चांडिल: हाल के दिनों में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को सीएम पद से हटाए जाने के बाद उन्हें जल संसाधन मंत्री का दायित्व सौंपा गया है. जल संसाधन विभाग ऐसा विभाग जहां कांटों भरी राह पर विभागीय मंत्री को चलना पड़ता है. खास कर कोल्हान में जल संसाधन विभाग का महत्व ही कुछ अलग है. क्योंकि, कोल्हान में सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना है, जिसके तहत चांडिल डैम, कुजू डैम समेत कई नहर निर्माण की योजनाएं संचालित है. जल संसाधन विभाग के ऊपर उक्त परियोजना को पूरा करने के साथ साथ हजारों विस्थापित परिवारों के हित- अहित का दायित्व है. थोड़ी सी चूक हुई तो विस्थापित हाय- तौबा मचा देते हैं और विभागीय मंत्री की फजीहत हो जाती हैं. तभी तो जल संसाधन विभाग के तत्कालीन मंत्री सुदेश कुमार महतो (वर्तमान में सिल्ली विधायक) और चंद्रप्रकाश चौधरी (वर्तमान गिरिडीह सांसद) को लेकर विस्थापित हमेशा नाराज रहते हैं, क्योंकि ये दोनों अपने सरकार में जल संसाधन मंत्री थे. इनके कार्यकाल में विस्थापित स्वयं को उपेक्षित महसूस करते रहे और आज भी कोस रहे हैं. वर्तमान समय में पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को जल संसाधन मंत्री बनाया गया है, कहीं ऐसा तो नहीं है कि चंपई सोरेन की फजीहत करवाने की कोई गहरी साजिश रची गई है, जिसकी पृष्ठभूमि चांडिल में तैयार की जा रही है.
सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के तहत चांडिल डैम तथा कुजू डैम निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया है. मंत्री चंपई सोरेन के अपने गृह क्षेत्र, जहां से वह विधायक हैं, वहां कुजू डैम का निर्माण आज भी अधूरा है. समय- समय पर प्रभावित गांवों के लोग डैम निर्माण योजना को रद्द करने की मांग करते हुए आंदोलन करते हैं. यह मंत्री चंपई सोरेन के लिए गले की फांस बनकर रह गई हैं. अब इसी सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के तहत निर्मित चांडिल डैम की बात करें, तो यहां भी मंत्री चंपई सोरेन की फजीहत करवाने की साजिश रची जा रही हैं. भले ही इस साजिश को मंत्री चंपई सोरेन और जिला प्रशासन अबतक समझ नहीं पाए होंगे, लेकिन साजिश की सुई धीरे- धीरे मंत्री चंपई सोरेन की ओर ले जाने की तैयारी शुरू हो गई हैं.
जरा सोचिए 40 पहले जो मामला बिल्कुल शांत पड़ गया था, उस मामले को अब मीडिया ट्रायल के जरिए सनसनीखेज मामला बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जब से मंत्री चंपई सोरेन ने जल संसाधन विभाग का पदभार संभाला है, तब से जल संसाधन विभाग को बदनाम करने की साजिश रची जा रही हैं. सम्भवतः इसमें स्थानीय प्रशासन और चंद भोलेभाले आदिवासी साजिश का मोहरा बनकर सामने खड़े हैं लेकिन रांची और जमशेदपुर में बैठकर इसकी पृष्ठभूमि तैयार किया जा रहा है. इसके पीछे वही लोग हैं, जिनकी मंत्री चंपई सोरेन के साथ सीधे तौर पर नहीं बनती हैं.
दअरसल, चांडिल डैम के विस्थापितों को विभिन्न पुर्नवास स्थलों पर बसाया गया है. इस प्रक्रिया में विशेष भूअर्जन विभाग द्वारा भूमि अधिग्रहण किया गया था, जिसे भूअर्जन ने सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना को सौंप दिया है. सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के पुर्नवास इकाई द्वारा चांडिल डैम के विस्थापित परिवारों को अपने निर्धारित पुर्नवास स्थलों पर बसाया गया है. यहां बात हो रही हैं चांडिल अंचल के चिलगु पुनर्वास स्थल की. जहां 30 साल पुराने मामले को मीडिया ट्रायल के जरिए सनसनी फैला दिया गया है और मीडिया ट्रायल के भ्रमजाल में चांडिल सीओ भी फंस चुके हैं.
