सरायकेला Pramod Singh एसिया का दूसरा सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल एरिया झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिले के आदित्यपुर में है. जहां छोटी- बड़ी करीब ढाई हजार उद्योग- धंधे संचालित हो रहे हैं. इन्हें मूलभूत जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए जियाडा JIADA यानी झारखंड इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट ऑथोरिटी अधिकृत है, जो पहले आयडा AIADA आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट ऑथिरिटी के नाम से जाना जाता था.
जियाडा के जमाने में आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया का सर्वांगीन विकास हुआ मगर अब कहीं ना कहीं जियाडा उसमें विफल साबित हो रही है. वैसे आयडा का जियाडा में विलय होने से उद्यमियों को लगा, कि जियाडा के दायरे बढ़ेंगे, तो उद्योगों का विकास होगा मगर ऐसा नहीं है. जियाडा के अधिकार भले बढ़ गए हैं, मगर उद्यमियों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. सरकार राज्य में उद्यमियों को उद्योग लगाने के लिए आमंत्रित कर रही है. उन्हें हर तरह की सुविधाएं देने का भरोसा दिलाया जा रहा है, मगर उद्यमी यहां निवेश करने से कतरा रहे हैं.
पिछली रघुवर सरकार ने मोमेंटम झारखंड के नाम पर जो हाथी उड़ाया वो हाथी दुबारा लौटकर नहीं आया. वर्तमान सरकार की तो हालत वैसे ही पस्त है. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि झारखंड सरकार ने जियाडा को अधिकार तो दिए मगर जियाडा उन अधिकारों का प्रयोग करते हुए उद्यमियों को सहूलियत देने के बजाए उन्हें परेशान करने में लगा रही है. नियम कानून की आड़ में किसी कंपनी को किसी के हाथों बेच रही है. कोर्ट में लंबित मामलों में भी सीधे दखल देकर उद्यमियों को आपस में लड़ा रही है. हाल के दिनों में पीटीपीसी और युनाइटेड आर्ट प्रेस कंपनी के मामले में जियाडा की भूमिका सवालों के घेरे में नजर आयी है. हालांकि दोनों ही मामले न्यायालय में लंबित थे, बावजूद इसके जियाडा ने जल्दबाजी दिखाया जिसको लेकर जियाडा की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं. साथ ही उद्यमी संगठनों पर भी सवाल उठ रहे हैं.
जियाडा के अधिकार क्षेत्र की सड़कें बेहाल, नहीं है पार्किंग की सुविधा
आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित ज्यादातर कंपनियां जियाडा के अधिकार क्षेत्र में हैं. यू कहे तो पूरा इंडस्ट्रियल एरिया ही जियाडा के अधिकार क्षेत्र में है. मगर यहां के उद्यमियों को सड़क पर उतरकर आंदोलन करना पड़ रहा है, जो निश्चित तौर पर जियाडा की अकर्मण्यता दर्शाती है. बता दें कि इन दिनों पूरा आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया नरक में तब्दील हो चुका है. किसी भी रोड पर चले जाइए, उसका हाल बेहाल है. नतीजतन उद्यमियों को सड़क पर उतरना पड़ गया है. मामला उपायुक्त दरबार तक पहुंच चुका है. मगर जियाडा के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है. पार्किंग की वर्षों पुरानी मांग भी आजतक लंबित है. बाहर से आनेवाली गाड़ियां पार्किंग के अभाव में जहां- तहां खड़े रहते हैं, जिससे उन्हें पुलिस प्रशासन के कोप भाजन का भी शिकार होना पड़ता है. साथ ही आए दिन सड़क दुर्घटनाओं में बेवजह परेशानी भी झेलनी पड़ती है. खासकर तब जब बाहर से आने वाली गाड़ियां सड़क पर खड़ी रहती है, और अंधेरे में पीछे से आकर कोई गाड़ी टकरा जाता है.
सर्विस रोड में खड़े वाहन
स्ट्रीट लाइटों का बुरा हाल
पूरे इंडस्ट्रियल एरिया में लगे स्ट्रीट लाइट बेकार पड़े हैं. कई बार उद्यमियों ने इसकी शिकायत जियाडा में की है, मगर कोई सुध नहीं ले रहा. जिसका नतीजा है कि इंडस्ट्रियल एरिया में असामाजिक तत्वों का आना- जाना लगा रहता है. कई कंपनियों में चोरी की घटनाएं भी घटित हो चुकी है. कंपनियों के बाहर खड़े पार्किंग से वाहनों की भी चोरी होती रही है. सड़के खराब होने के कारण नियमित पुलिस की गश्ती भी नहीं होती है.
एसिया, सिया लघु उद्योग भारती की भूमिका पर उठ रहे सवाल
उद्यमियों के हितों की रक्षा को लेकर आदित्यपुर स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन का गठन किया गया था. कालांतर में यह सशक्त संगठन के रूप में स्थापित जरूर हुआ, मगर हाल के दिनों में एसिया व्यक्ति विशेष के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है. व्यक्ति विशेष के लिए एसिया के कानून में संशोधन तक किया गया. ज्यादातर उद्योग धंधे विशेष वर्ग को हस्तांतरित किए जा चुके हैं. बिहारी, पंजाबी, सिंधी, बंगाली, आदिवासी उद्यमी नहीं के बराबर रह गए हैं. उद्यमियों के हित की बात करने के सवाल पर संगठन की खामोशी कहीं ना कहीं संगठन को सवालों के घेरे में खड़ा कर रहा है. ज्यादातर उद्यमी नाराज हैं. हालांकि कोई खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं, जो आ रहे हैं उनमें बगावत करने की हिम्मत नहीं रह गई है. जो बचे हैं वे व्यक्ति विशेष के इर्द-गिर्द काम कर रहे हैं. लघु उद्योग भारती आवाज उठाती है, मगर इन्हें तरजीह नहीं मिलता है, मजबूरन इन्हें आंदोलन करना पड़ रहा है. सिंहभूम इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (सिया) पर समय के साथ बदलने का आरोप लगता रहा है. उद्योग हित में इनके द्वारा मांग जरूर उठाए जाते हैं, मगर बाद में इनकी भूमिका शिथिल पड़ जाती है. मजबूती के साथ यह संगठन अपनी बातों को उचित फोरम तक नहीं पहुंचा पाते.