बांका/ Ranjan Kumar एक तरफ बिहार सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबों को आवास दिलाने के लिए कृत संकल्पित है व इसकी दशा और दिशा सुधारने का अथक प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. यहां हम बात कर रहे हैं बांका जिले के धोरैया प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में बने उप स्वास्थ्य केंद्र की.
कागजों पर भले उप स्वास्थ्य केंद्र संचालित हो रहा है, मगर भगवान भरोसे. इन स्वास्थ्य केंद्रों में न डॉक्टरों की तैनाती है, न दवाईयां उपलब्ध हैं. मजबूरन मरीजों को प्रखंड मुख्यालय का रुख करना पड़ता है. अब इसमें स्वयं प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी दोषी है या फिर स्वास्थ्य विभाग का सिस्टम दोषी है यह कहना बिल्ली के गले में घंटी बांधने वाली कहावत जैसी होगी.
बता दें कि धोरैया प्रखंड के कई पंचायतों में चल रहे उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति काफी दयनीय है. प्रखंड के ज्यादातर उप स्वास्थ्य केंद्र या तो बंद रहता है या फिर एक एएनएम के सहारे इसे छोड़ दिया गया है. जिसके ना आने का समय निश्चित होता है और न जाने का. जब इसकी सूचना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को दिया जाता है, तो उनका कहना होता है कि यहां डॉक्टर की खुद कमी है. उप स्वास्थ्य केंद्र में दो रुपए की एक छोटी सी राशि पर रजिस्टर में नाम दर्ज कर बिना पर्ची के मरीज को दवाइयां मुहईया कराई जाती है. पर्ची मांगने पर वहां उपस्थित स्वास्थ्य कर्मी मरीज को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र धोरैया या फिर सन्हौला जाने की सलाह दे डालते हैं. ऐसे में सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में उप स्वास्थ्य केंद्र का औचित्य रह जाता है इसपर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. धोरैया स्वास्थ्य प्रभारी ने बताया अभी कुछ डॉक्टर ट्रेनिंग में गए हुए हैं इसलिए सीएससी धोरैया में कार्य कर रहे हैं. कुछ दिन में डॉक्टर चले जाएंगे.