चांडिल: अनुमंडल में 14 मई को पहले चरण के तहत पंचायत चुनाव होने हैं. प्रत्याशी जी जान से चुनाव के प्रचार- प्रसार में जुटे हैं. प्रशासनिक तैयारियां पूरी हो चुकी है. मगर पिछले 44 साल से अधर में लटके स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के तहत निर्मित चांडिल डैम के अधिग्रहित गावों में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर आयोग और सरकार पर सवाल उठ रहे हैं.

जब 116 में से 43 गांव के रैयातदारों ने मुआवजा ले लिया है और सभी गांव नियमतः परियोजना के अधीन आ चुके हैं, तो उन गांवों में राज्य सरकार किस नियम के तहत पंचायत चुनाव करा रही है, और चुनाव आयोग ने परियोजना द्वारा अधिग्रहित गावों में चुनाव कराने का आदेश किन नियमों के तहत दिया यह अहम सवाल है. इससे साफ प्रतीत होता है, कि केंद्र की योजना को राज्य सरकार धरातल पर उतारने को लेकर गंभीर नहीं है. विस्थापन के नाम पर स्थानीय नेताओं की राजनीति इस परियोजना की राह में रोड़े बन रहे हैं. यही कारण है कि 44 साल में भी सुवर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना धरातल पर उतरने में असफल रही है.
जानिए परियोजना का अनंत सफर
स्वर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना कभी समाप्त होनेवाली परियोजना नहीं है. ऐसा इसलिए कि 1978 में शुरू हुई 118 करोड़ की परियोजना आज 19 हजार करोड़ की परियोजना बन चुकी है और परियोजना आज तक धरातल पर पूरी तरह से नहीं उतर सकी. क्योंकि केंद्र की योजना को राज्य सरकार ने बंदरबांट का जरिया बना लिया है.
बता दें कि चांडिल डैम के जलस्तर की योजना 192 मीटर रिजर्ववायर लेवल (R/L) प्रस्तवित है. इसके तहत 116 गावों का अधिग्रहण किया जाना है. 43 गावों के 19115 विस्थापित परिवारों को चिन्हित किया गया है. इनमें से 98892 मूल रैयतों एवं 4144 विभाजित परिवार को पूर्ण मुआवजा का भुगतान किया जा चुका है. वहीं आंशिक प्रभाव वाले 73 गावों के रैयातदारों को भी मुआवजा का भुगतान किया जा चुका है. कुल मिलाकर चांडिल डैम की जद में आने वाले 116 गावों के 98 फीसदी लोगों ने विस्थापन नीति 2012 के तहत मुआवजा ले लिया है. बावजूद इसके ग्रामीण अधिग्रहित क्षेत्र में जमे हुए हैं जबकि वर्तमान में 177 मीटर पानी ही संग्रहित किया जा रहा है. जबकि 185 मीटर पानी रिजर्व करना अनिवार्य है, तब जाकर 8 मेगावाट बिजली उत्पादन हो सकेगा साथ ही इंडस्ट्री और खेतों को सिंचाई के लिए सुचारू रूप से पानी आपूर्ति किया जा सकेगा है. वैसे यहां 192 मीटर जल संचय करने की योजना को ध्यान में रखते हुए जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. मगर ऐसा होता संभव प्रतीत नहीं हो रहा है, क्योंकि 177 मीटर पानी होते ही लगभग 20 गांव जलमग्न हो जाते हैं, उसके बाद क्षेत्र में राजनीति शुरू हो जाती है.
सरकार ग्रामीण विकास विभाग के जरिये खर्च कर रही करोड़ों, मंशा क्या है !
बता दें कि नियमतः अधिग्रहित क्षेत्र में सरकार की कोई योजना पारित नहीं होना है. जबकि यहां अधिग्रहित गावों में सरकार ग्रामीण विकास विभाग की योजना से पुल- पुलिया सड़क और मकान बनवा रही है. वह भी बगैर परियोजना से अनुमति (NOC) लिए क्योंकि नियमानुसार अधिग्रहित गांव अब परियोजना की संपत्ति है. राज्य सरकार क्षेत्र में जो योजनाएं दे रही है यदि परियोजना 192 आरएल पानी संग्रहित करने का लक्ष्य हासिल कर लेती है तो उन योजनाओं पर पानी फिरना तय है. एक तरफ केंद्र और विश्व बैंक की संस्था नाबार्ड से राज्य सरकार डैम और परियोजना को मूर्त रूप देने के नाम पर पैसे ले रही है, दूसरी तरफ अधिग्रहित जमीन पर सरकारी योजनाओं को बगैर परियोजना से एनओसी लिए क्षेत्र में लागू कर रही है, जबकि इसपर सिर्फ और सिर्फ परियोजना का अधिकार है. मतलब साफ है कि केंद्र और विश्व बैंक की संस्था नाबार्ड से मिले पैसों का बंदरबांट चल रहा है.
