CENTRAL DESK आखिर किसके इशारे पर सहारा- सेबी विवाद की पटकाथा लिखी गई ? कौन है सहारा के साम्राज्य को तबाह करने का दोषी ! जब भी इसका जिक्र होगा तत्कालीन यूपीए शासन को जिम्मेदार माना जाएगा. क्योंकि तब देश में कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार थी, और सहारा समूह का उफान पूरे शबाब पर था.
सहारा पर आरोप लगे कि उसके सारे निवेशक फर्जी है. सेबी आज 12 साल बाद भी इसे साबित नहीं कर सका है, मामला आज भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. जिन निवेशकों को सेबी ने फर्जी बताकर मामले को पेचीदा बना दिया, आज जो सड़कों पर अपनी गाढ़ी कमाई के लिए प्रदर्शन करते देखे जा रहे हैं, वो कौन हैं ! सड़क से लेकर सदन तक कोहराम क्यों मचा है ? न्याय की देवी की आंखों में लगे पट्टी आखिर इस त्रासदी को गंभीरता से क्यों नहीं ले रही.
देश के अदालतों के माननीय न्यायधीश सड़क से लेकर सदन तक की खबरों को गंभीरता से लेते हैं, इस मामले को क्यों नहीं ले रहे ? प्रधानमंत्री मन की बात करते हैं, इस मामले में पीड़ितों की बात क्यों नहीं सुनते. क्या उन्हें इस त्रासदी की जानकारी नहीं ! लाखों बेरोजगार हो चुके हैं, करोड़ों निवेशक अपनी गाढ़ी कमाई के लिए सड़क पर हैं.
और मीडिया सिर्फ और सिर्फ सहारा को दोषी मानते हुए एकतरफा खबरें परोसने में जुटी है. सच्चाई बताने और जानने का प्रसाय कभी किया ही नहीं. कुल मिलाकर सहारा के साम्राज्य को तबाह करने में सभी की भूमिका सवालों के घेरे में है.
जानिए असल वजह
सहारा- सेबी विवाद की असल वजह एलआईसी की आईपीओ है. दरअसल साल 2009 में सहारा अपनी दो कंपनियों सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट और सहारा रियल स्टेट के जरिए जुटाए गए धन को सहारा प्राइम सिटी के माध्यम से सूचीबद्ध कराने का आवेदन करती है.
उसी समय एलआईसी भी आईपीओ लाने की तैयारी कर रही थी. चूंकि सहारा और एलआईसी दोनों ही संस्थानों में बीमा, बचत और अन्य फाइनेंशियल गतिविधियां संचालित होते हैं. सहारा पूर्ण रूप से निजी स्वामित्व वाली संस्थान है, जबकि एलआईसी पर सरकार का नियंत्रण है. सहारा समूह के पास छोटे- छोटे निवेशकों की बड़ी ताकत थी उसे बाजार से पैसे निकालने में महारथ हासिल है. इस मामले में एलआईसी की तुलना में सहारा काफी आगे चल रहा था. क्योंकि देश की ज्यादातर कंपनियों को नियामक (सेबी) पहले ही बांध चुकी थी. निवेशकों में सहारा को लेकर विश्वसनियता एलआईसी की तुलना में ज्यादा मजबूत थे. अगर एलआईसी से पहले सहारा को सूचीबद्ध कर लिया गया होता तो शायद एलआईसी का अस्तित्व समाप्त हो गया होता. हालांकि कर चोरी के मामले में एलआईसी आज भी दोषी है, मगर उसके आईपीओ को नियामक की मंजूरी मिल गई है, इसी महीने उसकी आईपीओ आ रही है, जो देश का सबसे बड़ा आईपीओ होगा. एक मई के एक बड़े अखबार में एलआईसी को लेकर बड़ा लेख प्रकाशित किया गया है, जिसमें एलआईसी के अबतक के सफर का गुणगाण कर निवेशको को रिझाने का प्रयास किया गया है. माना जा रहा है, कि एलआईसी का आईपीओ आते ही सहारा- सेबी विवाद का हल हो जाएगा. कुल मिलाकर कह सकते हैं, कि सहारा के साख को धुमिल करने के उद्देश्य से सहारा के साम्राज्य को तबाह किया गया.
