घाटशिला: आईआईटी खड़गपुर से उत्तीर्ण होकर करीब 17 वर्षों तक देश विदेश की नामी- गिरामी कंपनियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में सेवा देने के बाद करोड़ों रुपए का पैकेज ठुकरा कर यदि कोई जैविक खेती करना शुरू कर दें तो उसे आप क्या कहेंगे !
जी हां, यही परिचय है पूर्वी सिंहभूम जिला के चाकुलिया निवासी राहुल लोधा का. दरअसल गुडगांव में रहकर एक बड़ी निजी कंपनी के लिए काम करने के दौरान राहुल को लगा कि उनकी प्रतिभा एवं क्षमता का फायदा एक कंपनी विशेष को मिल रहा है, जिससे वह मुनाफा कमा रही हैं. क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जिससे अपने गांव के आसपास के लोग लाभान्वित हो तथा प्रकृति का भी संरक्षण हो. इसके बाद ही राहुल ने कारपोरेट कल्चर व महानगरों की चमक- दमक भरी जिंदगी का त्याग कर गत वर्ष जुलाई में चाकुलिया का रुख किया.
अब वे गोबर व खर पतवार के जरिए जैविक खाद (केंचुआ खाद) का उत्पादन कर रहे हैं. राहुल के इरादे नेक है एवं विचार बिल्कुल स्पष्ट. वे ग्रामीण किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं, ताकि रासायनिक खादों का प्रयोग बंद हो एवं मिट्टी की उर्वरा क्षमता बची रहे. उन्होंने उर्वीरा सस्टेनेबल लर्निंग एंड डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जैविक खाद उत्पादन की कंपनी शुरू की है.
*7 महीने पहले शुरू किया जैविक खाद उत्पादन*
चाकुलिया लौटने के बाद गत वर्ष अगस्त में राहुल ने चाकुलिया से करीब 5 किमी दूर भातकुंडा पंचायत के जोरडीहा गांव में परती पड़ी अपनी पुश्तैनी जमीन एवं काजू बागान में जैविक खाद उत्पादन का काम शुरू किया. लेकिन इसके लिए उन्होंने लीक से हटकर अलग तरीका अपनाया. जैविक खाद उत्पादन के लिए सीट बनाने की बजाय उन्होंने काजू पौधों के बीच की खाली जमीन का उपयोग किया. पौधों के कतार के बीच उन्होंने बेड बनाकर गोबर डाल दिया. इससे उन्हें यह फायदा हुआ कि खरपतवार अलग से नहीं डालना पड़ा क्योंकि काजू पौधे के सूखे पत्ते खुद ही इसमें गिर जाते है. पौधों की जड़ से थोड़ी दूर पर उन्होंने लत वाली सब्जी जैसे लौकी, झींगा आदि लगा दिया है. सब्जी की लत काजू के पौधों पर चढ़कर फलने लगी है. इससे उन्हें दोहरा फायदा हो रहा है. राहुल फिलहाल 8 टन केंचुआ खाद का उत्पादन कर रहे हैं.
उनका लक्ष्य 300 बेड से अधिक तैयार कर 1000 टन केंचुआ खाद उत्पादन करना है. उत्पादन जितना अधिक होगा खर्च उतना ही कम बैठेगा.
*आसपास के गांव के किसान होंगे लाभान्वित*
राहुल अपने फार्म में उत्पादित केंचुआ खाद को किसानों को न्यूनतम मूल्य पर देना चाहते हैं जबकि मुनाफे के लिए शहरों में रहने वाले सक्षम लोगों को बेचने की उनकी योजना है. राहुल कहते हैं कि रासायनिक खाद एवं कीटनाशक भूमि को तो बंजर बना ही रहे हैं इंसानों में भी कैंसर जैसे रोग पैदा कर रहे हैं. इसलिए जैविक खाद को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है. इसके लिए यह जरूरी है, कि किसानों को सरकार द्वारा सब्सिडी पर दिए जाने वाले यूरिया की कीमत से कम दर पर जैविक खाद उपलब्ध कराया जा सके. ऐसा होने पर किसान स्वत: जैविक कृषि के लिए उन्मुख होंगे. राहुल द्वारा नई तकनीक से किए जा रहे प्रयोगों को लेकर जोरडीहा, धोबासोल, दक्षिणसोल, सोनाहारा आदि के किसान उनसे जुड़ने लगे हैं. राहुल आने वाले दिनों में किसानों को प्रशिक्षित करने की भी योजना बना रहे हैं.
*नई तकनीक से बना रहे मिट्टी का घर*
राहुल अपने काजू बगीचे के बीच नई तकनीक से मिट्टी का घर बनवा रहे हैं. इसमें उन्होंने बाहर से सीमेंट का प्रयोग किया है जबकि भीतर से मिट्टी का. उनका कहना है कि मिट्टी नेचर फ्रेंडली है. घर के सिर्फ उसी हिस्से में सीमेंट का प्रयोग किया जा रहा है जो पानी के संपर्क में आ सकता है. बाकी दीवार पर मिट्टी का लेप एवं फर्श भी मिट्टी का रहेगा. राहुल की जमीन गांव से दूर होने के कारण बिजली की समस्या आड़े आ रही थी, इससे निजात पाने के लिए उन्होंने 10 किलो वाट का सोलर पैनल निर्माणाधीन घर की छत पर लगा लिया है. इससे न केवल रोशनी मिलती है, बल्कि पंप चला कर पानी की जरूरत भी पूरी हो जाती है. राहुल कहते हैं कि विकास की वही परिभाषा सही है, जिसमें हम प्रकृति का संरक्षण कर सकें. पारिस्थितिक संतुलन बिगाड़ कर विकास की परिकल्पना गलत है.