DESK REPORT इलेक्शन कमिशन की रिपोर्ट आने के बाद झारखंड की नैया डगमगाने लगी है सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जुबानी जंग खूब हिलोरे मार रही है. सत्ता पक्ष एक ओर जहां आश्वस्त नजर आ रही है, वहीं विपक्ष को ऐसा लग रहा है, कि उनके हाथ बटेर लग गए हैं. सत्ता पक्ष विपक्ष पर सील बंद लिफाफे की गोपनीयता को लेकर सवाल उठा रहे हैं. वहीं विपक्ष सत्ता पक्ष के सवालों को दरकिनार करते हुए जोड़- घटाव की रणनीति में जुटे हुए हैं. यू कहे तो झारखंड की राजनीति अब दिल्ली शिफ्ट हो चुकी है भले झारखंड के राजनेता राजधानी रांची में रणनीति बना रहे हो मगर इसकी चाबी अब दिल्ली से ही खुलेगी इन सबके बीच शुक्रवार को सबकी निगाहें राज्यपाल पर टिकी रहेंगी राज्यपाल का फैसला आने के बाद ही झारखंड के भविष्य का फैसला होगा.
इन सबके बीच झारखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसको लेकर भी घमासान मचा हुआ है. इससे पहले यह जानना जरूरी है, कि इलेक्शन कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल क्या फैसला ले सकते हैं.
● राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत मिले अधिकार का उपयोग कर सीएम हेमंत की विधायकी खत्म करने का फैसला विधानसभा के स्पीकर को भेज सकते हैं.
● राज्यपाल सीएम हेमंत सोरेन को बुलाकर आयोग की अनुशंसा पर सदस्यता तत्काल खत्म करने की जानकारी दे सकते हैं. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कह सकते हैं.
● कुछ निश्चित अवधि के लिए चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय भी सुना सकते हैं. विधायकी से कितने दिनों के लिए कब से कब तक अयोग्य रहेंगे यह राज्यपाल ही तय करेंगे
हालांकि चुनाव आयोग की सिफारिश के बाद राज्यपाल को अयोग्यता की कार्यवाई करनी ही होगी. वे तय संवैधानिक व्यवस्था के तहत हेमंत सोरेन को अयोग्य घोषित कर देंगे. इसके बाद हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा. हेमंत सोरेन को सफाई देने की जरूरत भी नहीं होगी, क्योंकि चुनाव आयोग ने सोरेन के खिलाफ आरोपों पर सुनवाई की है. आयोग ने राज्यपाल को जो पत्र भेजा होगा उसके साथ सुनवाई, निष्कर्ष व अन्य सबूत भी होंगे. राज्यपाल सीधे नोटिस देकर सोरेन को अयोग्य ठहरा सकते हैं.
आगे क्या….
विधायकी जाने के बाद हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे (यदि उन पर कुछ निश्चित अवधि तक चुनाव नहीं लड़ने का रोक नहीं लगता है) तो उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित करना ही होगा. ऐसे में परिवार के किसी सदस्य मसलन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन या भाई दुमका विधायक बसंत सोरेन के नाम पर यदि सोचेंगे तो फिर से सुरेन परिवार पर संकट के बादल घिर सकते हैं क्योंकि दोनों पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और मामला भी चल रहा है. उधर भाभी जामा विधायक सीता सोरेन भी बगावत में उतर सकती है वैसे सूत्रों की अगर मानें तो सीता सोरेन भाजपा के ऑपरेशन लोटस के तुरुप का इक्का है ऐसे में हेमंत सोरेन के लिए सीता सोरेन गले की हड्डी बन सकती है तीसरे विकल्प के रूप में पिता दिशोम गुरु पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन पर हेमंत सोरेन दांव लगा सकते हैं इस पर सहयोगी दलों को भी कोई आपत्ति संभवत नहीं होगी, मगर विपक्ष इस मुद्दे पर भी सरकार को घेरने का कोई अवसर नहीं चुकेगी. शिबू सोरेन के उम्र को देखते हुए यह फैसला भले सरकार के डूबते नैया को थोड़े समय के लिए स्थिर कर सकता है, मगर पार लगाने के लिए सशक्त माझी की आवश्यकता होगी. उसके लिए प्लान बी के तहत मुख्यमंत्री को सोचना होगा. राजनीतिक पंडितों की अगर मानें तो झारखंड के सियासी संकट को उबारने में सबसे आगे अगर किसी नेता का