DESK बुधवार को झारखंड की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ है. जहां राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वर्तमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास को उड़ीसा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. वहीं भाजपा नेता इंद्रसेन रेड्डी को त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है इसके साथ ही लगभग 20 साल जमशेदपुर पूर्वी से बीजेपी के विधायक रहे रघुवर दास का राजनैतिक सफर अब ठहर गया और वे अब गरिमामयी पद पर आसीन हो गए हैं. अपने सक्रिय राजनीतिक सफर में श्री दास पार्टी के कई अहम पदों पर रहे और पांच साल झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे.
पार्टी ने उनके जरिये राज्य में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का कार्ड खेला मगर पार्टी को रघुवर दास चला नहीं सके नतीजा झारखंड में बीजेपी सांगठनिक रूप से कमजोर हो गई और सत्ता से बेदखल हो गई. रघुवर दास का तानाशाही रवैया पार्टी पर भारी पड़ा और सरयू राय को बागी बनने के लिए मजबूर किया. इसके साथ ही अमरप्रीत सिंह काले सरीखे पार्टी के समर्पित नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसकी पार्टी को 2019 के विधानसभा चुनाव में बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.
हालांकि समय रहते पार्टी आलाकमान ने डैमेज कंट्रोल करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का घर वापसी कराया और झारखंड बीजेपी की चाबी उनके हाथों में सौंप दी. हालांकि बाबूलाल मरांडी के लिए रघुवर दास और पूर्व मुख्यमंत्री वर्तमान में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के बीच की खाई को पाटते हुए अपने लिए रास्ता बनाना इतना आसान नहीं था. प्रदेश अध्यक्ष बनते ही बाबूलाल मरांडी ने पूरे प्रदेश में संकल्प यात्रा की शुरुआत की जिसमें दोनों पूर्व मुख्यमंत्री एक साथ नजर नहीं आए हालांकि जमशेदपुर में रघुवर दास ने मंच सजा जरूर किया मगर अर्जुन मुंडा दूर-दूर ही रहे. हालांकि इस संकल्प यात्रा के जरिए बाबूलाल मरांडी ने पार्टी से रूठे नेताओं को मनाने में कामयाबी हासिल की है. आने वाले समय में यह देखने को मिल सकता है. इधर पार्टी आलाकमान की ओर से रघुवर दास को गरिमामयी पद देकर झारखंड की राजनीति से उनका अंत कर दिया गया है. अब मरांडी और मुंडा के बीच पेंच फंसने की संभावना है, हालांकि दोनों ही नेता राजनीति के मंजे खिलाड़ी हैं. मगर राजनीति में कब कौन किसपर भारी पड़ेगा इसका आंकलन बेहद ही कठिन है.
इधर रघुवर दास को किनारा लगाए जाने के बाद आगामी विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी से पार्टी का प्रत्याशी कौन होगा इसकी चर्चा जोर पकड़ने लगी है. माना जा रहा है कि अभय सिंह पार्टी के अगले प्रत्याशी हो सकते हैं, क्योंकि उनके कद का पार्टी में दूसरा कोई चेहरा फिलहाल नजर नहीं आ रहा है. अभय सिंह बाबूलाल मरांडी के बेहद करीबी हैं, जबकि अल्पसंख्यक चेहरा के रूप में पार्टी ने पहले ही अमरप्रीत सिंह काले को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. राजनीतिक पंडितों की माने तो अमरप्रीत सिंह काले की कुछ शर्तों पर घर वापसी हो सकती है. वे अर्जुन मुंडा के करीबी हैं साथ ही सरयू राय से भी उनके रिश्ते काफी मधुर हैं. वही रघुवर दास के किनारा लगने के बाद संभवत: सरयू राय का क्रोध शांत हो गया होगा. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सरयू राय भी मान जाएंगे और गरिमामयी पद हासिल कर अभय सिंह के रास्ते से हट जाएंगे. फिलहाल ये सब राजनीतिक चर्चा है. राजनीति में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.