गालूडीह: उल्दा में चल रहे वैष्णो देवी धाम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के उपलक्ष्य में आयोजित 8 दिवसीय देवी भागवत कथा में कथा वाचक स्वामी हिदयानंद गिरी महाराज ने कथा के पांचवे दिन महाभारत में कर्ण की प्रताड़ना के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि महाभारत में कर्ण एक ऐसा पात्र था जिसके देव पुत्र होने के बाद भी सामाजिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा और उसको समाज में अस्वीकार किया गया.
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कर्ण एक महान योद्ध और दानी राजा भी था, लेकिन कर्ण ने कुरुक्षेत्र में अपने भाइयों यानी कि पांडवो को छोड़कर कौरवों का साथ दिया. कुंती और सूर्य का पुत्र था कर्ण, कुंती ने कर्ण को अविवाहित होते हुए जन्म दिया था. एक रथ सारथी ने कर्ण का पालन किया था, जिसके कारण कर्ण को सूतपुत्र कहा जाता था. उन्होंने बताया, कि अविवाहित माता से जन्म और रथ सारथी के पालन के कारण कर्ण को समाज में ना तो सम्मान मिला और ना अपना अधिकार मिला. कर्ण के सुतपुत्र होने के कारण द्रोपदी, जिसको कर्ण अपनी जीवन संगनी बनाना चाहता था, उसने कर्ण से विवाह से इंकार कर दिया था. इन सब कारणों से ही कर्ण पांडवों से नफरत करता था और कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों का साथ दिया था. भगवान कृष्ण कर्ण की मौत का कारण बने. भगवान कृष्ण ने ही अर्जुन को कर्ण के वध का तरीका बताया था. एक दानवीर राजा होने के कारण भगवान कृष्ण ने कर्ण के अंतिम समय में उसकी परीक्षा ली और कर्ण से दान मांगा तब कर्ण ने दान में अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिए. इस दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने कर्ण को वरदान मांगने को कहा. कर्ण ने वरदान रूप में अपने साथ हुए अन्याय को याद करते हुए भगवान कृष्ण के अगले जन्म में उसके वर्ग के लोगो के कल्याण करने को कहा. दूसरे वरदान रूप में भगवान कृष्ण का जन्म अपने राज्य लेने को मांगा और तीसरे वरदान के रूप में अपना अंतिम संस्कार ऐसा कोई करे जो पाप मुक्त हो. वरदान देते हुए भगवान कृष्ण ने सारे वरदान स्वीकार कर लिए, परन्तु तीसरे वरदान से भगवान कृष्ण दुविधा में आ गए और ऐसी जगह सोचने लगे, जहां पाप ना हुआ हो, परन्तु भगवान कृष्ण को ऐसा कोई जो पाप मुक्त हो यह समझ नहीं आया. वरदान देने के वचन बद्धता थी इसलिए कर्ण का अंतिम संस्कार भगवान कृष्ण ने अपने ही हाथो से किया और कर्ण को दिए वरदान को पूरा किया. इसके बाद दानवीर कर्ण का अधर्म का साथ देने के बावजूद भगवान कृष्ण को कर्ण का अंतिम संस्कार कर उनको वीरगति के साथ बैकुंठ धाम भेजना पड़ा था.
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