गम्हरिया: केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के विरोध में कोल्हान सहित राज्य भर का कुड़मी समाज आक्रोशित है. हर तरफ केंद्रीय मंत्री के विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं. गौरतलब है कि केंद्रीय जनजातीय मामले विभाग की ओर से सोमवार को केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने सदन में झारखंड की कई जातियों को शामिल करने के लिए संविधान (जनजाति) आदेश 1950 संशोधन विधेयक पेश किया.
जिसमें देशभर के 10 जनजातीय समुदायों को एसटी का दर्जा दिया गया मगर कुड़मी को शामिल नहीं किया गया है. जिससे राज्य के कुड़मी आक्रोशित हो उठे और राज्य के कुड़मी नेता राष्ट्रपति दरबार तक अपनी फरियाद लगा चुके हैं. इधर बुधवार को सरायकेला खरसावां जिला के गम्हरिया प्रखंड के आसनबनी गांव के कालिया डुंगरी में कुडमी समाज द्वारा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का पुतला दहन किया गया. बताया गया कि क्षेत्र के कुड़मी समुदाय के लोगों ने बड़ी आस्था के साथ अर्जुन मुंडा को एक विधायक से लेकर मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने में काफी सराहनीय सहयोग दिया, मगर आज उन्होंने कुड़मीयों को ठगने का काम किया. इसी के विरोध में बुधवार को केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का जोरदार विरोध करते हुए कुड़मी समाज के लोगों ने पुतला दहन किया और अपनी एकता दिखाते हुए अगले चुनाव में इस अपमान का बदला लेने की हुंकार भरी. साथ ही समाज द्वारा यह भी निर्णय लिया गया कि कोई व्यक्तिगत कार्यक्रम में अगर अर्जुन मुंडा को आमंत्रण करता है तो समाज उनका बहिष्कार करने का काम करेगा.
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अर्जुन मुंडा की सरकार ने 2005 में की थी अनुशंसा
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद तत्कालीन बाबूलाल मरांडी की सरकार के समय से ही कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग उठ रही है. बाबूलाल मरांडी सरकार के मंत्री लालचंद महतो, मधु सिंह, जलेश्वर महतो, सुदेश महतो सहित इस समुदाय के विधायकों ने जोरदार तरीके से इस मांग को उठाया था. बाबूलाल मरांडी के बाद अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री बने. अपने दूसरे कार्यकाल में वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग केंद्र से की थी. हालांकि, इसपर कोई निर्णय नहीं हो पाया. बाद में यह ठंडे बस्ते में चला गया. अब नए सिरे से भाजपा और आजसू इसपर दबाव बनाने की तैयारी में है. वैसे अर्जुन मुंडा के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद राज्य के कुडमियों को लगा था, कि इस बार उनकी मुराद पूरी होगी मगर उन्हें निराशा हाथ लगी.
झारखंड की राजनीति में असरदार है यह मुद्दा
कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग पहली बार नहीं उठ रही है. अलग राज्य बनने के बाद से ही यह मुद्दा झारखंड में हावी रहा है. इसका प्रमुख कारण है झारखंड में कुड़मी समुदाय की प्रभावी भूमिका. देखा जाय तो झारखंड की लगभग 32 विधानसभा क्षेत्रों समेत छह लोकसभा क्षेत्रों में इस समुदाय का वोट जीत-हार में निर्णायक साबित होता है. यही कारण है कि सभी दलों के एजेंडे में इस समुदाय को आदिवासी का दर्जा देना शामिल है. इसकी अनदेखी करने वाले दलों को राजनीतिक तौर पर नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसे देखते हुए आने वाले दिनों में यह मुद्दा तूल पकड़ेगा. फिलहाल कुड़मी ओबीसी में शामिल हैं. झारखंड की सीमा से सटे बंगाल के पुरूलिया, बांकुड़ा और मिदनापुर एवं ओडि़शा के मयूरभंज और क्योंझर में इस समुदाय की बड़ी आबादी है. झारखंड विधानसभा के आठ विधायक और दो सांसद इस समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. सरकारी नौकरियों में भी इनकी बड़ी भागीदारी है.
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आदिवासी समुदाय करता रहा है इसका विरोध
कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने के मामले में झारखंड की राजनीति दो धुर में बंटी हुई है. शुरू से ही आदिवासी समुदाय इसका विरोध करता रहा है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि एक बार फिर से इसपर विरोध भी शुरू हो.
राजनीतिक नुकसान को देखते हुए कोई दल इसका खुलकर विरोध नहीं करता, लेकिन इस मांग के खिलाफ आदिवासी जन संगठन आवाज उठाते रहे हैं. आदिवासी समुदाय में शामिल करने के लिए जनजातीय शोध संस्थान की अनुशंसा भी आवश्यक है. पूर्व में जनजातीय शोध संस्थान इस समुदाय को आदिवासी की पहचान देने से इंकार कर चुका है.
हालांकि सोमवार को संसद में संविधान संशोधन बिल पेश होने के बाद सांसद अधीर रंजन चौधरी ने मुद्दा उठाया कि जब पूर्व में कुड़मी जनजाति समुदाय में शामिल था तो इसपर शोध करने की क्या जरूरत है? बहरहाल जिस तरीके से भाजपा और आजसू ने इस मुद्दे को लपका है और सीधे राष्ट्रपति के समक्ष आवाज बुलंद की है, इसमें कोई दो राय नहीं कि एक बार फिर कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग पर सियासी घमासान परवान चढ़ेगा. सत्तारूढ़ दल झामुमो का एक बड़ा कुनबा भी कुड़मी जाति से है. महतो, मांझी और मुस्लिम राजनीति के बूते सत्ता में आई झामुमो इस मुद्दे पर भाजपा और आजसू को वॉक ओवर देगा, इसमें संसय है.
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