ईचागढ़/ Sumangal Kundu (Kebu) थाना क्षेत्र के पातकुम दिशूम मौजा देवलटाड़ नौवाडीह रुगड़ी, आगसिया में आदिवासी मांझी समाज द्वारा सरहुल कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगो द्वारा जाहेरगाढ में भव्य रूप से बाहा महोत्सव का आयोजन किया गया.
यहां सबसे पहले नायके बाबा (पुजारी) ने विधिवत रूप से पूजा अर्चना कर सखुआ फूल पुरुषो को कान मे व महिलाओ को माथे के जूड़ों में लगाया. साथ ही क्षेत्र के सुख शांति की कामना की गई. सभी लोगों ने जाहेरगाढ में माथा टेका व प्रसाद के रुप मे खिचड़ी ग्रहण किया.
बता दें कि आदिवासी समाज में बाहा (सरहुल) पर्व को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताने के साथ नये साल का उल्लास के रूप में मनाया जाता है. प्रकृति में आए नए फल- फूल और धरती से उपजे अन्न का उपयोग किया जाता है. वास्तव में बाहा आदिवासियों के प्रकृति- प्रेम और जीवन- यापन के लिए उससे जुड़ाव को दर्शाता है.
बाहा आदिवासी समाज के प्रमुख और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है. यह पर्व बसंत ऋतु से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि तक मनाया जाता है. संथाल परंपरा के अनुसार मुलु मोड़े माहा से बाहा (सरहुल) पर्व का आयोजन शुरू हो जाता है. दरअसल बाहा (सरहुल) मनाने के लिए कोई निश्चित तिथि नहीं है. इसे अलग- अलग गांवों में सुविधानुसार अलग- अलग तिथि को मनाया जाता है. इस पर्व में साल और महुआ के फूलों से प्रकृति की आराधना की जाती है. ग्रीष्म ऋतु में जब पेड़ों पर नए पत्ते और फल- फूल आते हैं, तब इस सुखद प्राकृतिक बदलाव का आदिवासी समाज के लोग बाहा पर्व के रूप में नाचते- गाते स्वागत करते हैं.
जाहेरथान में परंपरा के अनुसार प्रकृति की आराधना की गई, (नायके बाबा) लाया यानि पुजारी देवताओं की साल व महुआ के फूल से पूजा किए,इस दौरान ग्राम देवता, जंगल, पहाड़ और प्रकृति की पूजा- अर्चना कर सुख- समृद्धि और गांव को निरोग रखने की मन्नत की. इस अवसर पर मुर्गी की बलि भी दी गई. रंग- बिरंगे फूलों से प्रकृति करती है शृंगार बाहा पर चारों ओर उमंग और उल्लास रहता है. कहते हैं बाहा खुशियों का पैगाम लेकर आता है. ऐसे समय में घर फसल से भरा रहता है, पेड़- पौधों में फल- फूल रहता है. प्रकृति यौवन पर होती है, रंग- बिरंगे फूलों और पेड़ों में नए पत्तों से प्रकृति अपना श्रृंगार करती है. ऐसा माना जाता है कि प्रकृति किसी को भी भूखे नहीं रहने देती है. शायद इसीलिए बाहा (सरहुल) पर्व धरती माता को समर्पित महत्वपूर्ण पर्व है. बाहा पर्व में आदिवासी समाज नई फसल का उपयोग करते हैं.
इसके साथ ही पेड़ों में लगे फल- फूल और पत्तों का भी उपयोग शुरू किया जाता है. इस पर्व को संताल, मुंडा, उरांव, हो, खड़िया समेत विभिन्न आदिवासी समुदाय के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते है. जिससे की सांस्कृतिक और प्राकृति धरोहर के सम्मान मे वृद्धि हो, कार्यक्रम मे हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विशाल जुलूस निकाला गया जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने शिरकत की. इस मौके पर विक्रांत मांझी , कुलदीप मांझी, भुवनेश्वर मांझी, बद्री नाथ मांझी, प्रकाश मांझी आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे.