सरायकेला: अंततः मंगलवार देर रात झामुमो ने विधानसभा चुनाव 2024 की पहली सूची जारी कर दी. मजे की बात ये है कि इनमें कई संभावित उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर लिया है. ऐसा शायद पहली बार हुआ जब बगैर टिकट की आधिकारिक घोषणा के उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया. खैर अब स्थिति स्पष्ट हो गया है. मंगलवार देर रात पार्टी ने 35 विधानसभा सीटों के उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं. इसमें कई चौंकाने वाले तथ्य हैं जिसपर यहां हम बात करेंगे.
झामुमो की पहली सूची से उन सारे नेताओं का नाम गायब है जिन्होंने बीजेपी छोड़ जेएमएम का रुख किया. खासकर कोल्हान प्रमंडल के बागी भजपाइयों को पहली सूची में जगह नहीं दिया गया जो चौंकाने वाला है. आपको बता दें कि बीजेपी छोड़ झामुमो में जानेवाले नेताओं में घाटशिला के पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू, बहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल सारंगी, जमशेदपुर जिला परिषद अध्यक्ष बारी मुर्मू, सरायकेला के कद्दावर भाजपा नेता गणेश महाली, बाहुबली नेता बास्को बेसरा और दुमका की पूर्व विधायक और मंत्री रही डॉ. लुईस मरांडी हैं. आपको बता दें कि ये वैसे नेता हैं जिनके लिए पार्टी या संगठन मायने नहीं रखता. इनके लिए टिकट प्राथमिकता है. चलिए ये भी जान लेते हैं कि भाजपा ने इन्हें क्यों टिकट नहीं दिया.
सबसे पहले बात करते हैं लक्ष्मण टुडू की. सरायकेला सीट से चुनाव हारने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने उन्हें 2014 के विधानसभा चुनाव में घाटशिला से टिकट दिलाया वहां उनकी जीत हुई. मगर 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला. उस वक्त रघुवर दास की चली थी. अर्जुन मुंडा खेमे के एक भी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया था. इस बार घाटशिला सीट से भाजपा ने पैराशूट प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को टिकट थमाया है. जिसके बाद लक्ष्मण ने पार्टी से किनारा कर झामुमो का रुख कर लिया. हालांकि झामुमो ने घाटशिला सीट से अपने उम्मीदवार मंत्री रामदास सोरेन पर ही भरोसा जताया और उन्हें टिकट दिया है. लक्ष्मण टुडू अर्जुन मुंडा के करीबी माने जाते हैं. लक्ष्मण के साथ जमशेदपुर जिला परिषद अध्यक्ष बारी मुर्मू ने भी झामुमो जॉइन किया है. बारी लक्ष्मण टुडू की बहन है. यही वजह है कि बहन ने भाई के साथ ही जाना जरूरी समझा.
इस सूची में अगला नाम बहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल सारंगी का आता है. झारखंड के पहले स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ दिनेश सारंगी के पुत्र कुणाल सारंगी ने विदेश में पढ़ाई पूरी की उसके बाद अपने पिता के राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिए बहरागोड़ा का रुख किया. पिता बीजेपी में थे मगर उन्होंने झामुमो का रुख किया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बेहद खास कुणाल को पार्टी ने 2014 में बहरागोड़ा से टिकट दिया और उन्होंने जीत दर्ज की, मगर 2019 आते- आते उनपर भगवा रंग हावी हो गया है विधायक रहते उन्होंने झामुमो छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया. यहीं से उनके सितारे गर्दिश में चले गए. 2019 के विधानसभा चुनाव में समीर कुमार मोहंती ने कुणाल को पराजित कर बहरागोड़ा सीट पर कब्जा जमा लिया. कुणाल के लिए पांच साल काफी भारी रहा. वे जमशेदपुर लोकसभा से टिकट की चाह लिए शहरी पॉलिटिक्स में सक्रिय हो गए मगर यहां वे पार्टी के अंदरूनी साजिश के शिकार हुए और विद्युत वरण महतो ने बाजी मार ली. हालांकि उस वक्त भी कुणाल ने झामुमो से टिकट की जुगत भिड़ाई थी मगर झामुमो के सभी विधायकों ने विरोध कर दिया था जिसके बाद उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया. उसके बाद कुणाल का भगवा मोह समाप्त हो गया. उन्होंने बीजेपी से किनारा कर लिया. अब वे न घर के रहे न घाट के. बीजेपी ने बहरागोड़ा से डॉ. दिनेशानंद गोस्वामी और झामुमो ने सिटिंग विधायक समीर कुमार मोहंती को टिकट दिया है. राजनीति के मैदान पर कुणाल फिलहाल रिटायर्ड हर्ट होकर स्वास्थ लाभ लेने चले गए हैं.
