चांडिल/ Sumangal Kundu चांडिल गोलचक्कर स्थित झारखंड दिशोम बाहा (सरहुल) समिति द्वारा आयोजित दिशोम जाहेरगाढ में शुक्रवार को सरहुल पर्व संपन्न हुआ. यह पर्व आदिवासी संथाल समाज का प्रकृति की उपासना का सबसे बड़ा महापर्व है.
बाहा बोंगा (पूजा) यह पर्व प्रत्येक साल फाल्गुन महीने के बाद पेड़- पौधो में नये फूल और पत्ते उग जाने के पश्चात इस महीने के दस्तक के साथ ही आदिवासियों के संथाल समुदाय में सबसे बड़ा महापर्व ” बाहा बोंगा” महोत्सव की शुरुआत हुई. यह प्रकति के उपासना का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है.
सर्वप्रथम बाहा के प्रथम दिन अविवाहित लड़को द्वारा जाहेरथान में (जाहेर साड़िम दालोब) साल का खूंटा और पुआल का घर बनाया जाता है. दुसरे दिन नायके बाबा गद्र मांझी द्वारा विधिवत रूप से अपने पारंपारिक पोशाक साजो सामान के साथ सखुआ के फूल अर्थात (सारजोम बाहा) के साथ मुर्गा की बलि देकर पूजा अर्चना किया जाता है. साथ ही साथ इष्ट देवता (मारांग बुरू) जाहेर आयो, मोड़े- तुरुई की श्रद्धा के साथ पवित्र (सारजोम बाहा) सखुआ के फूल एंव फूल एंव महुआ की फूल देवी- देवताओं को अर्पित किया गया. इसके बाद सभी देवी देवताओं से प्रार्थना और अराधना की गयी. इस बात की कामना की गयी कि समस्त ग्रामवासी व देशवासी सुख समृद्धि से रहे और गांव में किसी तरह की महामारी ना फैले.
बाहा का अर्थ होता है “फूल” बाहा पूजा में सखुआ फूल (सारजोम बाहा) नायके बाबा द्वारा दिया जाता है. जो महिलाएं अपने माथे के जुड़े पर लगाती है एंव पुरूषो अपने कान पर लगाते हैं.
प्रकृति के पर्व में सखुआ फूल को ही पूर्वजों ने क्यों चुना
मान्यता है कि संसार में कई तरह के अच्छे- अच्छे सुंगधित फूल है. पर सखुआ फूल को ही पूर्वजों ने चुना क्योंकि सखुआ का फूल कभी रंग नहीं बदलता है. साथ ही कभी भी मुर्झाता नहीं है, इसलिए समाज के पूर्वजों ने सखुआ फूल को चुना. इस बाहा पर्व पर सभी महिलाएं व पुरुष हजारों की तादात मे अपने पारंपारिक वेशभूषा पर सुशोभित तरीके से सजे- संवरे थे. इस बार दिशोम बाहा में भारी संख्या में भीड़- भाड़ दिखा. सभी उपस्थित महिलाएं व पुरुष ढोल- मांदर की थाप पर थिरकी. जो देखने में काफी मनमोहक लग रहा था. प्रसाद के तौर पर खिचड़ी का भी खास इंतजाम था और सभी लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया.
युवाओ में दिखी बाहा पर्व को विशेष लगाव
दिशोम बाहा में युवाओं का जोश व जुनून सर चढकर बोल रहा था. युवक- युवतियां ढोल- मांदर और नगाड़ा की थाप पर पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करते दिखे. युवाओं के साथ समाज के प्रबुद्ध लोग भी दिशोम जाहेरथान में आकर पूजा- अर्चना मारा़ग बुरु (ईष्ट -देवता) जाहेर आयो के चरणों में नतमस्तक हुए उनके आशीष के रूप में नायके बाबा के शुभ हाथों सखुआ फूल ग्रहण किये.
जीवन में नई खुशियों का प्रतीक है सखुआ फूल (सारजोम बाहा)
प्रकृति से प्राप्त पवित्र सखुआ (सारजोम बाहा) और महुआ का फूल देवी- देवताओं को पूजा के रूप में अर्पित किया जाता है. बाहा का शाब्दिक अर्थ फूल है. सारजोम बाहा जो खुशियों का प्रतीक है, यह जीवन में सदा हंसने व मुस्कराते रहने का संदेश देता है.
पारंपारिक लिबास में पंहुचे थे महिला- पुरूष
महिला व पुरुष सभी पारंपारिक वेशभूषा में दिशोम बाहा जाहेरथान पंहुचे थे. पारंपरिक वेशभूषा में हजारो- हजार की तादात पंहुचे सभी लोगों ने एक- दूसरे के साथ मिलकर शुभकामनाएं देते नजर आ रहे थे. इस अवसर पर कमिटी के संरक्षक गुरूचरण किस्कू, सह संरक्षक चारू चांद किस्कू, झामुमो नेता सुकराम हेम्ब्रम, अध्यक्ष बुद्धेश्वर मार्डी, उपाध्यक्ष गुरूपद हांसदा, सचिव सुगी हांसदा, कोषाध्यक्ष बैधनाथ टुडू, मांझी बाबा ताराचांद टुडू, प्रेस प्रवक्ता सुदामा हेम्ब्रम, सोमाय टुडू, सुमित टुडू, एसडीपीओ, बीडीओ, सीओ, आदि हजारो लोग उपस्थित थे.