संपादकीय: पिछले एक हफ्ते से झारखंड में मचा सियासी तूफान सोमवार को फ्लोर टेस्ट, मंत्रिमंडल विस्तार और मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के बाद कुछ हद तक शांत जरूर हुआ है मगर पूरी तरह से शांत हो गया कहना जल्दबाजी होगा क्योंकि ये झारखंड है यहां हर रात सियासी गणित बनते- बिगड़ते हैं. यहां कौन रातोंरात सत्ता के शिखर पर बैठ जाए कौन रातोंरात मुख्यमंत्री से मंत्री बना दिये जायेंगे कहना मुश्किल है. यहां हर सियासी चेहरे शक के दायरे में आ चुके है. चाहे संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल ही क्यों न हों.
यहां हम बात कर रहे हैं राज्य में घटे हालिया सियासी घटनाक्रम की. जमीन घोटाला मामले में ईडी की कार्रवाई से सलाखों के पीछे भेजे गए पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल से बाहर निकलने के बाद जनता की उनके प्रति जिस तरह से सहानुभूति बरस रही थी उससे ऐसा लगने लगा था कि राज्य में एकबार फिर से “इंडिया” गठबंधन की वापसी होने जा रही है, मगर हेमंत सोरेन के राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने उन्हें रातों-रात झारखंड का नया सियासी विलेन बना दिया है. भले आज वे सत्ता के शिखर पर बैठ गए हैं मगर इसके दूरगामी परिणाम आने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकते हैं. हां इस नए राजनीतिक घटनाक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री और हेमंत सोरेन कैबिनेट में चुपचाप से मंत्री पद लेने वाले चंपाई सोरेन का कद काफी बड़ा हो गया है. इस पूरे प्रकरण में उन्होंने जिस राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया है उसने न केवल हेमंत सोरेन को बल्कि सोरेन परिवार को ही सियासी विलेन बना दिया है. सत्ता हथियाने की हेमंत सोरेन की हड़बड़ी ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है.
चंपाई को चार महीना भी क्यों नहीं झेल सके हेमंत सोरेन !
जिस चंपाई सोरेन के गोद में बैठकर हेमंत सोरेन ने राजनीति का ककहरा सीखा, जिस चंपाई सोरेन को दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सबसे प्रिय पात्र कहा जाता है, जिस चंपाई सोरेन को झामुमो का संकट मोचक कहा जाता है, जिस चंपाई सोरेन ने कई मौकों पर अपनी उपयोगिता साबित कर न केवल पार्टी बल्कि सोरेन परिवार को भी आगे बढ़कर संभाला उस चंपाई सोरेन पर चार महीने भी हेमंत सोरेन भरोसा क्यों नहीं कर सके राज्य की जनता इसका जवाब ढूंढ रही है. हेमंत सोरेन को चंपई सोरेन से इस कदर अदावत हो गई इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि झारखंड सरकार की ओर से छपाए गए कैलेंडर, डायरी यहां तक की जिन- जिन योजनाओं में चंपई सोरेन की तस्वीर लगी थी उसे रातों-रात हटा दिया गया, जिससे सरकार को करोड़ों के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है. वहीं चंपई सोरेन के 5 माह के कार्यकाल की यदि बात करें तो इसमें से 3 महीने लोकसभा चुनाव में निकल गए. महज 2 महीने के भीतर उन्होंने जिन- जिन कल्याणकारी योजनाओं का जिक्र किया उससे हेमंत सोरेन या यूं कहें सोरेन परिवार की चूल्हे हिल गई. उन्हें दोबारा सत्ता में नहीं लौटने का डर सताने लगा. इसमें सहयोगी दल कांग्रेस की भूमिका भी शक के दायरे में रही है. क्योंकि चंपई कैबिनेट के फैसले से दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान को भी लगने लगा था कि चंपई के रहते झारखंड मुक्ति मोर्चा मजबूती से उभर रहा है. उसके बाद दिल्ली से ही चंपई सोरेन के खिलाफ नॉरेटिव सेट किया गया जिसमें हेमंत सोरेन फंस गए और उन्होंने एक झटके में रातों- रात तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का फैसला ले लिया. यह सब इतनी तेजी से हुआ जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. इसमें राज भवन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. जिस राजभवन की वजह से राज्य में पिछले दिनों चंपई सोरेन के मामले में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गई थी उसी राजभवन ने रातों-रात हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाकर अपनी छवि धूमिल कर दी है. वैसे पिछले साढ़े चार साल की यदि बात करें तो झारखंड में राजभवन की भूमिका कटघरे में रही है. कई बार राजभवन ने राज्य में संवैधानिक संकट को हवा देने में अहम भूमिका निभाई है.