नाम सबसे ऊपर होगा तो वह होगा कोल्हान टाइगर के नाम से विख्यात सरायकेला विधानसभा से 7 बार विधायक और तीन बार मंत्री रह चुके शिबू सोरेन के सबसे विश्वस्त चंपई सोरेन. चंपई सोरेन की शख्सियत वर्तमान मंत्रिमंडल में नंबर दो की है. उन्हें गुरुजी का सबसे प्रिय पात्र माना जाता है. सीएम हेमंत सोरेन भी उन पर पूरी आस्था रखते हैं. पार्टी के सबसे कद्दावर नेता माने जाते हैं. झारखंड आंदोलन में गुरु जी के साथ साए की तरह चिपक कर रहते हुए उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा, और राजनीति भी ऐसी कि उन्हें मात देने में अच्छे- अच्छे दिग्गजों के पसीने छूट गए. प्रचंड मोदी लहर हो या सुशासन वाली डबल इंजन की सरकार, सारे विरोधी उनके आगे नतमस्तक रहे और उन्होंने पार्टी का झंडा बुलंद रखा. सादगी ऐसी कि सात बार विधायक तीन बार मंत्री रहते हुए भी तामझाम उन्हें पसंद नहीं है. कोल्हान की ज्वलंत मुद्दों को मुखर होकर उठाते रहे हैं. मजदूरों के हक और हुकूक का मुद्दा हो, या जल जंगल जमीन का मुद्दा, चंपई सोरेन कभी पीछे नहीं रहे. अपने चीर- परिचित शैली में हर दिन अपने लोगों से मुलाकात और उनके सुख- दु:ख को सुनते हुए तत्काल समाधान दिलाना उनकी खास शैली रही है. भले झारखंड पर सियासी संकट मंडरा रहा है मगर चंपई सोरेन के समर्थकों को भरोसा है कि मंत्री चंपई सोरेन को यदि डूबते झारखंड की कमान मिलती है, तो वे आसानी से इसे पार लगा सकते हैं. और झारखंड को एक अलग पहचान दिला सकते हैं सबसे बड़ी बात यह है, कि उन पर आज तक कभी भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा.
मंत्री जोबा और जगन्नाथ महतो भी चर्चा मे
अंदर खाने की अगर मानें तो मंत्री जोबा मांझी जगन्नाथ महतो भी सीएम हेमंत सोरेन की पसंद है जोबा माझी की छवि बेहद ही शालीन नेत्री के रूप में रही है. इससे पूर्व भी वे मंत्री रह चुकी हैं. महिला होने के नाते उनकी दावेदारी प्रबल हो सकती है. शिक्षा मंत्री जगन्नाथ महतो भी पार्टी के कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं. सीएम हेमंत सोरेन के सबसे विश्वास पात्र के रूप में जगन्नाथ महतो को जाना जाता है. मगर उनके स्वास्थ्य को लेकर थोड़ी चिंता जरूर है, बावजूद इसके मुख्यमंत्री उन पर आस्था जता सकते हैं. सोरेन परिवार की बड़ी बहू जामा विधायक सीता भी दावेदारों की रेस में आगे चल रही हैं, मगर मुख्यमंत्री से खटपट होने के कारण उन्हें मौका मिलना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है.
विपक्ष के लिए संभावना
ऑपरेशन लोटस को झारखंड में सफल बनाने में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास और गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे की भूमिका अहम रही है. हालांकि इसके लिए केंद्रीय एजेंसियों ने पूरी तन्मयता के साथ काम किया है. यदि सत्ता पक्ष एकजुट रहता है तो ऑपरेशन लोटस बिहार के तर्ज पर झारखंड में भी विफल हो सकता है. मगर पिछले दिनों कांग्रेस के 3 विधायकों के कोलकाता में कैश कांड में फंसने के बाद कांग्रेस पर भरोसा करना बेमानी होगा. हालांकि कांग्रेस के सभी विधायक 3 को छोड़ रांची में जमे हुए हैं. संभावना जताई जा रही है कि सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस और राजद सत्ता में और हिस्सेदारी लेगी. यही सत्ता पक्ष के लिए कमजोर कड़ी साबित होगी. वैसे पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ हुए बैठक में संभवत: सब तय हो चुका है. अब सबकी निगाहें शुक्रवार को आने वाले फैसले पर टिकी है. जैसे ही सरकार अल्पमत में आती है, भाजपा अपना दांव खेलने से नहीं चूकेगी तब ऑपरेशन लोटस की सफलता और विफलता सामने आ सकती है. वैसे सूत्र बताते हैं कि भाजपा सीता सोरेन को आगे कर सत्ता खेमे में खलबली मचाने की तैयारी में बैठी है.