औरंगाबाद (दीनानाथ मौआर) एक तरफ जहां युवा सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहे है. वहीं उत्तर प्रदेश के एक युवा किसान ने इन सबसे अलग कृषि के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किया हैं. ऐसे में जिन लोगों को लगता है खेती घाटे का सौदा है उनकी यह धारणा बिहार के औरंगाबाद ज़िले के सदर प्रखंड अंतर्गत यारी गांव पहुंचकर न्यूट्री एग्रो फ्रेश कंपनी में बदल सकती है.
हाल ही उक्त यूनिट का जिला पदाधिकारी सौरभ जोरवाल ने भी स्थलीय निरीक्षण किया है. जिसे
युवा किसान परमानंद सिंह ने अपनी पांच वर्षों की कड़ी मेहनत और क़रीब छह करोड़ की लागत से एक बड़े मशरूम उत्पादन यूनिट के रूप में तैयार किया हैं. आज परमानंद अपनी मेहनत और जुनून से महीने का औसतन 45- 50 एमटी मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं. परमानंद ने नौकरी करने की बजाय अपने व्यवसाई पिता से कुछ अलग हटकर मशरूम के यूनिट की शुरुआत की है.
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बता दें कि परमानंद की प्रारंभिक पढ़ाई औरंगाबाद ज़िला मुख्यालय अंतर्गत सरस्वती शिशु मंदिर से ही हुई है, जबकि पटना स्थित मगध विश्वविद्यालय प्रशाखा से बी.कॉम से स्नातक की हैं. परमानंद ने नौकरी की चिंता किए बिना कृषि के क्षेत्र में नई शुरुआत की है. वैसे वह मूलतः उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के रहने वाले हैं, लेकिन उनका जन्म औरंगाबाद में ही हुआ है. उनके पिता वर्षो पहले यहां व्यवसाय करने के लिहाज़ से आए थे और कई बीघा जमीन यहां उन्होंने ख़रीदे हैं. जिस ज़मीन पर युवा किसान ने न्यूट्री एग्रो फ्रेश नामक कंपनी स्थापीत की हैं. मशरूम की यूनिट स्थापित करने में उनका कई बार हिम्मत जवाब दे गया, लेकिन कहते हैं कि अगर मन में लगन हो तो मंजिल आसान हो जाती है. परमानंद ने भी मन में ठान लिया कि अब बड़े पैमाने पर मशरूम का उत्पादन करना है. इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनकी मेहनत रंग लाई. आज बटन मशरूम से न सिर्फ उनकी अर्थ व्यवस्था को मजबूती मिली है, बल्कि सैकड़ों लोगों को यूनिट से रोजगार भी मुहैया करा रहे है.
इसपर परमानंद ने कहा कि इस मशरूम यूनिट में अब तक 6 करोड़ का इन्वेस्टमेंट हुआ है. मशरूम की खेती के लिए अत्याधुनिक तरीके से बनाए गए टेंपरेचर मेंटेनेंस के साथ- साथ बेहतर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कर रहा हूं जिसमें मानसून के बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं है.
उनने कहा कि इस मशरूम यूनिट में अब तक 6 करोड़ का इन्वेस्टमेंट हुआ है. मशरूम की खेती के लिए अत्याधुनिक तरीके से बनाए गए टेंपरेचर मेंटेनेंस के साथ- साथ बेहतर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कर रहा हूं जिसमें मानसून के बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं है.
आपको बता दें कि इन दिनों बाजार में मशरूम की मांग बढ़ती जा रही है. वर्तमान में इसकी कीमत लगभग 150- 200 प्रति किलो है. इसकी विपणन कलकत्ता, उड़ीसा, टाटा, रांची, बनारस, पटना एवं गया समेत कई अन्य शहरों में किया जा रहा है. स्थानीय स्तर पर ऑनलाइन फ्री होम डिलिवरी के साथ- साथ काफ़ी कम रेट में सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं. 200 ग्राम पैकेट का मार्केट वैल्यू जहां 50 रूपये प्रति पैकेट हैं, वहीं हम 35 रूपये में लोगों के घरों तक फ्रेस मसरूम उपलब्ध करा रहे हैं. हमारी यूनिट में तैयार मशरूम की गुणवत्ता काफ़ी अच्छी हैं. इसलिए मांग भी अच्छा हैं. वे अपने इस व्यवसाय को और बड़ा करना चाहते हैं, ताकि स्थानीय स्तर पर अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार मिल सके.
सहयोग के मामले में परमानंद ने कहा कि पंजाब नेशनल बैंक से मदद मिला हैं. इसके अलावा अब तक जिला उद्यान कार्यालय औरंगाबाद के द्वारा 500 प्लास्टिक कैरेट यूनिट को मिले है, ताकि विपणन एवं भंडारण सुविधाजनक हो सके. ऐसे में उन्होंने सरकार से विद्युत बिल के संबध में कहा कि अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में विद्युत का भुगतान अधिक करना पड़ता है. जहां अन्य राज्यों में क़रीब 25- 50 पैसा ख़र्च पड़ता हैं, वहीं बिहार में 8.50 रूपये पड़ता है. यह हम जैसे कई व्यव्साईयों के लिए यह बड़ी चुनौती है. इसके बावजूद हमने बड़े पैमाने पर मशरूम उत्पादन का बीड़ा उठाया है. ऐसे में सरकार से हमारी मांग हैं, कि इस समस्या का समाधान करें ताकि अधिक से अधिक लोग इस कार्य से जुड़े और अपना व्यवसाय खड़ा कर सके.
प्रशिक्षण
किसानों के लिए नि:शुल्क प्रशिक्षण की व्यवस्था है, जबकि अन्य इच्छुक लोगों के लिए सरकार की तरफ़ से मामूली भुगतान के साथ प्रदान किया जाएगा, ताकि यह भुगतान उनके फूडिंग और लॉजिंग में काम आ सके.
विचार
किसी भी नए कार्य को करने के लिए अच्छे मार्गदर्शन और ज़रूरी जानकारी अहम हैं. जहां तक मशरूम का उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है. वहीं मशरूम सेहत का रखवाला है, इसलिए मांग बढ़ रही है, पर आपूर्ति उतनी नहीं हो पा रही हैं. ऐसे में यह व्यवसाय फायदे का सौदा है. मशरूम की खेती को छोटी जगह और कम लागत में भी शुरू किया जा सकता है और लागत की तुलना में मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है. बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार के नजरिए से भी यह सेक्टर फायदेमंद साबित हो सकता है. आमतौर पर ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए शैक्षिक ज्ञान और आयु सीमा संबंधी कोई बाध्यता नहीं होती, लेकिन मशरूम की खेती बड़े वैज्ञानिक तरीके से की जाती है.
बाईट
परमानंद सिंह (युवा किसान)
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