कहने को तो सरकार गावों के विकास को लेकर खुद को गंभीर बताती है, मगर जमीनी हकीकत सरकारी दावों से कोसों दूर हैं. आज भी ग्रामीण झारखंड जरूरी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है.
सड़क, पानी, बिजली जैसी नागरिक सुविधाओं के लिए ग्रामीण सरकार की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं. सरकारी बाबुओं के पास रटा- रटाया जवाब हाजिर है. जनप्रतिनिधियों को जनमुद्दों से ज्यादा पक्ष- विपक्ष के बीच विवाद पैदा कर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने की चिंता रहती है. बेचारी जनता नेताओं और बाबुओं के बीच आज भी पिसने को विवश है. हम बात कर रहे हैं सरायकेला- खरसावां जिले की. जहां राजनगर, चांडिल, कुचाई, तिरुलडीह, ईचागढ़, खरसावां और नीमडीह प्रखंड के ग्रामीण उपभोक्ता दो- दो दिन तक अंधेरे में रहने को विवश हैं. राजनगर प्रखंड के उपभोक्ताओं का सबसे बुरा हाल है. हल्की बारिश हुई नहीं कि बिजली गुल. कब आएगा, क्या गड़बड़ी है बताने तक का फुर्सत किसी अधिकारी को नहीं. जबकि जनप्रतिनिधि के मामले में राज्य के सबसे कद्दावर मंत्री चम्पई सोरेन का यह गृह क्षेत्र है. सड़क, पानी और बिजली हर मामले में राजनगर प्रखंड के ज्यादातर गांव आज भी पिछड़ा है. यही हाल बाकी अन्य प्रखंडों का है. गम्हरिया ग्रिड से भी कुलुपटांगा फीडर के उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा लोड शेडिंग का सामना करना पड़ता है. ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर क्यों नहीं बिजली विभाग का निजीकरण कर दिया जाए ? शहरी क्षेत्र में जुस्को की निर्बाध बिजली उपभोक्ताओं को मिल रही है, ज्यादातर उपभोक्ताओं ने जुस्को का कनेक्शन ले लिया है, फिर भी लोड शेडिंग वो भी घंटो ये समझ से परे है.