सरायकेला: सरायकेला में रविवार को भैरव पूजा व परिखंडा के साथ जिला प्रशासन द्वारा आयोजित होने वाले चैत्रपर्व छऊ महोत्सव का शुभारंभ हुआ. स्थानीय भैरवशाल पूजा स्थल पर रविवार को एसडीओ राम कृष्ण कुमार की उपस्थिति में पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार पूजा अर्चना की और परिखंडा के साथ छऊ नृत्य का शुभारंभ किया गया.
इस मौके पर बकरे की पूजा की गई और महा प्रसाद तैयार कर श्रद्धालुओं में वितरण किया गया. एसडीओ राम कृष्ण कुमार ने कहा कि चैत्रपर्व छऊ महोत्सव धार्मिक आस्था एवं पारंपारिक विधाओं से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन द्वारा आयोजित चैत्र पर्व छऊ महोत्सव में सभी धार्मिक एवं पारंपारिक विधायों का पालन किया जाएगा.
एसडीओ ने कहा कि रविवार को भैरव पूजा का आयोजन किया गया. 8 अप्रैल सोमवार को शुभ घट के साथ चड़क पूजा का शुभारंभ होगा. नौ अप्रैल शनिवार को मां झुमकेश्वरी की पूजा की जाएगी. 10 अप्रैल रविवार को यात्रा घट तथा रात्रि में मुख्य पूजा शिवक्ति पूजा एवं आखड़ामाड़ा का आयोजन किया जाएगा. 11 अप्रैल सोमवार को वृंदावनी घट, 12 अप्रैल मंगलवार को गरिया घट, 13 अप्रैल बुधवार को कालिका घट और 14 अप्रैल गुरुवार को पाठ-संक्रांती पूजा का आयोजन किया जाएगा. सरायकेला अनुमंडलाधिकारी राम कृष्ण कुमार, केंद्र के निदेशक गुरु तपन कुमार पटनायक, पद्मश्री पंडित गोपाल दुबे नगर पंचायत उपाध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी, केंद्र के सेवानिवृत्त वरीय अनुदेशक विजय कुमार साहू, कलाकार मनोरंजन साहू, भोला महंती, सुमित महापात्र, दसरा महतो, पाट भोक्ता अनुर्ध्वज पड़िहारी एवं पाट भोक्ता राजकुमार पड़िहारी ने परंपरा अनुसार ढाल और तलवार हाथों में धारण कर भैरव स्थान पर फरिखंडा सामरिक छऊ नृत्य का प्रदर्शन किया. मौके पर केंद्र के निदेशक गुरु तपन कुमार पटनायक ने बताया कि परंपरागत चैत्र पर्व का शुभारंभ शिव और शक्ति की आराधना के साथ की जाती है.
मान्यता है कि कालभैरव अष्टमी वाले दिन भगवान काल भैरव नाथ की उत्पत्ति हुई थी.
शिव से उतपत्ति होने के कारण इनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ और इन्हें अजन्मा माना जाता है. इन्हें काशी के कोतवाल के नाम से भी जाना जाता है और ये अपने भक्त की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. भगवान कालभैरव को शनि का अधिपति देव माना गया है. शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए तथा राहु- केतु से प्राप्त हुई पीड़ा व कष्ट से मुक्ति के लिए भैरव उपासना की जाती है.