क्या चंचल गोस्वामी को बनाया जा रहा मोहरा !
सत्ता परिवर्तन को लेकर जिस तरह से हेमंत सोरेन की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है उसे लेकर सत्ता में बैठे लोगों के इशारे पर एक ऐसा नॉरेटिव सेट करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे चंपई सोरेन की छवि धूमिल हो. इसके लिए उनके मीडिया सलाहकार धर्मेंद्र गोस्वामी उर्फ चंचल गोस्वामी को टार्गेट किया जा रहा है. हालांकि इसमें वे सफल नहीं हो सके, क्योंकि राजनीति के मंजे खिलाड़ी चंपई सोरेन ने कहीं भी किसी भी मंच से ऐसा कोई बयान नहीं दिया जिससे सरकार और सोरेन परिवार के विरुद्ध उनके बयान के आधार पर नॉरेटिव बनाया जा सके. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद चंपई सोरेन के सादगी के कायल कोल्हान की जनता ने उन्हें सर आंखों पर बिठा लिया. यहां तक कि विपक्ष भी चंपाई सोरेन के समर्थन में खड़ा हो गया जो दर्शाता है कि चंपाई सोरेन का राजनीतिक रसूख कितना बड़ा है और झारखंड की राजनीति में उनके क्या मायने हैं. जिस तरह से चंचल गोस्वामी के खिलाफ नॉरेटिव बनाकर चंपाई की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का नैरेटिव सेट किया गया उसपर खामोशी से अपने खास अंदाज में चंपाई सोरेन ने मंत्री पद लेकर आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है. रही बात चंचल गोस्वामी पर लगे आरोपों की तो झारखंड के सियासी गलियारे का रास्ता ही कुछ ऐसा बन चुका है जिसमें उतरने वाले हर शख्स की पहचान भ्रष्टाचारी के रूप में होने लगी है. फिर चाहे विनोद सिन्हा हो, राकेश चौधरी हो या अभिषेक श्रीवास्तव उर्फ पिंटू हो. हर किसी का दामन यहां दागदार हुआ है. इसके लिए जांच एजेंसियां हैं जो अपना काम कर रही है. चंचल गोस्वामी इस खेल का मोहरा मात्र है जिसने अभी गुलाटी मारना शुरू ही किया था, जो मलाई खानेवालों को हजम नहीं हो सका और उन्होंने चंचल को टार्गेट करवाना शुरू कर दिया.
क्यों घबराया सोरेन परिवार चंपाई के बढ़ते रसूख से ?
दरअसल चंपाई सोरेन की राजनीति जमीन से जुड़ी है. 1995 से लेकर 2019 तक मात्र एकबार उन्होंने हार का मुंह देखा. सरायकेला विधानसभा सीट से उन्होंने प्रचंड मोदी लहर में भी अपनी जीत का परचम लहराया. तीन- तीन बार मंत्री एकबार मुख्यमंत्री बने मगर आजतक उनके दामन में भ्रष्टाचार के दाग नहीं लगा जो दर्शाता है कि चंपाई सोरेन का राजनीतिक रसूख कितना बड़ा है. ऐसा नहीं है कि सोरेन परिवार को उनपर एतबार नहीं था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का आदेश जारी होते ही उन्होंने अपनी कैबिनेट के सबसे भरोसेमंद मंत्री चंपाई सोरेन पर आस्था जताई और उन्हें सत्ता की चाबी सौंप दी. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस अंदाज में राजनीति की यह अंदाज सोरेन परिवार को खटक गया उसे अपनी बादशाह जाने का डर सताने लगा जिसे कांग्रेस आलाकमान समझ चुकी थी और फिर जो कुछ भी हुआ उसे राज्य की जनता ने देख लिया. पांच माह के कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहते चंपाई सोरेन ने राज्य के विकास का जो खाका तैयार किया उससे हेमंत सोरेन घबरा गए. चंपाई सोरेन को इसका क्रेडिट जाता देख उन्होंने पॉवर अपने हाथों में लेने की ठान ली. क्योंकि पार्टी का मुखिया होने के नाते वे सरकारी मशीनरी को नहीं साध सकते थे इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन पर ही आश्रित रहना पड़ता. जबकि हेमंत सोरेन द्वारा बुलाए गए