देश की आजादी के सात दशक और झारखंड अलग राज्य बने दो दशक बीत चुके हैं. मगर आज भी झारखंड की उपराजधानी दुमका के चापुड़िया के ग्रामीण डोभा और झरना का पानी पीने को विवश हैं.
दरअसल मसलिया प्रखंड के कठलिया पंचायत अन्तर्गत पहाड़ की तराई में बसे चापुड़िया गांव में 25 आदिवासी परिवार रहता है. जहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. अलग झारखंड राज्य का गठन जिन आदिवासियों- मूलवासियों के लिए हुआ 22 साल बाद भी उन्हें मूलभूत सुविधाएं न मिलना बदलते भारत और उन्नत झारखंड के लिए बदनुमा दाग साबित हो रहा है.
जब राज्य में डबल इंजन की सरकार थी तब भी ये उपेक्षित थे, आज गठबंधन वाली सरकार के मुखिया जो इसी क्षेत्र से आते हैं फिर भी यहां के आदिवासी समुदाय उपेक्षित हैं. यहां के आदिवासी दोष किसे दें !
हांलाकि एक महीने से गांव को सड़क से जोड़ने का काम प्रगति पर है. इस गांव में पीने के पानी की घोर समस्या है. इस गांव में मात्र दो चापाकल है, जिसे करीब 10 वर्ष पूर्व वन विभाग ने लगवाया था. जिसमे किसी में भी सोलर टंकी नहीं लगा हुआ है. कोलम टुडू के घर के सामने का चापाकल करीब 7 वर्षो से ख़राब है और राजा हेम्ब्रम के घर के सामने का चापाकल भी कई महीनों से ठीक से काम नहीं कर रहा है. बहुत देर चापाकल चलाने से चार- पांच बाल्टी ही पानी निकलता है. फिर एक-दो घंटे बाद पानी निकलता है.
ग्रामीणों का कहना है कि पीने के पानी के लिय हम लोगो को रोजाना संघर्ष करना पड़ता है. दो अन्य प्राकृतिक स्त्रोतो से प्रदूषित पानी का व्यवस्था करते है. चिलचिलाती धूप में रोज एक किलोमीटर के करीब पहाड़ से सटे एक झरने से पानी लाने के लिय मजबूर है. झरना पर भी प्रयाप्त पानी नहीं मिल पाता है. बर्तनों में एक छोटी सी कटोरी के माध्यम से धीरे- धीरे कर पानी भरा जाता है. ग्रामीणों ने बताया कि जहां यह झरना स्थित है वहां जाने- आना में भी खतरा बना रहता है. पगडंडी संकीर्ण होने के कारण नीचे गिरने का डर भी हमेशा बना रहता है. दूसरा पानी का स्रोत गांव से करीब एक किलोमीटर दूर नदी किनारे स्थित डोभा को ईटा- पत्थर से बांध कर कुआं का रूप दिया गया है, वहां से पीने के पानी का व्यवस्था करते है. ग्रामीणों का कहना है कि दोनों स्रोतों का पानी प्रदूषित है लेकिन मजबूरन इस पानी का व्यहार करना पड़ता है. शादी या किसी अन्य कार्यक्रम के समय पीने के पानी का और अधिक दिक्कत हो जाता है, उस समय नदी का पानी व्यवहार करते है. ग्रामीणों का यह भी कहना है कि जब मेहमान घर आते है और घर वाले पानी लाने के लिय झरने पर जाते है तो मेहमानों को यह लगता है कि घर वाले मेहमान देखकर दूर चले गये है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पानी समस्या के समाधान के लिय वर्षो से गुहार लगाते आये है लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाया है.
एक ग्रामीण ने बताया कि पेयजल की समस्या को लेकर विधायक, सांसद, पंचायत प्रतिनिधि और प्रखंड विकास पदाधिकारी को भी लिखित आवेदन दिए है, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो रहा है. ग्रामीणों ने यहां तक कह दिया कि कई नेता मंत्री बन गये लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ. ग्रामीणों के अनुसार उनके द्वारा इलाके के पूर्व विधायक स्टीफन मरांडी, हेमंत सोरेन, लुईस मरांडी, बसंत सोरेन (वर्तमान) और सांसद सुनील सोरेन (वर्तमान) तक गुहार लगाया लेकिन समाधान नहीं हुआ. हेमंत सोरेन जब राज्य के मुखिया बने तब थोड़ी उम्मीद की किरण जगी थी लेकिन ढाई साल बीत जाने के बाद भी जब पेयजल की समस्या का समाधान नहीं हुआ, तब जनप्रतिनिधियों के दर पर गुहार लगाना छोड़ खुद को किस्मत के सहारे छोड़ दिया. फिर भी पंचायत चुनाव से लेकर विधान सभा और लोक सभा के चुनाव में वोट देते आ रहे हैं इस उम्मीद से कि कभी तो किसी जनप्रनिधि का दिल पसीजेगा और उनकी प्यास बुझेगी.