संपादकीय: राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में झारखंड स्थान पूरे देश में अलग पहचान बना चुका है. 23 साल के झारखंड ने 13 मुख्यमंत्री देख लिए. सत्ता के बनते बिगड़ते समीकरण और बेमेल गठबंधन की सरकार भी इस राज्य की जनता ने देखा. पहली बार किसी निर्दलीय को मुख्यमंत्री बनते इस राज्य की जनता ने देखा. इसी राज्य ने पहली बार मुख्यमंत्री को जेल जाते देखा. राजनीति के अनेकों दांव- पेंच इस राज्य की जनता ने देखे और इसका गवाह राजभवन भी बना.
राज्य के वर्तमान सियासी घटनाक्रम पर यदि गौर करें तो इसमें राजभवन की भूमिका बेहद ही दिलचस्प नजर आ रही है. आपको बता दें कि इसी साल सेना की जमीन को अवैध तरीके से खरीद- बिक्री के मामले में ईडी ने 31 जनवरी 2024 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था. इससे पूर्व हेमंत सोरेन ने अपना इस्तीफा राजभवन जाकर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को सौंपा था. उसके एकदिन बाद चंपाई सोरेन ने सरकार बनाने की दावेदारी पेश की थी; मगर राजभवन की ओर से बुलवा नहीं आया. उसके बाद सत्ता पक्ष के विधायकों को नाटकीय ढंग से बाहर शिफ्ट करने के बहाने एअरपोर्ट फिर वापस राजकीय अतिथिशाला और न जाने कहां कहां गहन सुरक्षा में रखा गया. राज्य में सियासी संकट गहराता देख करीब 48 घंटे बाद राजभवन से चंपाई सोरेन को बुलावा आया और उन्होंने 2 फरवरी 2024 को तीन मंत्रियों के साथ शपथ ली. इससे पूर्व सभी सत्ताधारी विधायकों का राजभवन में परेड कराया गया.
उसके बाद 153 दिन चंपाई सोरेन ने न केवल निर्विवाद रूप से सरकार चलाया, बल्कि अपने कुशल नेतृत्व के बूते राज्य के 14 में से पांच लोकसभा सीटों पर “इंडिया” गठबंधन के उम्मीदवारों को जिताकर भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की धर्मपत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन को पूरा सम्मान देते हुए गांडेय उपचुनाव जिताकर विधानसभा पहुंचाया. लोकसभा चुनाव के बाद 28 जून 2024 को झारखंड हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन को जमानत दे दी. हेमंत सोरेन के बाहर आने के बाद ऐसा लग रहा था कि चंपाई सोरेन के हाथों में ही सत्ता की बागडोर रहेगी और हेमंत सोरेन राज्य की जनता से मिल रहे सहानुभूति का लाभ चार महीने बाद होनेवाले विधानसभा चुनाव में उठाएंगे; मगर महज तीन दिन बाद ही अचानक हेमंत सोरेन ने सत्ताधारी विधायकों को अपने आवास तलब कर अपने नाम पर सहमति बना ली और मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. उस चंपाई सोरेन को जिन्होंने अपना पूरा सियासत गुरुजी यानी हेमंत सोरेन के पिता और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को समर्पित कर दिया. उन्होंने कभी अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए पार्टी आलाकमान के आगे हाथ नहीं फैलाया. झारखंड आंदोलन में गुरुजी के साथ साए की तरह चिपके रहे और झामुमो के हर दौर को देखा और जिया. गुरुजी को अपना आदर्श बतानेवाले चंपाई सोरेन ने हेमंत सोरेन के विरासत को न केवल मंझधार से निकाला, बल्कि पूरे शालीनता के साथ हेमंत सोरेन और संगठन के कहने पर सत्ता सौंप दी.
अब बात करें राजभवन की भूमिका पर तो इसपर आज कोई बात नहीं कर रहा है. न ही कोई पूछने की हिमाकत कर रहा है कि 3 जुलाई को राज्यपाल छुट्टी पर थे. 3 जुलाई को हेमंत सोरेन ने अपने आवास पर सत्ताधारी विधायकों और “इंडिया” गठबंधन के शीर्ष नेताओं की बैठक बुलाई और अपने नाम पर मुहर लगवा लिया. इतना ही नहीं छुट्टी कैंसिल कर राज्यपाल देर शाम राजभवन भी पहुंच गए और शाम 7:00 मुख्यमंत्री का इस्तीफा भी स्वीकार कर लिया. कयास ये लगाए जा रहे थे कि संभवतः 7 जुलाई को राज्यपाल हेमंत सोरेन को सरकार बनाने का न्यौता देंगे. तबतक चंपाई सोरेन कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहेंगे. राजभवन से इसी तरह का नोटिफिकेशन भी जारी हुआ था, मगर गुरुवार को ही अचानक राजभवन से हेमंत सोरेन को बुलावा आ गया. राजभवन से बुलावा आते ही विधायकों का समर्थन पत्र लेकर हेमंत सोरेन अपनी विधायक पत्नी कल्पना सोरेन, राजद विधायक सत्यानंद भोक्ता, माले विधायक विनोद सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर के साथ राजभवन पहुंचे और राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को सौंपा, न विधायकों का परेड न कोई औपचारिकता राज्यपाल ने शाम पांच बजे शपथ लेने का न्यौता हेमंत सोरेन को दे दिया. उसके बाद शाम पांच बजे हेमंत सोरेन ने राज्य के 13 वें मुख्यमंत्री के रूप में अकेले शपथ ली. इस दौरान उनके पिता शिबू सोरेन, माता रूपी सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन सहित “इंडिया” गठबंधन के लागभग सभी विधायक और बड़े नेता मौजूद रहे. शपथ ग्रहण करने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल और राज्य की जनता का आभार जताया. इसके साथ ही हेमंत सोरेन तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अब सत्ता संभाल चुके हैं. राज्यपाल शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को शपथ दिलाने के बाद फिर छुट्टी पर चले जायेंगे. ऐसे में सियासी पंडित राजभवन की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं कि आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि पांच माह पूर्व वही राजभवन जो राज्य में सियासी संकट का गवाह बना था, वही राज्यपाल जिन्होंने चंपाई सोरेन को विधायकों के साथ राजभवन का परेड कराया था आज एक झटके में सत्ता के अनुकूल कैसे हो गए ? राजनीतिक गलियारों में तरह- तरह की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी है. कुछ लोग तो ये भी कहते सुने जा रहे हैं कि हेमंत सोरेन की ताजपोशी के पीछे बीजेपी का कोई बड़ा दांव है. वैसे राजनीति के प्रयोगशाला के रूप में परिवर्तित हो चुके झारखंड के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि चंपाई सोरेन की पार्टी और सत्ता में क्या भूमिका तय होती है. क्या झारखंड की राजनीति में कोल्हान टाइगर चंपाई सोरेन के युग का अंत हो जाएगा या टाईगर पलटवार करेगा ! वैसे जो सहानुभूति हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद सोरेन परिवार को मिल रहा था अब वही सहानुभूति चंपाई सोरेन को मिल रही है. उन्हें विपक्ष का भी पूरा समर्थन मिल रहा है और राज्य की जनता का भी. वहीं कोल्हान की जनता इसे अपना अपमान के रूप में भी देख रही है. इसकी कीमत कौन चुकाता है यह भी देखना दिलचस्प होगा क्योंकि कोल्हान के एक को छोड़ सभी 12 सीटों पर झामुमो- कांग्रेस का कब्जा है जिसकी चाबी चंपाई सोरेन के हाथों में है.
ये लेखक के अपने विचार हैं