दुमका: राष्ट्रीय जनता दल जिला अध्यक्ष अमरेंद्र कुमार यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि बिल वापस लेने की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, कि मोदी सरकार का कृषि क़ानून वापसी का यह फ़ैसला विशुद्ध रूप से चुनावी नफ़ा-नुक़सान देखकर लिया गया है. इस एक वर्ष में इस सरकार ने किसानों को डराने, आंदोलन को मिटाने एवं दुष्प्रचारित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इस आंदोलन को धर्म विशेष से जोड़ा, किसानों को खालिस्तानी, आतंकवादी, देशद्रोही, आढ़तिए, बिचौलिये, अराजक, उपद्रवी, आंदोलनजीवी, अंतरराष्ट्रीय साज़िश, मोदी को हराने का एजेंडा इत्यादि कहा गया. किसानों के रास्ते रोके गए, कीलें ठोंकी गयी, कांटेदार बैरिकेडिंग की गयी, गोलियां चलाई गयी, केंद्रीय मंत्रियों द्वारा उन्हें गाड़ियों तले रौंदा गया, आंदोलन को जातियों में बांटा गया, सामाजिक विद्वेष पैदा किया, लालच दिया गया लेकिन किसान अपनी दूरदर्शिता और जज़्बे के दम पर सर्दी, गर्मी, आंधी- तूफ़ान और बारिश के बीच घर- बार छोड़ अपने मोर्चे पर डटे रहे. इस आंदोलन में 700 सत्याग्राही किसानों ने शहादत दी. वर्तमान परिपेक्ष में भाजपा सरकार का यह निर्णय सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली कहावत को चरितार्थ करती है.
याद रखना है जिस दिन ये दोबारा मज़बूत होंगे तो इस बार कान दूसरे तरीक़े से पकड़ेंगे. सांप अगर अपने ज़हरीले फ़न को नीचे कर लें तो इसकी कोई गारंटी नहीं कि वो डसेगा नहीं. भाजपा चुनाव हारेगी तभी महंगाई और बेरोजगारी कम होगी. समाज में आपसी प्रेम और भाईचारा क़ायम रहेगा. सरकारी संपत्तियां बची रहेंगी. सीमा पर जवान, खेत में किसान और मंडी में अनाज व एमएसपी सुरक्षित रहेंगे. अगर ये वोट के लिए स्टंट करते है तो इन्हें अच्छे से वोट की चोट देना है. तभी हमारे हक़-अधिकार सुरक्षित रहेंगे अन्यथा धर्म विशेष के प्रति नफ़रत फैला कर ये हमारे व्यापार, धंधे, आरक्षण व नौकरी को समाप्त कर सरकारी संपत्ति को निजी हाथों एवं पूंजीपतियों को सौंपते रहेंगे.


भाजपा अब प्रचार में लगेगी कि प्रधानमंत्री जी किसानों के कितने बड़े हितैषी है. तमाम किसान संगठनों और विपक्षी दलों के आंदोलन से यह बात साबित हुई है कि देश में आज भी लोकतंत्र जीवित है. राजद मांग करती है कि प्रधानमंत्री तत्काल इस आंदोलन में मारे गए किसानों को मुआवज़ा दें और उन्हें शहीद का दर्जा प्रदान करे. मारे गए किसानों के परिवार के सदस्य को नौकरी दें. किसान आंदोलन में जो एफआईआर हुए हैं, न्यायालय में मामले लम्बित हैं, उन्हें अविलंब वापस लिया जाय. इतने वक्त तक किसान जो सड़कों पर थे, जो घर-बार छोड़कर बाल-बच्चों के साथ सड़क पर थे, उन देश के सभी किसानों को फसल की क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाना चाहिए.
