वैश्विक महामारी कोरोना त्रासदी का दंश इंसान तो इंसान देवी देवता को भी झेलना पड़ रहा है. पिछले दो साल से लागभग सारे धार्मिक अनुष्ठान और पर्व त्यौहारों पर इस त्रासदी का असर पड़ा है.
हर धर्म के लोगों को खुलकर पर्व- त्यौहार मनाने की पाबंदी झेलनी पड़ रही है. सनातन धर्म माननेवालों के लिए सबसे बड़ा पर्व दशहरा सर पर है. सरकारी गाइडलाइंस आ गयी है. कई पाबंदियों के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाना है. कई पूजा कमेटियों ने सरकारी आदेश को सिरे से खारिज करते हुए पूजा मनाने का निर्णय लिया तो कई ने सरकार के गाइडलाइंस के तहत पूजा करने की बाध्यता स्वीकार की. कहीं पंडाल को लेकर किचकिच, कहीं प्रतिमा को लेकर तो कहीं भोग व प्रसाद को लेकर पूजा कमेटियां और प्रशासन आमने- सामने हैं. जबकि पूजा शुरू होने में अब महज कुछ दिन ही बाकी रह गए हैं. जमशेदपुर में प्रतिमा को लेकर ताजा विवाद खड़ा हो गया है. जहां सोनारी आनंद आश्रम दुर्गा एवं काली पूजा समिति की ओर से बनाए जा रहे 26 फीट की प्रतिमा का काम जिला प्रशासन द्वारा रुकवा दिया गया है. वैसे 2.65 लाख की लागत से मां दुर्गा की प्रतिमा पिछले दो महीने से बन रही है,
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अब प्रतिमा को अंतिम रूप देना बाकी है. सवाल अब ये उठता है कि अब मां का क्या होगा. क्या मां की प्रतिमा अधूरी रहेगी ? क्या बगैर प्राण- प्रतिष्ठा के मां की प्रतिमा खंडित कर दी जाएगी ? शुभ और अशुभ फल के बीच पूजा समिति ने खुद को प्रतिमा विवाद से अलग कर लिया है. समिति के सदस्यों के अनुसार बगैर समिति की बैठक में निर्णय लिए अध्यक्ष एके मोइत्रा द्वारा प्रतिमा का निर्माण कराया जा रहा है. जिला प्रशासन के निर्णय के बाद अब प्रतिमा निर्माण का कार्य रोक दिया गया है. प्रतिमा का क्या होगा यह अध्यक्ष और जिला प्रशासन जाने. समिति का उससे कोई लेना-देना नहीं. बताया जाता है, कि समिति के अध्यक्ष एके मोइत्रा ने मन्नत मांगी थी. मन्नत पूरा होने के बाद पिछले 10 सालों से जमा की गई पूंजी से प्रतिमा निर्माण कराया है. जिस वक्त प्रतिमा निर्माण कार्य शुरू कराया गया उस वक्त सरकारी गाइडलाइन नहीं आया था. वैसे अब जिला प्रशासन, पूजा समिति और सरकार के आदेश पर टिका है आस्था और मां का भविष्य. कोरोना त्रासदी का मार झेल रहे भक्तों को जमशेदपुर में आस्था के नाम पर पहली बार प्रतिमा को लेकर दुविधा का मंजर भी देखने को मिलेगा. विदित रहे कि मिनी मुंबई कही जाने वाली जमशेदपुर को त्यौहारों का शहर भी कहा जाता है. यहां सभी धर्म के लोग अपने-अपने पर्व त्योहारों को बेहद ही भव्य तरीके से मनाते हैं, और शहरवासी भेदभाव भूलकर जमकर इसका लुप्त भी उठाते हैं. दुर्गा पूजा की अगर हम बात करें तो कोलकाता के बाद सबसे ज्यादा अगर श्रद्धालु और सैलानी पूजा घूमने कहीं जाते हैं तो वो है जमशेदपुर. यहां एक से बढ़कर एक पूजा पंडाल बनते हैं, जो स्वत: ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, लेकिन पिछले 2 सालों से सरकारी गाइडलाइन के पेंच में आस्था और परंपरा दोनों फंसकर रह गए हैं.