी कारणों से सरफराज अहमद अब रेस में नहीं हैं. अभी हाल ही में कांग्रेस एमपी धीरज साहू के यहां से करीब साढ़े तीन सौ करोड़ रुपया मिला है इसलिए फिलहाल कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित उम्मीदवार होने पर राज्य और देश में गलत मैसेज जायेगा. झामुमो का दावा बिलकुल सही और वाजिब होगा क्योंकि उनके पार्टी के एमएलए कांग्रेस के दोगुने से थोड़े ही कम है. आजकल झारखंड में जो राजनीतिक हालात बने हैं, धनबल, परिवारवाद से उपर उठ कर एक योग्य, जोरदार आवाज और प्रभावशाली व्यक्तित्व से परिपूर्ण बेदाग छवि वाले व्यक्ति को सदन में भेजने पर झारखंड राज्य से देश में एक अच्छा संदेश जायेगा. नोटिफिकेशन और नॉमिनेशन की तिथि निकलने के बाबजूद भी पहला और दूसरा उम्मीदवार का नाम अब तक नहीं आने का मतलब है कि इस बार शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन जी जनहित में चौकाने वाला फैसला ले सकते है. कैप्टन राजेश कुमार जिन्हें गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त है, इनके विरुद्ध आजतक किसी भी न्यायालय में कोई केस दर्ज नहीं है, लगभग तीन दशक से आयकर रिटर्न दाखिल करते आए है, जिन्हें अंग्रेजी हिंदी एवं कई क्षेत्रीय भाषाओं को बोलने में महारत हासिल है, आज की तारीख रेस में ये पहले पायदान पर पहुंच गए हैं. राजनीतिक हलकों में कैप्टन राजेश का 1 नंबर पर आने का साफ मतलब है कि इस बार झारखंड की गठबंधन सरकार धनबल एवं परिवारवाद को त्याग कर संदेश देना चाहती है कि हम भी ऐसी परंपराओं से उपर उठ कर ऐसे व्यक्ति का चयन कर सकते है जो झारखंड की आवाज बन कर प्रभावशाली और जोरदार तरीके से सदन में अपनी बात को रख सके. वैसे सभी की निगाहें अब प्रत्याशियों के नामो के घोषणा पर टिकी है. हालांकि इसबार क्रॉस वोटिंग का खतरा भी मंडरा रहा है.