झारखंड ब्यूरो: लोकसभा चुनाव के ठीक बाद अगले साल झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. बता दें कि अलग झारखंड राज्य गठन के बाद सत्ताव पर सबसे ज्यादा दिनों तक बीजेपी ने शाशन किया है, बावजूद इसके बीजेपी को यहां संघर्ष करनी पड़ रही है. झारखंड अलग राज्य निश्चित रूप से बीजेपी की देन है. बीजेपी यहां प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लागभग 20 साल सत्तासीन रही है. मगर डबल इंजन की सरकार रहते पिछले पूर्ण बहुमत की रघुवर सरकार ने पार्टी का बेड़ा गर्क कर दिया जिसका खामियाजा पार्टी आलाकमान को बाहरी और पार्टी छोड़कर जा चुके बागियों के सहारे पार्टी को खड़ा करने पड़ रहे हैं. उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि पार्टी के नेताओं और आलाकमान ने कभी भी यहां सेकेंड लाइन तैयार किया ही नहीं. यही वजह है कि बाबूलाल मरांडी को पार्टी में ऐसे समय में लाया गया जब उनका जनाधार समाप्त हो चुका है.
करीब डेढ़ दशक तक बीजेपी को मरांडी गरियाते रहे मरांडी को बीजेपी. अब दोनों खुद को एकदूजे के लिए बता रहे हैं. राज्य की जनता इसे अच्छी तरह से समझ रही है साथ ही पार्टी के जमीनी स्तर के नेता और कार्यकर्ता भी समझ रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में बीजेपी का कुनबा पूरी तरह से बिखर चुका है. इसके लिये पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास- अर्जुन मुंडा और रघुवर दास- सरयू राय विवाद सबसे बड़ा कारण रहा. राज्य में बीजेपी के पतन की पटकथा 2014 के विधानसभा चुनाव से लिखी गयी, जब अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री रहते खरसावां सीट गंवानी पड़ी थी. हालांकि तब अर्जुन मुंडा ने इसे बड़े सादगी से स्वीकार किया और बेहद ही संयम का परिचय देते हुए खुद को केंद्र की राजनीति में ढाल लिया. आज वे केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री है. अर्जुन मुंडा की छवि बेदाग रही और उन्होंने ऐसे समय में राज्य की सत्ता का नेतृत्व किया जब राज्य में बीजेपी संघर्ष कर रही थी. तीन- तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा को एक झटके में राज्य के राजनीति से दूर करने के पीछे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को माना जाता है. जो उस वक्त बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे.
इसके पीछे का किंवदंती ये है कि गुजरात दंगे के वक्त अमित शाह ने अर्जुन मुंडा से किसी बात की मदद मांगी थी जिसे अर्जुन मुंडा ने अनसुना कर दिया था, समय का पहिया घूमा और केंद्र में मोदी सत्ता काबिज हुई और बनिया लॉबी में रघुवर दास ने अपनी जुगत भिड़ा ली. माना जाता है कि संघ भी अमित शाह और रघुवर दास के कहने पर अर्जुन मुंडा के खिलाफ थी, नतीजतन 2014 में अर्जुन मुंडा को चुनाव हारया गया और झारखंड की राजनीति से बेदखल कर दिए गए. तब बीजेपी को राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार मिली. मगर राजा जब अहंकारी हो जाये तो उसके राज्य को पतन से कोई रोक नहीं सकता है. ऐसा ही रघुवर दास के मुख्यमंत्री रहते झारखंड में हुआ. रघुवर दास के अहंकार की वजह से आजसू- बीजेपी का गठबंधन नहीं हुआ. सरयू राय सरीखे नेता बागी हो गए और आजसू- सरयू राय ने मिलकर पूरे राज्य में बीजेपी का बंटाधार कर दिया. जिस जमशेदपुर पूर्वी सीट पर बीजेपी 25 साल से अजेय रही थी उसी जमशेदपुर पूर्वी सीट पर पार्टी से बगावत कर सरयू राय ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और रघुवर दास को बुरी तरह से पराजित कर न केवल सत्ता से बल्कि झारखंड की राजनीति से सदा के लिए दूर कर दिया.
पार्टी ने रघुवर दास को सेवा के बदले उड़ीसा का राज्यपाल बनाया गया है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि जिस जमशेदपुर सीट से भाजपा पिछले 25 साल से अपराजेय रही वहां से निर्दलीय सरयू राय की प्रचंड जीत हुई इसमें बीजेपी की क्या भूमिका रही होगी इसे समझा जा सकता है. बहरहाल 2019 के चुनाव में सत्ता से बेदखल हुई बीजेपी नए सिरे से पार्टी को गढ़ने की कवायद में जुटी हुई है. इसी कवायद का हिस्सा बाबूलाल मरांडी है, जिन्हें घर वापसी कराया गया, हालांकि यहां मरांडी को मुंडा और रघुवर का साथ नहीं मिला. दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्री मरांडी के संकल्प यात्रा से दूर रहे. यहां तक कि पार्टी के कई बड़े नेता भी मरांडी की सभा से नदारद रहे. पार्टी आलाकमान ने रघुवर दास को किनारा लगा दिया, अर्जुन मुंडा केंद्र में सक्रिय हैं, मगर उनका प्रभाव मरांडी की तुलना में झारखंड में आज भी कई गुणा ज्यादा है फिर भी पार्टी आलाकमान अर्जुन मुंडा को झारखंड की राजनीति से दूर रख रही है इसके पीछे क्या कारण है अब बताने की जरूरत नहीं है. चलिए अब बीजेपी के अगले मिशन की बात करते हैं. खबर है कि बीजेपी आलाकमान कांग्रेसी सांसद गीता कोड़ा और उनके पति पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के साथ सरयू राय व अन्य बागियों को साधने में जुटी है. बीजेपी के लिए ये कदम कितना कारगर होगा ये तो आनेवाला समय तय करेगा, मगर इससे इतना जरूर साफ हो जाएगा कि झारखंड में बीजेपी के पास अब कोई ऐसा चेहरा नहीं रहा जो सत्ता की बैतरनी पार करा सके. जिस मधु कोड़ा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी. जेल जाने पड़े आज वही मधु कोड़ा बीजेपी के लिए कैसे प्रिय होने लगे ? इसे इस तरह से समझने की जरूरत है कि प्रचंड मोदी लहर में सिंहभूम संसदीय सीट से गीता कोड़ा का कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीतना और मधु कोड़ा का सिंहभूम के विधानसभा सीटों पर दबदबा कायम रहना. ये अलग बात है कि बीजेपी में मधु कोड़ा की एंट्री किन शर्तों पर होती है. क्योंकि कल तक बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता जिस मधु कोड़ा को भ्रष्टाचारी बताकर खुले मंच बेज्जत करते थे आज उसी मधु कोड़ा का महिमामंडन किस मुंह से करेंगे. खैर राजनीति में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे मगर इतना तो तय है कि झारखंड बीजेपी को अगला विधानसभा चुनाव भी बैसाखी के सहारे ही लड़ना पड़ेगा क्योंकि उसके पास मुख्यमंत्री का कोई ऐसा चेहरा नहीं जिसे दिखाकर बीजेपी सत्ता के शिखर पर काबिज हो सकती है. झामुमो- कांग्रेस और राजद को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि ऑपरेशन लोटस के खिलाड़ी अभी झारखंड में सक्रिय हैं.