जमशेदपुर: भारत एक कला प्रेमी देश है और फिल्में इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए सबसे सटीक उदाहरण हैं. फिल्में भारतीय सभ्यता का अभिन्न अंग हैं. भारत की चीर पुरातन संस्कृति और परंपराओं को स्थायित्व प्रदान करने में फिल्मों के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है. फिल्में केवल मनोरंजन का साधन मात्र नहीं हैं बल्कि इसने लाखों लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान किये हैं और यही कारण है कि आज भारत की पहचान विश्व के सबसे बड़े सिनेमा बाजार के रूप में स्थापित हो चुकी है.
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर सामाजिक पुनरोत्थान तक, स्थानीय समस्याओं से लेकर वैश्विक विषयों तक, व्यक्तिगत मानव संघर्ष से लेकर विशाल जनमानस के भावनात्मक ज्वार को प्रदर्शित करने तक फिल्मों ने हर बार अपनी उपयोगिता और आवश्यकता को सिद्ध किया है. वर्त्तमान समय में फिल्मों में आधुनिक तकनीकों के समागम ने फिल्मों के स्वरूप में और अधिक नवीनता और नवाचार को प्रोत्साहित किया है. नयी पीढ़ी से यह मेरा आग्रह रहेगा कि वो फिल्मों की विश्वसनीयता और इसकी उस गंभीरता के प्रति हमेशा सचेत रहें और फिल्मों को हमारे भविष्य की जरूरतों के अनुसार सजाने और संवारने के लिए प्रयास करें. उक्त कथन नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय के प्रशासनिक विभाग के अधिष्ठाता प्रो. नाजिम खान ने शनिवार को नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एंव जनसंचार विभाग द्वारा निर्मित लघु फिल्म ‘हाफ़ी’ के प्रदर्शन कार्यक्रम में अपने संबोधन वक्तव्य में कहे. संबंधित फिल्म का प्रदर्शन विश्वविद्यालय के सभागार में किया गया. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. डॉ. आचार्य ऋषि रंजन, कुलसचिव नागेंद्र सिंह, आईटी विभाग के अधिष्ठाता डॉ. रंजन कुमार मिश्रा, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, संकाय सदस्य, शिक्षकेत्तर और गैर शिक्षकेत्तर कर्मचारी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे.
प्रदर्शित फिल्म के विषय में जानकारी देते हुए विभाग की विभागाध्यक्षा दीपिका कुमारी ने बताया कि ‘हाफ़ी’ विभाग द्वारा निर्मित पहली योजनाबद्ध और लम्बी समयावधि की फिल्म है. इसका निर्माण पूर्ण रूप से विभाग के विद्यार्थियों द्वारा किया गया है. प्री प्रोडक्शन से लेकर प्रोस्ट प्रोडक्शन तक की पूरी कार्य योजना को विद्यार्थियों द्वारा ही संपन्न किया गया है. फिल्म के अनेक दृश्य जमशेदपुर शहर के अलग- अलग स्थानों पर फिल्माए गए हैं. फिल्म एक मजबूर पिता की कहानी बयां करती है कि कैसे वो स्वयं नंगे पांंव होते हुए भी अपने बच्चे के लिए जूतों का प्रंबध करना चाहता है ताकि उसके बच्चे की शिक्षा में कोई रूकावट ना आए. आर्थिक तंगी से ग्रसित एक पिता की संघर्ष की कहानी इस फिल्म की मुख्य विषय- वस्तु है. क्या उसकी अभिलाषा पूर्ण होगी या फिर वह विषम परिस्थितियों से टकराकर हार मान लेगा, यह फिल्म इसी विषय में है.
फिल्म में मुख्य भूमिका में विभाग के स्नातक पाठ्यक्रम के 2021- 2024 सत्र के विद्यार्थी अमृत श्रीवास्तव, पटकथा- संवाद का लेखन और निर्देशन ऋषभ राहुल, सह निर्देशक मानसी, डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी यशराज पांडेय, असिस्टेंट डीओपी अभिषेक सिंह और तुषार सागर, प्रोडक्शन हेड अरविंद सिंह, संपादक जनसंचार विभाग के सहायक प्रध्यापक सुमित कुमार और इसके अतिरिक्त विभिन्न विद्यार्थियों ने विभिन्न भूमिका निभाई है.