ताकि निवेशको का भरोसा सहारा से पूरी तरह उठ जाए और एलआईसी के लिए मैदान पूरी तरह से साफ रहे. मगर निवेशकों को याद रखना होगा एलआईसी में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन होगा. इससे पहले भी एलआईसी मार्केट प्लस, मनी प्लस जैसे लुभावने योजनाओं के जरिए निवेशकों को चूना लगा चुकी है. जबकि प्रतिबंध से पूर्व प्रतिबंध के करीब नौ साल तक सहारा अपने निवेशकों से किए गए वायदों पर शत- प्रतिशत खरा उतरा है. प्रतिबंध रहते सहारा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 25 हजार करोड़ सहारा- सेबी खाते में जमा कराते हुए अपने 44 साल के साख को बचाने के लिए संघर्षरत है.
सहारा- सेबी विवाद के कारण…..
साल 2009 से चले आ रहे सहारा- सेबी विवाद के कारण सहारा का हंसता खेलता साम्राज्य तबाह तो हुआ ही सहार समूह को घोर वित्तीय संकट से जूझना पड़ रहा है. समूह अपनी साख को बचाने के लिए पिछले 12 सालों से अदालती कार्रवाही में फंसकर रह गई है. समूह के मुखिया यानि सुब्रत रॉय जो दुनिया के शीर्ष प्रभावशाली हस्तियों में शुमार हुआ करते थे, उनकी देशभक्ति की सराहना प्रधानंत्री और राष्ट्रपति किया करते थे.
राजनेताओं से उनके रिश्ते सदैव मित्रवत रहे. भव्य आतिथ्य के लिए सहारा प्रमुख की सानी नहीं थी. विदेशों में भी उनकी धाक बढ़ रही थी. अदालती कार्रवाई के कारण आज अपने ही देश में वे मुजरिमों की तरह जी रहे हैं. समूह के कार्यकर्ता और अधिकारी समाज की अगली पंक्ति को लीड करते थे, आज अपने अस्तित्व को लेकर संघर्षरत हैं. निवेशक अपनी गाढ़ी कमाई के डूबने की चिंता से बेहाल हैं. सहारा चीख- चीखकर 25 हजार करोड़ रूपए मांग रहा है, इसपर सभी चुप हैं. आखिर सहारा का गुणाह क्या है ! सेबी ने कहा निवेशक फर्जी हैं, फर्जी तरीके से सहारा ने पैसे जुटाए हैं. सहारा ने कहा सारे निवेशक मान्य हैं सभी के दस्तावेज ट्रकों में भरकर सेबी मुख्यालय भेज दिया. सेबी की दलील पर शीर्ष कोर्ट ने भरोसा करते हुए सहारा प्रमुख को तलब किया. तीन बार तारीख पर नहीं पहुंचने की सजा उन्हें सलाखों के पीछे भेजने के रूप में सुनाई गई, वो भी बगैर किसी एफआईआर के. आदेश दिया गया कि 25 हजार करोड़ चुकाइए और जमानत लीजिए. हालांकि सहारा प्रमुख की मां के निधन के बाद उन्हें पेरोल मिला और वे आजतक पेरोल पर हैं. बदले में हर महीने उन्हें मोटी रकन चुकानी पड़ रही है खुद को आजाद रखने के एवज में. तमाम झंझावतों के झेलते हुए सहारा शीर्ष कोर्ट के आदेश के तहत ब्याज सहित 25 हजार करोड़ सहारा- सेबी खाते में जमा कराने का दावा कर रही है. मगर मामले में शीर्ष कोर्ट द्वारा सुनवाई नहीं किए जाने के कारण सहारा समूह अपने निवेशकों का भुगतान नहीं कर पा रही है. बाजार में साख खराब होने के कारण व्यवसाय कठिन हो गया है. रही सही कसर दिल्ली हाईकोर्ट ने समूह के खिलाफ शिकायत को देखते हुए निकाल दी और सहारा के सारी योजनाओं में निवेश लेने और रिनीवल पर रोक लगा दी. इस बीच कई प्रतिबंध समूह को झेलना पड़ रहा है. देश के सारे सिस्टम सहारा के खिलाफ खड़ी है. आखिर कहां है न्यायपालिका ! कहां है इंसाफ…..