सरायकेला/ Pramod Singh एक तरफ जिला खनन विभाग जिले में चल रहे अवैध बालू के कारोबार के खिलाफ लगातार छापेमारी कर बालू माफियाओं पर नकेल कसने का काम कर रहा है, वहीं दूसरी ओर खनन विभाग के पीठ पीछे ईचागढ़ थाना क्षेत्र के बालू माफिया “सईयां भए कोतवाल अब डर काहे का” वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं.

ईचागढ़ थाना क्षेत्र से महज 500 मी की दूरी पर बालू माफिया दर्जनों ट्रैक्टर पर नदी घाट से न केवल अवैध बालू का उठाव कर रहे है बल्कि ईचागढ़ थाना होते हुए बालू गाड़ी का आवागमन भी हो रहा है. बावजूद इसके पुलिस मूक दर्शक बनकर तमाशा देख रही है.
मालूम हो कि मंगलवार तड़के जिला खनन पदाधिकारी ज्योति शंकर सतपति के नेतृत्व में विभाग ने वीरडीह नदी घाट पर छापेमारी अभियान चलाकर करीब 17500 सीएफटी अवैध बालू भंडार को जप्त किया. विभाग के वहां से हटते ही मंगलवार की शाम के करीब 4:30 बजे बालू माफिया सक्रिय हो गए और उसी नदी घाट से दर्जनों ट्रैक्टर के माध्यम से बालू का उठाव कर उसका परिवहन करने लगे लेकिन महज 500 मी की दूरी पर बैठे ईचागढ़ थाने की पुलिस मूक दर्शक की भांति बालू माफियाओं को अवैध बालू का उठाव और परिवहन करते देखते रही. इससे साफ प्रतीत होता है कि पुलिस के मिली भगत से ही अवैध बालू का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है और बालू माफियाओं का हौसला बुलंद होता जा रहा है. अब इसमें थाना प्रभारी की क्या भूमिका है इसकी जांच करेगा कौन ये बड़ा सवाल है.
विदित हो कि जिले में चल रहे अवैध अफीम की खेती के विरुद्ध अभियान में ईचागढ़ थाना क्षेत्र से भारी पैमाने पर हो रहे अवैध अफीम की खेती को विनष्ट किया गया है. जो साफ दर्शाता है कि थानेदार की निष्क्रियता की वजह से ही अफीम माफियाओं ने अपने पांव क्षेत्र में जमाना शुरू किया था. वैसे गनीमत रही कि जिले के एसपी की सख्ती की वजह से न केवल ईचागढ़ बल्कि पूरे जिले को अवैध अफीम की खेती से लागभग मुक्त कराया जा चुका है मगर अवैध बालू खनन के मामले में थानेदार की भूमिका पर नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों की चुप्पी कई सवालों को जन्म दे रहा है. सूत्र बताते हैं कि ईचागढ़ के थानेदार की पहुंच ऊपर तक है. यही वजह है कि इतने अवैध कारोबार के प्रमाण मिलने के बाद भी उनपर कोई हाथ डालने की हिमाकत नहीं कर रहा है.
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