इस फेहरिस्त में भाजपा के कद्दावर नेता गणेश महाली का नाम सबसे अहम है. गणेश महाली भी अर्जुन मुंडा के खास हैं. बीजेपी ने उन्हें दो बार सरायकेला से टिकट दिया. दोनों बार चंपाई सोरेन ने उन्हें पटखनी दी. हालांकि गणेश ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे. सही मायने में कहें तो महाली ने ही सरायकेला विधानसभा में “कमल” के वजूद को जिंदा रखा अन्यथा कमल कब का मुरझा गया होता. जिस चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने पर भाजपाई इतरा रहे हैं उसी चंपाई सोरेन ने झामुमो के “तीर” से कमल को सरायकेला में छः बार भेदा मगर गणेश महाली ने अपने दम पर चंपाई का मुकाबला किया. गणेश को भरोसा था कि सरायकेला से टिकट काटे जाने पर उन्हें खरसावां से पार्टी उम्मीदवार बना सकती है इस वजह से वे खरसावां में नेट प्रैक्टिस करने लगे, मगर चंपाई के शागिर्द सोनाराम बोदरा यहां बाजी मार ले गए. इस सदमे को महाली झेल न सके और खरसावां के नेट पर ही मूर्छित हो कर 25 साल के भगवा पाठशाला से किनारा कर झामुमो का रुख कर लिया. हालांकि झामुमो ने अबतक उनका टिकट फाइनल नहीं किया है. इसकी वजह राजनीति के बाहुबली मौसम विज्ञानी बास्को बेसरा हैं. बास्को बेसरा भी बीजेपी छोड़ झामुमो में शामिल हुए हैं. वैसे बास्को हर पांच साल पर पार्टी और सीट बदलते रहते हैं, मगर उन्हें जीत नसीब नहीं हुआ है. वहीं दोनों पैराशूट नेताओं के झामुमो में आने के बाद चंपाई के जाने के बाद पार्टी का झंडा उठाने वाले जमीनी नेताओं में मायूसी छा गई है. भुगलू उर्फ डब्बा सोरेन और कृष्णा बास्के यह मानकर चल रहे थे कि पार्टी उनमें से ही किसी एक को टिकट देगी मगर आलाकमान ने सरायकेला सीट को होल्ड पर रखकर सभी को सस्पेंस में डाल दिया है. पार्टी से अब यह आवाज मुखर हो चले हैं कि झामुमो शीर्ष नेतृत्व इस सीट को हारा हुआ मान चुकी है इसलिए पार्टी इस सीट पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही है.
अब बात कर लेते डॉक्टर लुईस मरांडी की. बता दे कि रघुवर सरकार में मंत्री रही डॉक्टर लुईस मरांडी ने टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी और झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थाम लिया है. इससे पूर्व श्रीमती मरांडी पहले दुमका सीट से 2019 में विधानसभा चुनाव हारी उसके बाद दो- दो उपचुनाव हार चुकी है. ऐसे में भाजपा जैसे पार्टी से टिकट की उम्मीद करना बेमानी है. पार्टी उन्हें बरहेट से चुनाव लड़ना चाह रही थी, मगर लुईस ने मना कर दिया और अब झामुमो से जामा सीट से टिकट मिलने के शर्त पर पार्टी में शामिल हुई हैं. हालांकि झामुमो की पहली सूची में उनका नाम भी नहीं है. जामा में दूसरे चरण में वोट डाले जाएंगे. जामा से सिटिंग विधायक सीता सोरेन को बीजेपी ने जामताड़ा का टिकट दिया है. जहां उनका मुकाबला कांग्रेस के डॉ ईरफान अंसारी से होगा.
कुल मिलाकर कहे तो झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 कई झारखंडी नेताओं के राजनीतिक वजूद की लड़ाई होगी. इसमें सबसे कड़ी परीक्षा भाजपा की होगी क्योंकि भाजपा में एक- दो नहीं पांच- पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी. यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य पर भी मुहर लगाएगा. मालूम हो कि भाजपा के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा की धर्मपत्नी डॉ मीरा मुंडा, रघुवर दास की पुत्रवधु पूर्णिमा साहू दास, मधु कोड़ा की धर्मपत्नी गीता कोड़ा और चंपाई सोरेन चुनाव लड़ रहे हैं. इनमें इकलौते चंपाई सोरेन ऐसे नेता हैं जिनके पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी बीजेपी ने घाटशिला से उम्मीदवार बनाया है. इसकी कीमत भाजपा ने लक्ष्मण टुडू और बारी मुर्मू को गंवाकर चुकाई है. हालांकि चंपाई के करीबी सोनाराम बोदरा को भी बीजेपी ने खरसावां से टिकट देकर गणेश महाली जैसे नेता को खोया है.