GAMHARIA भले झारखंड सरकार ने कुर्सी बचाने के लिए 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति झारखंड में लागू करने की अनुशंसा कर दी है, मगर इसका पेंच आदिवासियों- मूलवासियों के बीच ही फंसने लगा है, हालांकि नीति अभी प्रस्तावित है, मगर यदि प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसका नुकसान यहां के आदिवासियों- मूलवासियों को ही उठाना पड़ सकता है. जब रोजगार के लिए आदिवासी- मूलवासी ही एक दूसरे का दुश्मन बनने लगेंगे.
ऐसा ही एक नजारा सोमवार को सरायकेला- खरसावां जिला के गम्हरिया प्रखंड अंतर्गत बुरुडीह पंचायत के छोटा बड़ामारी गांव में देखने को मिला. जहां आंगनबाड़ी सेविका के चयन के लिए पांच उम्मीदवारों ने दावेदारी की थी. इनमें से चार उम्मीदवार आदिवासी थी, जबकि एकमात्र मूलवासी थी. योग्यता और जनसंख्या के आधार पर मूलवासी का दावा मजबूत था. मगर आदिवासियों ने इसपर आपत्ति जता दी और अपनी उम्मीदवारी पेश कर डाली. चयन के लिए पहुंची समाज कल्याण पदाधिकारी, मुखिया को काफी मशक्कत करनी पड़ी. मामला फिर भी नहीं बना. सूचना अंचलाधिकारी को दी गई. अंचलाधिकारी के पहुंचने के बाद भी समर्थकों और विरोधियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. अंततः चयन को ही स्थगित कर दिया गया.
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बताया गया कि गांव का फिर से सर्वे कराया जाएगा उसके बाद ही आंगनबाड़ी सेविका का चयन किया जाएगा. सभी अधिकारी बैरंग वापस लौट गए. वैसे सूत्रों के अनुसार सरकारी स्तर पर जो सर्वे कराया गया उसमें आदिवासियों की संख्या ज्यादा दिखाई गई, जबकि इलाके में मूल वासियों की संख्या ज्यादा है. बता दें कि बड़ा मारी गांव में ओबीसी (मूलवासी) की संख्या 425 है, एसटी (आदिवासी) की संख्या 337 और अनारक्षित 25 हैं. अब सवाल यह उठता है कि नियम के आधार पर दावेदारी किसकी बनती है. बहरहाल अब फिर से सर्वे कराया जाएगा और रिपोर्ट आने तक चयन प्रक्रिया रद्द रहेगी. इस बीच गांव में ही गुटबाजी होगा. कल तक जो प्रेम और भाईचारगी के साथ रहते थे, अब एक दूसरे के बीच विद्वेष फैलेगा, हिंसा से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.
बाईट
सीडीपीओ- गम्हरिया अंचल
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