वर्ष 1978 से 1980 तक सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना को लेकर तत्कालीन बिहार सरकार ने एक जांच समिति गठित किया था. उक्त जांच समिति में तत्कालीन विधानसभा सदस्य जगनारायण पाठक अध्यक्ष थे. इसके अलावा बिहार विधानसभा सदस्य सरदार मौलेश्वर प्रसाद सिंह, अरुण कुमार, सनाथ राउत, धनंजय महतो, ललितेश्वर झा, डॉ जनार्दन प्रसाद वर्मा आदि कमिटी के सदस्य थे. उस समय जांच समिति द्वारा की गई कार्यवाही में सुवर्णरेखा परियोजना के संबंध में एक- एक विषय को लेकर बारीकी से जांच की गई थी, उसके बाद ही परियोजना को धरातल पर उतारा गया था. जांच समिति के अधीन तत्कालीन सिंहभूम के उपायुक्त, भूअर्जन पदाधिकारी, श्रम विभाग, नियोजन जैसी सभी महत्वपूर्ण विभाग ने काम किया था. संबंधित अधिकारियों ने सरकार और समिति के सभी निर्देश पर काम किया था. उक्त समिति की कार्यवाही में स्पष्ट उल्लेख है कि 1984 में चांडिल अंचल के चिलगु पुनर्वास स्थल पर 69 एकड़ अनाबाद बिहार सरकार की भूमि अधिग्रहण किया गया है. जहां तत्कालीन सिंहभूम उपायुक्त द्वारा कार्य करने की अनुमति प्रदान की गई थी. सिंहभूम उपायुक्त के पत्रांक 4050 दिनांक 28 जुलाई 1984 द्वारा 69 एकड़ अनाबाद बिहार सरकार की भूमि पर कार्य करने की अनुमति दी गई थी, जिसके बाद से ही चांडिल डैम के विस्थापित परिवारों को बसाने की प्रक्रिया शुरू की गई हैं जो आज भी जारी है. 69 एकड़ भूमि के एवज में सिंचाई विभाग (वर्तमान में जल संसाधन विभाग) ने राजस्व विभाग को ज्ञापंक संख्या 81 के तहत 13 नम्बर 1985 को कुल 4, 2020185 रुपए का भुगतान किया है.
चांडिल अंचल के चिलगु पुर्नवास स्थल समेत जितने भी पुर्नवास स्थल है, वहां की भूमि को अधिग्रहित किया जा चुका है लेकिन समय- समय पर पुर्नवास स्थल के अगल- बगल बसे गांवों के ग्रामीणों द्वारा अपना दावा किया जाता है, लेकिन वास्तविकता में वह अधिग्रहित भूमि फिलहाल सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के अधीन है. बताया जा रहा है कि चिलगु पुर्नवास स्थल पर खाता संख्या 130, प्लॉट संख्या 578 को लेकर इन दिनों हलचल मची हुई हैं. यहां पर बसे हुए विस्थापित डरे सहमे हुए हैं. विस्थापित परिवारों को फिर एक बार उजड़ने का डर सता रहा है. भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, हम नहीं जानते हैं लेकिन इन दिनों चांडिल डैम के विस्थापित अपने नए जल संसाधन मंत्री चंपई सोरेन पर नजर रख रहे हैं कि वह विस्थापितों के पक्ष में हैं अथवा नहीं.
चिलगु पुर्नवास स्थल के विस्थापित परिवारों का कहना है कि उन्होंने चांडिल डैम निर्माण के लिए अपने पूर्वजों की भूमि को औने- पौने दर पर सरकार को दे दी है और जो जमीन घर बनकर रहने के लिए दी गई हैं वहां भी शांति नहीं है. आए दिन अगल- बगल के गांवों के लोग अपनी दावेदारी पेश करते हैं और विस्थापित परिवारों को परेशान करते हैं. यह कोई नया मामला नहीं है कि बीते5 कुछ दिनों से चिलगु पुर्नवास स्थल के जमीन की मापी की जा रही हैं. 30 साल पहले भी इसी तरह से विस्थापित परिवारों को परेशान किया गया था. चिलगु पुर्नवास स्थल के विस्थापित परिवारों ने बताया कि 30 साल पहले जब वे अपने विस्थापित गांवों को छोड़कर चिलगु में रहने आए थे तब चिलगुडीह के ग्रामीण काफी परेशान करते थे. घर निर्माण में बाधा उत्पन्न करते थे और मारपीट करते थे. उस समय विस्थापितों ने वर्ष 1993 में सरायकेला व्यवहार न्यायालय में भी मामला दर्ज कराया था. करीब दस साल तक मामला चलने के बाद कांड संख्या 725/1993 में विस्थापितों के पक्ष में न्यायालय ने फैसला सुनाया था. उक्त मामले में विस्थापितों के पक्ष में सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना की ओर से दस्तावेज पेश किया गया था, जबकि द्वितीय पक्ष कारण हांसदा एवं अन्य ने अपने दावे संबंधित कागजात पेश नहीं कर पाए थे. वर्ष 1984 में विशेष भूअर्जन द्वारा चिलगु में 69 एकड़ अनाबाद बिहार सरकार की भूमि अधिग्रहण करने के बाद उसी प्लॉट नंबर 578 पर कुछ गैर विस्थापित परिवारों को भी बंदोबस्ती पर भूमि दे दी गई थी. हालांकि, न्यायालय में विस्थापितों के पक्ष में फैसला आने के बाद से ही बंदोबस्त धारक चुप थे, लेकिन हाल ही में उन्हें भड़काकर अनुमंडल पदाधिकारी के यहां एक ज्ञापन दिलवाया गया, जिसे आधार बनाकर पीत पत्रकार द्वारा सनसनी फैला दिया गया. फिर क्या था, चांडिल सीओ एक्शन में आ गए और पूरे प्लॉट नंबर 578 की मापी शुरू कर दी है. लेकिन सीओ साहब और जिला प्रशासन के अधिकारी इस बात से अनजान हैं कि इस मामले को लेकर चांडिल डैम के विस्थापित परिवार अपने नए जल संसाधन मंत्री को लेकर क्या सोच रहे हैं. अंदारखाने की माने तो इस प्रकरण की पटकथा सरकार के इशारे पर लिखी गई है जिसका मोहरा सीओ बन रहे हैं. सीओ सरकार के करीबी के रिश्तेदार हैं और स्थानीय विधायक को भी इस साजिश का हिस्सा बनाया गया है.