राजनगर: झारखंड आंदोलनकारी हरमोहन महतो ने आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू को चुनौती देते हुए कहा है कि, सालखन मुर्मू कुड़मी समाज के इतिहास को जाने बगैर गलत टिप्पणी कर समाज को गुमराह कर रहे हैं. उन्होंने सालखन मुर्मू को खुले मंच पर सीधा संवाद करने की चुनौती दी है.
दरअसल हरमोहन महतो सालखन मुर्मू के उस बयान पर बिफरे हैं जिसमें उन्होंने कुड़मी समुदाय को एसटी साबित करनेवाले दस्तावेज पर सवाल उठाया था. साथ ही चुहाड़ विद्रोह और कोल विद्रोह में कुडमियों की भूमिका पर सवाल उठानेवालों के खिलाफ भी हरमोहन महतो ने विरोध करने वाले नेताओं को इतिहास पढ़ने की सलाह दी है.
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हरमोहन महतो (झारखंड आंदोलनकारी)
हरमोहन महतो ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, कांके विधायक समरीलाल, गीताश्री उरांव और सालखन मुर्मू के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली. श्री महतो ने उक्त बातें राजनगर स्थित कुड़मी सामुदायिक भवन में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहीं. उन्होंने कहा सालखन मुर्मू ओड़िसा से यहां आकर राज्य की जनता को गुमराह कर रहे हैं. उड़ीसा के मयूरभंज से वे दो- दो बार सांसद चुने गए, जिसमें कुड़मी मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई. जब ओड़िसा में राजनीतिक जमीन खिसकने लगी तो झारखंड के आदिवासियों मूल वासियों के बीच भ्रम पैदा कर यहां की जनता को आपस में लड़ाना चाह रहे हैं. उन्होंने कुड़मी समुदाय के एसटी में शामिल होने के दावे पर किसी भी मंच पर शास्त्रार्थ करने की बात कही है. साथ ही यह भी दावा किया है, कि कुड़मियों के दावे को यदि कोई भी नेता गलत साबित कर देता है, उसी वक्त कुड़मी समुदाय अपना आंदोलन वापस ले लेगा और सारे दस्तावेज को वहीं फाड़ देगा.
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हरमोहन महतो (झारखंड आंदोलनकारी)
बता दें कि पिछले दिनों बंगाल में कुड़मी समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर रेल रोको आंदोलन किया गया था. जिसके बाद झारखंड की राजनीति भी उफान मारने लगी है. एक तरफ सीएम हेमंत सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को कैबिनेट में मंजूरी देकर मूल वासियों को बड़ी सौगात दी, तो दूसरी तरफ बंगाल, उड़ीसा और असम में कुड़मी समुदाय द्वारा किए जा रहे आंदोलन का झारखंड पर भी असर पड़ने लगा है. झारखंड में भी कुड़मी को एसटी का दर्जा देने की मांग जोर पकड़ने लगी है. इसको लेकर आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कुड़मी के अस्तित्व पर ही सवाल उठाते हुए उनकी मांग को खारिज कर दिया था. वहीं जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो द्वारा लिखी गई किताब में चुआड़ विद्रोह के नायक के रूप में रघुनाथ महतो को पेश किए जाने पर भी उन्होंने सवाल उठाया था और इसकी शिकायत राष्ट्रपति से किए जाने की बात कही है. इन मुद्दों को लेकर झारखंड के आदिवासी और मूलवासी इन दिनों आमने- सामने है. यही वजह है कि झारखंड आंदोलनकारी हरमोहन महतो भी अब खुलकर कुड़मी समाज की वकालत में जुट गए हैं. बरहाल देखना यह दिलचस्प होगा कि पहले बाहरी- भीतरी के नाम पर झारखंड जला, उसके बाद डोमिसाइल, फिर स्थानीय नीति और अब कुड़मी समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर झारखंड में अस्थिरता का माहौल पैदा करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है. इससे सरकार किस तरह से पार पाएगी.
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