झारखंड में आदिवासी कितने महफूज हैं चंद तस्वीरों को देखकर समझिए.
मलबे में तब्दील आदिवासी विधवा महिला काजल माझी का निर्माणाधीन पीएम आवास
यूं तो सीएम हेमंत सोरेन ने जनता से कई वायदे कर सत्ता हासिल किया है, लेकिन चुनाव के दौरान किए गए वायदे ठीक उसी तरह हवा में गुम हो गए, जैसे 15 लाख हर भारतीयों के खाते में आने का जुमला. जनता भरोसा करे तो किसपर. एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई.
यहां हम बात कर रहे हैं झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिला के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के चाकुलिया गांव की. जहां दबंगों ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक गरीब विधवा आदिवासी महिला काजल माझी के निर्माणाधीन मकान को जमीदोज कर दिया. विधवा के सपने धरे के धरे रह गए. गलती किसकी है यह यक्ष प्रश्न है.
काजल माझी को आबंटित पीएम आवास योजना का प्रमाण पत्र
क्योंकि प्रधानमंत्री आवास योजना अगर किसी लाभुक को आवंटित होता है, तो उसके लिए जरूरी प्रक्रिया करनी होती है. जिसके लिए मुखिया, अंचलाधिकारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी और उपायुक्त की अनुशंसा जरूरी होती है. ऐसे में किस आधार पर निर्माणाधीन भवन को ढाह दिया गया. फिर सरकारी राशि का क्या होगा, जिसे मुखिया, सीओ, बीडियो और उपायुक्त के अनुशंसा पर पास किया गया. काजल माझी चीखती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन दबंग हरिश्चंद्र माझी ने जमीन को अपना रैयती बता कर सरकारी योजना के तहत निर्माणाधीन भवन को तोड़ दिया.
लाभुक काजल माझी
वही विधवा महिला काजल माझी ने इस मामले को लेकर चांडिल थाने में शिकायत दर्ज कराई है. काजल माझी ने बताया, कि उनका परिवार पिछले 40 सालों से आनाबाद बिहार सरकार की जमीन पर किसी तरह झोपड़ी बनाकर जीवन बसर कर रहा था. 2 साल पहले पति की मौत हो चुकी है. 5 बच्चों में से दो बच्चे दिव्यांग हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तब उन्हें पक्का मकान आवंटित हुआ था. मुखिया और अंचल कार्यालय से एनओसी मिलने के बाद मकान निर्माण का कार्य शुरू हुआ. 15 दिनों बाद ढलाई होना था, इसी बीच हरीश चंद्र माझी एवं उनके भाई ने निर्माणाधीन मकान को ढाह दिया.
मुखिया नरसिंह सरदार
वहीं मुखिया नरसिंह सरदार का कहना है, कि विवाद बढ़ने के बाद पंचायत में दोनों पक्ष को समझाने का प्रयास किया गया, लेकिन हरिश्चंद्र माझी ने जमीन पर अपना दावा करते हुए निर्माणाधीन मकान को ढाह दिया, जो पूरी तरह गलत है. उन्होंने बताया, कि महिला अनाबाद बिहार सरकार की जमीन पर झोपड़ी बनाकर रह रही थी. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उसे आवास आवंटित हुआ था. जिसका निर्माण कार्य चल रहा था. जिसे हरिश्चंद्र माझी ने ढाह दिया. उन्होंने हरिश्चंद्र माझी एवं उसके भाई को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने की बात कही है. वैसे इस मामले में अब तक स्थानीय पुलिस या अंचल कार्यालय ने संज्ञान क्यों नहीं लिया, यह जांच का विषय है.
हरिश्चंद्र माझी दावेदार
वही इस संबंध में जब हरिशचंद्र माझी से बात किया गया, तो उन्होंने जमीन को अपना रैयती जमीन बताया.
वैसे सवाल ये उठता है कि अगर हरिश्चंद्र माझी सही है, तो गलत कौन है ! यह तय जिला प्रशासन और झारखंड सरकार करें. क्योंकि आशियाना आदिवासी गरीब विधवा का उजड़ा है, और पैसा केंद्र सरकार का डूबा है. इससे साफ प्रतीत होता है कि राज्य में कानून दबंगों के कब्जे में है.
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