चांडिल : Sumangal kundu (kebu) : चांडिल से ईचागढ़ विधान सभा क्षेत्र के चांडिल बाजार में सन् 1873 के ही दू्र्गा पूजा चली आ रही है. इस पूजा पंडाल की एक खास बात यह है कि एक ही परिवार के वंशज इसके मूर्ती का निर्माण करते आ रहे है. शुरुआत में पश्चिम बंगाल के बाघमुंडी थाना क्षेत्र के चढ़ीदा गांव के सिदाम दत्त द्वारा पहली बार मां दुर्गा का डाकमुकुट प्रतिमा मूर्ति बनाया था. आज के दौर में उसी के वंशज द्वारा चांडिल बाजार में डाकमुकुट मूर्ति बनाया जाता हे. ब्रिटिश कार्यकाल से मां दुर्गा का पूजा अर्चना चांडिल शोलोआना द्वारा चला आ रहा है. उस समय कर्णकुठीर में मां दुर्गा का पूजा अर्चना होती थी. आज के दौर में मां का मंदिर ओडिशा के मंदिर की तर्ज पर बनाया गया जो अलग ही पहचान बनकर उभरा है. इस मंदिर में एक ही परिवार के सूत्रधार कार्य करते आए है और एक ही परिवार के पंडितों द्वारा मां की पूजा-अर्चना करते देखा गया.
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शिशिर कुमार बनर्जी चांडिल समिति
इस मंदिर की स्थापना कार्तिक चंद्र डॉन, प्रतम राय, युगल प्रसाद दारिपा और योगेश्वर मंडल द्वारा सन् 1873 में किया गया था. उस दौरान अंग्रेजों की हुकुमत थी. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के भालुककोचा गांव में सरदीप आदित्य सिंहदेव जमींदार द्वारा प्राचिनकालीन के समय से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना और मां दुर्गा की प्रतिमा डाकमुकुट से बनाया जाता. उस समय से चढ़दा के सूत्रधार द्वारा मूर्ति बनाया जाता था और आज भी उसी वशंज के सूत्रधार कार्य करते हे. इस मंदिर की की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु श्रद्धा पूर्वक मां से मन्नत मांगते हे उसकी मन्नत पूरी हो जाती है. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में करीब 200 जगहों पर मां दुर्गा पूजा पंडाल और मंदिर है.