चांडिल: स्वर्णरेखा परियोजना द्वारा अधिग्रहित चिलगु पुनर्वास स्थल के करीब 1.20 एकड़ बंदोबस्ती जमीन पर कब्जे को लेकर नाम आने के बाद पत्रकार विश्वरूप पांडा ने गुरुवार को अंचल कार्यालय के पत्रांक संख्या 765 का जवाब भौतिक रूप से अंचलाधिकारी अमित श्रीवास्तव को सौंप दिया है. हालांकि उक्त पत्रांक में त्रुटि होने के कारण गुरुवार को अंचलाधिकारी ने दूसरा नोटिस विश्वरूप पांडा के घर पर चस्पा कर पुनः संशोधित पत्रांक पर जवाब मांगा है. इसमें पत्रकार के लिए भू माफिया जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है. जिसपर विश्वरूप ने घोर आपत्ति जताते हुए सीओ के खिलाफ उच्च न्यायालय की शरण लेने की बात कही है.
विश्वरूप ने बताया कि सीओ का व्यवहार दुर्भावना से ग्रसित प्रतीत होता है. उन्होंने जिस लहजे में मेरे साथ बातचीत की उससे साफ प्रतीत हो रहा है कि वह किसी के दबाव में आकर उसे प्रताड़ित कर रहे हैं. पत्रकार ने अंचल अधिकारी के कार्यशैली पर भी सवाल उठाया है. उसने कहा कि मेरे पूर्वजों की जमीन स्वर्णरेखा परियोजना में गई है. हम विस्थापित परिवार से आते हैं. मैं पत्रकार हूं यह मेरा प्रोफेशन है. मगर, मुझे जमीन माफिया कह कर संबोधित किया जाना कहां तक जायज है. अंचलाधिकारी प्रमाणित करें कि मैने एक इंच जमीन भी किसी को बेचा है या उसकी खरीद- बिक्री की है तो मैं किसी भी सजा को भुगतने के लिए तैयार हूं. विस्थापित परिवार से होने की नाते मैं पुनर्वास स्थल में परियोजना द्वारा अधिग्रहित जमीन की घेराबंदी कर रहा हूं. परियोजना और आंचल प्रशासन निष्पक्ष जांच कर बताएं कि उक्त भूखंड किसका है मैं कब्ज़ा छोड़ दूंगा. विश्वरूप ने बताया कि अंचल अधिकारी उसके द्वारा दिए गए किसी भी दलील को सुनने को तैयार नहीं है. उल्टा मेरे साथ अपराधियों जैसा वर्ताव कर रहे हैं. उनके इस व्यवहार से मेरा परिवार भयाक्रांत है.इधर गुरुवार को विश्वरूप ने स्वर्णरेखा परियोजना के प्रशासक के नाम एक ज्ञापन सौंपते हुए पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करने और पूर्व के अभिलेखों और जजमेंट के आधार पर कार्रवाई करने की मांग की है.
वहीं उक्त मामले में आजसू नेता दुर्योधन गोप का भी नाम सामने आया है. इसपर दुर्योधन ने गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस कर उक्त परियोजना की जमीन के विवाद से खुद को अलग बताते हुए कहा कि ना मुझे परियोजना के जमीन से कोई लेना- देना है, ना ही बंदोबस्ती जमीन पर उनके द्वारा किसी तरह का कोई कब्जा किया जा रहा है. उनके ऊपर लगाए गए सारे आप राजनीति से प्रेरित प्रतीत हो रहे हैं.
