आदित्यपुर: जमशेदपुर और आसपास के इलाकों में पड़ रही भीषण गर्मी के बीच पर्यावरण संरक्षण की दिशा में विगत दस वर्षों से कार्य कर रही संस्था इनवायरमेंट प्रोटेक्शन फोरम के प्रयासों की इन दिनों क्षेत्र में खूब चर्चा हो रही है. टीम के सदस्यों ने सुबह मॉर्निंग वॉक को प्रकृति की सेवा में समर्पित कर दिया है.
क्यों हो रही है चर्चा
टीम के सदस्यों को अहले सुबह प्लास्टिक की बोतलों में पानी भरकर फौजी के तर्ज पर निकलते देखना इन दिनों मॉर्निंग वॉकरों में कुतूहल का विषय बना हुआ है. दरअसल ये घरों से जब निकलते हैं तो रास्ते और मैदानों में शराबियों द्वारा फेंके गए पानी की खाली बोतलों को चुनकर उसे रस्सी के सहारे जोड़ते हैं और उसमें पानी भरकर फोरम द्वारा एनआईटी से सटे बस्ती में लगाए गए बरगद, पीपल और नीम के पौधों में पानी डालकर प्रचंड गर्मी में सींचने का कार्य करते हैं. साथ ही जहां भी स्वयंसेवी संस्थाओं, सरकारी स्तर पर लगाए गए पौधे लगाए गए हैं और मेंटेनेंस व पानी के अभाव में सूख रहे हैं. उन्हें सींचने का काम करते हैं.
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शुरू में लोग चुटकी लेते थे मगर अब साथ आ रहे
सुबह जब फोरम के सदस्य सड़कों और मैदानों से बोतलें चुनते देखे जाते हैं, तो लोग ये सोचते हैं, कि इनके घरों में पानी की किल्लत होगी, इसलिए ये बाहर से पानी लेने के लिए बोतलें चुनते हैं, मगर उन्हें नहीं मालूम कि टीम के सदस्य भावी पीढ़ी को सुरक्षित करने हर दिन निकलती है और पानी के बिना तड़प रहे पौधों को सींचने का काम करते हैं. वैसे फोरम की गतिविधियों को देखकर कई मॉर्निंग वॉकरों ने भी इसे अपनी दिनचर्या में शामिल किया है.
इस संबंध में फोरम के संरक्षक सुबोध शरण ने बताया कि इन्वायरमेंट प्रोटक्शन फोरम विगत दस वर्षों से प्रकृति संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही है. नदियों से कचरों को चुनकर डस्टबिन में डालना, या उन्हें जलाकर नष्ट करना, प्लास्टिक के कचरों को चुनकर नष्ट करना, युवाओं को योगाभ्यास कराना, सूखे दरफ़्तों को सींचना, पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करना फोरम के दिनचर्या में शामिल हैं. उन्होंने बताया कि उनके इस कार्य में उनके बचपन के मित्र रहे सेवानिवृत्त सैनिक दिनेश कुमार गुप्ता, सतीश बैठा, अभियंता अशोक कुमार, फुलेश्वर शाह, अजय शर्मा आदि का भरपूर सहयोग मिलता है. उन्होंने युवा पीढ़ी से इस कार्य में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की, ताकि पर्यावरण को संरक्षित किया जा सके.
संदेश
भले पर्यावरण संरक्षण के नाम पर खूब तामझाम होते हैं. नेता, सामाजिक संगठन और ब्यूरोक्रेट्स द्वारा पौधा रोपण कर अखबारों में सुर्खियां बटोरते हैं, मगर चिलचिलाती धूप में जब पौधों को सींचने की बारी आती है, तो उन दरख्तों को सींचने न तो नेता नजर आते हैं, न सामाजिक संगठन न ब्यूरोक्रेट्स नतीजा पानी के अभाव में कोमल पौधे मर जाते हैं अगले साल फिर उसी स्थान पर पौधा रोपण का स्वांग रचकर जनप्रतिनिधि से लेकर ब्यूरोक्रेट्स तक लग जाते हैं, क्या ऐसे होगा प्रकृति का संरक्षण ! मंथन जरूरी है.
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