झारखंड में वर्तमान सरकार के सत्तासीन हुए 27 महीने का वक्त बीत चुका है. राज्य की जनता ने बड़े उम्मीदों के साथ डबल इंजन की सरकार को छोड़ बदलाव का मार्ग चुना, मगर सड़क से लेकर सदन तक इन दिनों कोहराम मचा हुआ है.
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कहीं भाषा आंदोलन, तो कहीं खतियान आधारित नियोजन नीति को लेकर आंदोलन. विकास बैनरों और पोस्टरों तक सीमित होकर रह गई है. वैसे इसके लिए वर्तमान सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा देना सही नहीं होगा. क्योंकि झारखंड बने 22 साल बीत चुके हैं.
मगर जरा सोचिए इन 22 सालों में अगर लोगों को पीने का पानी 3 किलोमीटर दूर से ढोकर लाना पड़े तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा. बदलते झारखंड के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है.
यहां हम बात कर रहे हैं राज्य की आर्थिक राजधानी जमशेदपुर की. जहां जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र के छोटा गोविंदपुर पूर्वी पंचायत के सनातनपुर गांव की. जहां सैकड़ों की आबादी को पीने का शुद्ध पानी भी मयस्सर नहीं हो पा रहा है.
बड़े तामझाम और उम्मीदों के साथ यहां भी जनता ने बदलाव पर मुहर लगाई थी. मगर बदलाव के 27 महीने बाद भी यहां के लोगों को शुद्ध पीने का पानी मयस्सर नहीं हो पा रहा है. दिनचर्या के लिए लोगों को नदियों- तालाबों और अन्य स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. 3- 3 किलोमीटर की दूरी तय कर महिलाएं बुजुर्ग और बच्चे पानी ढोने को मजबूर है.
गांव में एक सोलर पंप है, जो पिछले 1 साल से खराब पड़ा है. स्थानीय लोग बताते हैं, कि इसको लेकर कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सरकारी विभाग को अवगत कराया गया है, मगर कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण अब तक नहीं दिखी. नतीजा प्रचंड गर्मी के मौसम में महिलाएं बूंद- बूंद पानी की जुगत में सुबह से लेकर शाम तक जुटी रहती है. महिलाएं 3 किलोमीटर दूर से पानी लाकर अपना और अपने परिवार की प्यास बुझाने को मजबूर है.
वैसे राज्य में अब पंचायत चुनाव का बिगुल बज चुका है. अब देखना यह दिलचस्प होगा, कि जनता अपने साथ हो रहे अन्याय का किस तरह बदला लेती है.
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