बैठक में चंपाई सोरेन ने चार महीने के लिए सत्ता परिवर्तन को लेकर अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी, उन्होंने सलाह भी दिया था कि इससे राज्य की जनता में गलत संदेश जाएगा और विपक्ष हमलावर होगा मगर हेमंत सोरेन या उनके सिपहसालारों ने उनकी सलाह नहीं मानी. यहां तक कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन और अपने पति की गैरमौजूदगी में चंपाई सोरेन के छत्रछाया में गांडेय से उपचुनाव जीतने वाली कल्पना सोरेन भी खामोश रही. जबकि लोकसभा चुनाव के कैंपेनिंग के दौरान कल्पना ने एक कुशल नेत्री का परिचय दिया था. राज्य की जनता की पूरी सहानुभूति उन्हें मिल रही थी. चंपाई सोरेन के नेतृत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहली बार झारखंड झामुमो- कांग्रेस और राजद के गठबंधन वाली “इंडिया” ने 14 में से 5 लोकसभा सीटों पर फतह किया जो शिबू सोरेन या हेमंत सोरेन के रहते हासिल नहीं हो सका था. इतना ही नहीं इस दौर में विपक्ष भी खामोश रहा. मगर अब एकबार फिर से विपक्ष हमलावर है. वैसे भी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बीजेपी नेता योगेंद्र सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है. सुप्रीम कोर्ट यदि मामले पर एक्शन ले ले तो तैयार रहिये अब अगला सीएम कल्पना सोरेन बनने जा रही है क्योंकि हेमंत सोरेन ने बड़ी चतुराई से अपने तीसरे कार्यालय से अपने छोटे भाई बसंत सोरेन को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि सोरेन परिवार सत्ता से अलग रह ही नहीं सकता है. जिस- जिस नेता ने पार्टी में रहते अपनी अलग छाप छोड़ी उसे सोरेन परिवार ने साइड लगा दिया. इसमें एक बड़ा नाम सूरज मंडल का भी आता है. सूरज मंडल झामुमो के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. शिबू सोरेन को गढ़ने वाले सूरज मंडल ही थे जिसके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हाशिये पर भेज दिया गया. ऐसे ही अनेकों नाम झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े नेताओं के हैं जो आज राजनीतिक रूप से हाशिये पर चले गए, जबकि झारखंड आंदोलन में उन नेताओं की अपने- अपने क्षेत्रों में अलग पहचान थी. उसमें एक नाम शैलेंद्र महतो और कृष्णा मार्डी का भी है जिन्हें किसी न किसी रूप में पार्टी ने साइड लाइन पकड़ा दिया. वैसे इस फेहरिस्त में संथाल के भी कई नेता हैं जिन्हें सोरेन परिवार आपस में लड़ाकर अपनी राजनीति चमका रहा है इसमे पूर्व स्पीकर रहे प्रोफेसर स्टीफन मरांडी को ले लीजिए, लोबिन हेम्ब्रम को ले लीजिए. हालांकि चंपाई सोरेन को लेकर भी सोरेन परिवार ने बड़ा षड्यंत्र रचा मगर राजनीति के मंजे खिलाड़ी चंपाई सोरेन ने जिस शालीनता के साथ मुख्यमंत्री पद का त्याग कर मंत्रिमंडल में शामिल हुए उससे हेमंत सोरेन और जेएमएम थिंक टैंक हिल गया है. अब बारी चंपाई की होगी क्योंकि राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है. खासकर झारखंड की राजनीति में इसकी प्रबल संभावना हमेशा बनी रहती है. इसी राज्य में एक- दूसरे को कोसनेवाली पार्टी बीजेपी- जेएमएम ने गठबंधन कर सरकार चलाया है. इसी राज्य ने निर्दलीय मुख्यमंत्री देखा है. इसी राज्य के दो- दो मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के मामले में जेल भी जा चुके हैं. भविष्य में चंपाई सोरेन अपने अपमान का बदला किस रूप में लेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.
ये लेखक के अपने विचार हैं….