डेस्क रिपोर्ट: झारखंड में सियासी संकट के बादल मंडरा रहे हैं कभी भी मुख्यमंत्री पर बड़ा फैसला आ सकता है बता दें कि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को भेज दी है राज्यपाल कभी भी इस पर फैसला ले सकते हैं.
इधर विपक्ष लगातार हमलावर रुख अख्तियार किए हुए हैं. इन सबके बीच मुख्यमंत्री की जो तस्वीरें सामने आ रही है उन तस्वीरों को गौर करने पर ऐसा लग रहा है, कि भले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रहे या ना रहे सरकार स्थिर रहेगी. मुख्यमंत्री के साथ जिस अंदाज में झारखंड के नंबर दो मंत्री चंपई सोरेन नजर आ रहे हैं, उससे राजनीतिक पंडित कई कयास लगा रहे हैं. अंदर खाने की अगर माने तो चंपई सोरेन के हाव- भाव बदले- बदले नजर आ रहे हैं.
वैसे चंपई सोरेन ने साफ कर दिया है कि सरकार पर कोई संकट नहीं है. मुख्यमंत्री भी हेमंत सोरेन ही रहेंगे. हालांकि यह संभव नहीं है, क्योंकि इलेक्शन कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री का विधायकी जाना तय है. वैसे मुख्यमंत्री ने जिस अंदाज में ट्वीट कर विपक्ष को चुनौती दिया है, वह भी गौर करने वाली है. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है कि कल भी जनता की सेवा कर रहा था, आज भी किया हूं और कल भी करूंगा. इन सबके बीच मंत्री चंपई सोरेन का बयान बहुत कुछ मायने रखता है. वहीं सरकार के सहयोगी दल भी सरकार के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. हालांकि कल क्या होगा इस पर हमारी भी नजर बनी रहेगी. पिछले दिनों मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन की ताजपोशी की खबरें खूब सुर्खियों में थी, मगर सहयोगी दलों के साथ बैठक के बाद संभवत: इसमें कुछ तब्दीली हुई है. हालांकि सारे किंतु- परंतु पर से पर्दा तब उठेगा जब राज्यपाल का निर्णय आएगा.
चम्पई क्यों
सूत्रों की अगर मानें तो मंत्री चंपई सोरेन के नाम पर सहयोगी दल भी एकजुट है. मंत्री चंपई सोरेन गुरुजी शिबू सोरेन के भी प्रिय पात्र है. इससे पूर्व भी वे मुख्यमंत्री बनते- बनते रह गए थे. अगर राज्य में राजनीतिक संकट गहराते हैं तो निश्चित तौर पर चंपई सोरेन अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखे जा सकते हैं.
कल्पना सोरेन क्यों नहीं ?
बता दें कि कल्पना सोरेन के विरोध में कोई और नहीं बल्कि उनकी जेठानी यानी जामा विधायक सीता सोरेन ही है. सीता सोरेन गुरुजी की बड़ी बहू है. उन्हें झामुमो के कई विधायकों का समर्थन प्राप्त है. इसके अलावा कल्पना विपक्ष के निशाने पर भी हैं. यदि मुख्यमंत्री के रूप में उनकी ताजपोशी हुई तो विपक्ष के साथ पार्टी में टूट और सहयोगी दलों की नाराजगी भी सत्ताधारी दल को उठानी पड़ सकती है.
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