झारखंड में निवास करनेवाली आदिम जनजाति सबर जो अब विलुप्त होने के कगार पर है. राज्य सरकार इनके संरक्षण को लेकर कई योजनाएं चला रही है. क्या राज्य सरकार की योजनाएं धरातल तक पहुंच रही है ?
क्या सबरों के संरक्षण को लेकर सरकारी अमला गम्भीर है ? चलिए हम झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड के कालिकापुर पंचायत के सबर नगर लिए चलते हैं. बता दें कि सबर नगर में कुल 104 सबर आवास बने है.
जिसमे कई सबरों की मौत होने के बाद सबर आवास खाली पड़ा है. सबरों की असमय मौत का कारण बीमारी है. कई ऐसे सबर है जिनका बीमार होने के बाद ईलाज के अभाव मे मौत हो गया. आज भी इस सबर नगर में पांच टीबी के मरीज है, लॉक डाउन के कारण टीबी का इलाज बंद पड़ा है. पहले प्रखंड की ओर से टीवी का इलाज और दवा मिलता था, लेकिन बीते एक साल से टीबी की दवा और ईलाज यहां बंद हैं.
इस सबर नगर मे दो सबर महिलाएं बीमार है. सरकारी चिकित्सा की व्यवस्था नहीं होने पर सबर परिवार के लोग प्राइवेट डॉक्टर से अपना इलाज कराते है. प्राइवेट डॉक्टर भी 20 किलोमीटर दूर से आकर बीमार लोगों का इलाज करते है.
प्राइवेट डॉक्टर बताते है, कि साल 2000 से वे बीमार सबरों का इलाज करते आ रहे है. अधिक गंभीर बीमारी पर वे किसी बड़े अस्पताल या सरकारी अस्पताल एमजीएम जाने का सुझाव देते है. फीस के नाम पर वे सबर से पांच से दस रूपये लेते हैं. गरीब और असमझ होने के कारण अगर इनका प्राथमिक उपचार भी नही हुआ तो हालत गंभीर हो सकती है. इसलिये वे प्राथमिक उपचार के बाद सरकारी अस्पताल जाने का सुझाव देते है.
वहीं सबर नगर के ग्राम प्रधान आइबन सबर बताते है कि सबर नगर से सरकारी अस्पताल बहुत दूर है. पहाड़ी इलाका होने के कारण गांव मे सहिया भी नही आती. विवश होकर वे प्राइवेट डॉक्टर से इलाज कराते है. ग्राम प्रधान की पत्नी बसंती सबर बीमार थी, जिसके इलाज के लिये प्राइवेट डॉक्टर पहुंचे थे.
वैसे सबर नगर में इलाज के अभाव में रामू सबर अपाहिज बनकर घर पर बैठा है. राम सबर का पैर टूट गया है, बीते दो साल से इलाज के अभाव मे वह बैशाखी के सहारे चलता है. रामु सबर के बारे मे बताया गया कि वह जंगल से सूखी लकड़ियां लाने गया था. जहां जंगल मे भालू से जान बचाकर भागने के क्रम में उसका बांया पैर टूट गया है. मानिक सबर, नकुल सबर, सागेन सबर, गोपाल सबर और ओपीन सबर टीबी के मरीज है. पहले इन्हे प्रखंड से टीबी की दवा दी जाती थी, साथ ही ईलाज भी हो रहा था, लेकिन बीते एक साल से बंद है.
वहीं सबर नगर में पानी के लिये एक जलमीनार बनाये गये है, लेकिन संवेदक की लापरवाही से वह भी अधूरा पड़ा है. जलीनार से सबर के घरों तक नल लगाकर स्वच्छ पानी पहुंचाना था. नल तो लग गये, लेकिन पानी नही आता है. सबर बताते है कि केवल दिखावा के तौर पर जल मीनार बनाये गये है.
गौरतलब है कि झारखंड की सबसे प्राचीन और विलुप्त आदिम प्रजाति सबर जनजाति है और धीरे- धीरे संरक्षण के अभाव में इस जनजाति का ह्रास हो रहा है. सरकार लाख दावे कर ले मगर सरकारी मशीनरी इस विलुप्त होती प्रजाति के संरक्षण के प्रति कितनी गम्भीर है, ये जमशेदपुर के पोटका प्रखंड के कालिकापुर पंचायत के सबर नगर के सबरों की स्थिति को देखकर सहज समझा जा सकता है. यहां के सबर परिवारों का रोजगार जंगल से लकड़ी लाकर उसे बेचना ही मुख्य रोजगार है. आवास भी जर्जर है. अधिकतर सबर परिवार आज भी घर के बाहर किसी पेड़ के नीचे ही समय बिताते है.