सरायकेला ब्यूरो: झारखंड हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य निर्वाचन आयोग गंभीर है. शुक्रवार को आयोग ने सूबे के जिलाधिकारियों एवं निर्वाचन पदाधिकारियों को पत्र भेजकर अलर्ट जारी कर दिया है. इसके साथ ही सूबे के निकायों में सरगर्मी तेज हो गयी है. हालांकि इसको लेकर राज्य सरकार को तीन हफ्ते में हलफनामा दाखिल करना है. वैसे सरकार ने अभी ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट तैयार नहीं किया है, न ही आरक्षण को लेकर स्थिति स्पष्ट है.
इंडिया न्यूज वायरल बिहार झारखंड आज से हर दिन सरायकेला- खारसावां जिले के अदित्यपुर नगर निगम, सरायकेला नगर पंचायत और कपाली नगर परिषद के जनता के मिजाज पर तैयार जमीनी रिपोर्ट पेश करने जा रही है. यहां बताना जरूरी है कि यह रिपोर्ट अलग- अलग श्रोतों से तैयार किए गए हैं. इसमें किसी राजनीतिक दखलंदाजी या दुर्भावना से ग्रसित मिश्रण नहीं है.
आज हम बात कर रहे हैं आदित्यपुर नगर निगम की. यहां इसबार जनता का मिजाज बदला- बदला है. पिछला चुनाव दलगत होने के कारण भाजपा ने यहां मेयर और डिप्टी मेयर सीट पर कब्जा किया था, मगर इसबार परिस्थियां बदल चुकी है. इसबार मेयर का ही चुनाव होना है, जबकि डिप्टी मेयर पार्षदों के बीच से चुना जाएगा इसलिए मेयर से ज्यादा पार्षद को लेकर प्रत्याशी माथापच्ची करते नजर आएंगे. वैसे निवर्तमान पार्षदों की शिथिलता भी उनपर भारी पड़ने वाली है. सर्वे में 35 में से महज 5 पार्षद वापसी कर सकते हैं जबकि 30 पार्षदों से जनता नाराज चल रही है. वहीं निवर्तमान मेयर और डिप्टी मेयर को लेकर जनता में जबरदस्त नारजगी देखी गई है. जनता इसबार पूरी तरह से बदलाव के मोड में है. यदि आरक्षण नहीं हटा तो जनता इस बार पुरेन्द्र नारायण सिंह को मेयर के रूप में देखना पसंद कर रही है.
पुरेन्द्र ही क्यों
दरअसल पुरेन्द्र नारायण सिंह की छवि बेदाग और साफ- सुथरी है. राजनीतिक दल से जुड़े होने के बाद भी उनके लिए सभी के दिलों में अलग छाप है. युवा- बुजुर्ग हर वर्ग के लिए पुरेन्द्र पहली पसंद बनकर उभरे हैं. पुरेन्द्र इससे पूर्व आदित्यपुर नगर परिषद के उपाध्यक्ष रह चुके हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि वे नगर निगम के मुद्दों से हटकर न राजनीति करते हैं न ही बयानबाजी करते हैं. नगर निगम क्षेत्र की जनता के हर सुख- दुःख में बिना भेदभाव के खड़ा होते हैं और हर संभव सहयोग करते हैं. टाटा स्टील में इंजीनियर की नौकरी छोड़कर विशुद्ध रूप से नगर निगम की राजनीति में खुद को ढाल लिया है. सालों भर वे किसी न किसी रूप से समाजसेवा में जुटे रहते हैं. किसी खास पार्टी के एजेंट की तरह वे काम नहीं करते यही उनकी खासियत है.
नकारात्मक पक्ष जो निवर्तमान मेयर और डिप्टी मेयर के लिए बना बाधक
पिछले चुनाव में निवर्तमान मेयर एवं डिप्टी मेयर ने प्रचंड जीत दर्ज की थी. पार्टी आधारित चुनाव होने के कारण जनता ने दोनों को सर- आंखों पर बिठाया और अपना जनप्रतिनिधि चुना. उस वक्त ट्रिपल इंजन की सरकार बनी. केंद्र में बीजेपी राज्य में बीजेपी और आदित्यपुर नगर निगम में बीजेपी की सरकार बनी. क्षेत्र में लगा कि विकास की गंगा बहेगी, मगर ऐसा हुआ नहीं. मेयर डिप्टी मेयर भाजपा के एजेंट की तरह काम करने लगे. कुछ दिनों तक दोनों के बीच शीत युद्ध चला. पार्षदों की लामबंदी हुई. कोई मेयर खेमा का प्रचारक बना तो कोई डिप्टी मेयर का. वैश्विक त्रासदी कोरोना के कालखंड में डिप्टी मेयर ने जरूर अपने एनजीओ के जरिये जरूरतमंदों को राहत पहुंचाया मगर मेयर ने वार्ड 28 और 29 पर अपना ध्यान केंद्रित कर अपने समर्थकों के बीच कूपन बांटकर राहत सामग्री बांटकर सुर्खियां बटोरीं. वैसे मेयर से आम जनता को मिलना उतना ही कठिन रहा जितना जनरल डायर के जमाने में जनरल डायर से मिलना. मेयर अपने समर्थकों को छोड़ सार्वजनिक रूप से अपने कार्यकाल में कम ही नजर आए. यही वजह रही कि मेयर को लेकर नगर निगम की जनता में बदलाव की धरना बन गई है.
अगले अंक में आपको बताएंगे कि पिछले बार के वैसे मेयर- डिप्टी मेयर प्रत्याशी जो चुनाव हारने के बाद पांच साल तक क्या करते रहे. क्या इस बार भी वे दावेदारी ठोंकेंगे ! यदि दावेदारी करते हैं तो जनता का उनके प्रति क्या नजरिया है आपको बताएंगे. आपको हमारी ये रिपोर्ट कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में हमें जरूर दें.