जानिए एक नजर में क्या है पूरा मामला
चांडिल अंचल के चिलगु पुर्नवास स्थल समेत जितने भी पुर्नवास स्थल है, वहां की भूमि को अधिग्रहित किया जा चुका है लेकिन समय- समय पर पुर्नवास स्थल के अगल- बगल बसे गांवों के ग्रामीणों द्वारा अपना दावा किया जाता है, लेकिन वास्तविकता में वह अधिग्रहित भूमि फिलहाल सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के अधीन है. बताया जा रहा है कि चिलगु पुर्नवास स्थल पर खाता संख्या 130, प्लॉट संख्या 578 को लेकर इन दिनों हलचल मची हुई हैं. यहां पर बसे विस्थापित डरे सहमे हुए हैं. विस्थापित परिवारों को फिर एक बार उजड़ने का डर सता रहा है. चिलगु पुर्नवास स्थल के विस्थापित परिवारों का कहना है कि उन्होंने चांडिल डैम निर्माण के लिए अपने पूर्वजों की भूमि को औने- पौने दर पर सरकार को दे दी है और जो जमीन घर बनकर रहने के लिए दी गई हैं वहां भी शांति नहीं है. आए दिन अगल- बगल के गांवों के लोग अपनी दावेदारी पेश करते हैं और विस्थापित परिवारों को परेशान करते हैं. यह कोई नया मामला नहीं है कि बीते कुछ दिनों से चिलगु पुर्नवास स्थल के जमीन की मापी की जा रही हैं. 30 साल पहले भी इसी तरह से विस्थापित परिवारों को परेशान किया गया था. चिलगु पुर्नवास स्थल के विस्थापित परिवारों ने बताया कि 30 साल पहले जब वे अपने विस्थापित गांवों को छोड़कर चिलगु में रहने आए थे तब चिलगुडीह के ग्रामीण काफी परेशान करते थे. घर निर्माण में बाधा उत्पन्न करते थे और मारपीट करते थे. उस समय विस्थापितों ने वर्ष 1993 में सरायकेला व्यवहार न्यायालय में भी मामला दर्ज कराया था. करीब दस साल तक मामला चलने के बाद कांड संख्या 725/1993 में विस्थापितों के पक्ष में न्यायालय ने फैसला सुनाया था. उक्त मामले में विस्थापितों के पक्ष में सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना की ओर से दस्तावेज पेश किया गया था, जबकि द्वितीय पक्ष कारण हांसदा एवं अन्य ने अपने दावे संबंधित कागजात पेश नहीं कर पाए थे. वर्ष 1984 में विशेष भूअर्जन द्वारा चिलगु में 69 एकड़ अनाबाद बिहार सरकार की भूमि अधिग्रहण करने के बाद उसी प्लॉट नंबर 578 पर कुछ गैर विस्थापित परिवारों को भी बंदोबस्ती पर भूमि दे दी गई थी. हालांकि, न्यायालय में विस्थापितों के पक्ष में फैसला आने के बाद से ही बंदोबस्त धारक चुप थे, लेकिन हाल ही में उन्हें भड़काकर अनुमंडल पदाधिकारी के यहां एक ज्ञापन दिलवाया गया, जिसे आधार बनाकर पीत पत्रकार द्वारा सनसनी फैला दिया गया. फिर क्या था, चांडिल सीओ एक्शन में आ गए और पूरे प्लॉट नंबर 578 की मापी शुरू कर दी है. वैसे परियोजना के दर्जनों पुनर्वास स्थलों की सैकड़ो एकड़ जमीन भू माफिया बेच चुके हैं. इसपर अंचलाधिकारी, परियोजना के प्रशासक और उपयुक्त मौन है यह भी गंभीर मामला है.
क्या कहना है अंचलाधिकारी का
मामले को लेकर चांडिल सीओ अमित श्रीवास्तव ने बताया कि उक्त जमीन को लेकर उनका किसी के साथ कोई मतभेद या द्वेष नहीं है. ऊपर से आदेश मिला है इसकी हर दिन मॉनिटरिंग हो रही है. उपायुक्त के निर्देश पर गठित जांच टीम का वह एक हिस्सा है. इसमें परियोजना के अमीन और पदाधिकारी भी शामिल है. हमारे रिकॉर्ड के अनुसार प्रथम दृष्टया विश्वरूप पांडा, दुर्योधन गोप एवं अनंत गोप द्वारा लगभग 1.20 एकड़ बंदोबस्ती जमीन पर अवैध कब्जा किया जा रहा है, जिसे रोका जा रहा है. पूर्व में भी अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा उक्त को निर्देशित किया गया था, बावजूद इसके उक्त के द्वारा विवादित भूखंड पर अवैध कब्जा किया जा रहा है. जबतक रिपोर्ट सामने नहीं आती तब तक बतौर अंचल अधिकारी मेरी नैतिक जिम्मेदारी है कि मैं उसपर किसी तरह का भी निर्माण कार्य न होने दूं. जब उनसे यह पूछा गया कि अबतक हुए मापी में क्या निष्कर्ष निकला है ? इसपर उन्होंने बताया कि परियोजना के पदाधिकारी अपने दस्तावेज एकत्रित कर रहे हैं. फिलहाल इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा. जब पूरी मापी हो जाएगी उसके बाद रिपोर्ट उपायुक्त को सौंप दी जाएगी. आगे उपायुक्त का जैसा निर्देश प्राप्त होगा एक्शन लिया जाएगा. उन्होंने किसी के प्रभाव में आकर कार्रवाई से इंकार किया है.
मंत्री चंपाई सोरेन पर टिकी विस्थापितों की उम्मीद
इधर आंचल प्रशासन के इस एक तरफा कार्रवाई को लेकर चिलगु पुनर्वास स्थल में बसे विस्थापितों ने जल संसाधन मंत्री चंपई सोरेन से मुलाकात कर मामले से अवगत कराने की बात कही है. पुनर्वास स्थल के लोगों ने बताया कि परियोजना और आंचल प्रशासन की लड़ाई में उन्हें परेशान किया जा रहा है. पूर्व की गलतियों को आज विवाद में तब्दील किया जा रहा है. जिससे विभागीय मंत्री के साख पर बट्टा लगाने की तैयारी चल रही है ऐसा प्रतीत हो रहा है. इससे माननीय मंत्री को अवगत कराया जाएगा.