खबरिया चैनल न्यूज़ 11 भारत के मालिक अरूप चटर्जी को धनबाद पुलिस ने बीती रात राजधानी रांची के गोंदा थाना अंतर्गत रातू रोड चांदनी चौक के समीप स्थित एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार कर अपने साथ पूछताछ के लिए ले गई है. अरूप चटर्जी के खिलाफ धनबाद के गोविंदपुर थाने में उद्यमी राकेश कुमार ने भयादोहन और रंगदारी का मामला दर्ज कराया है.
कौन हैं राकेश कुमार
राकेश कुमार बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के दामाद हैं. वे एक कारोबारी है और उनकी फैक्ट्री धनबाद के गोविंदपुर थाना अंतर्गत ईस्ट इंडिया मोड़ के समीप जीटी रोड पर स्थित है. उन्होंने अरूप चटर्जी पर अपने रिपोर्टर के माध्यम से खबर के एवज में 11 लाख रुपए मांगने, नहीं देने पर बर्बाद कर देने का आरोप लगाया है.
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गोविंदपुर थाने में दर्ज एफआईआर में राकेश कुमार ने इस बात का भी जिक्र किया है कि उनकी फैक्ट्री के समीप रहने वाले परमेश्वर राय उर्फ मैनेजर राय के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज के आधार पर अरूप चटर्जी उन्हें ब्लैकमेल किया करता था.
अरूप चटर्जी अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर उनकी फैक्ट्री में खनन विभाग का रेड भी कराया, जो मामला अभी कोर्ट में लंबित है. उसी सीसीटीवी फुटेज के आधार पर अरूप चटर्जी मुझे और मेरे परिवार को ब्लैकमेल करता था. इस बात का भी जिक्र किया है, कि अगर उसके द्वारा मांगे गए पैसे उसे नहीं दिए गए तो वह उनके श्वसुर यानी बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को भी बदनाम कर देगा. इस संबंध में सारे साक्ष्य और वीडियो फुटेज उन्होंने थाना और न्यायालय को समर्पित किया. जिसके बाद कोर्ट ने संज्ञान लिया और अरूप चटर्जी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निर्गत करते हुए पुलिस को गिरफ्तार करने का आदेश दिया उसी आलोक में यह कार्रवाई हुई है.
क्या सरकारी रसूख का लाभ मिलेगा अरूप चटर्जी को ?
धनबाद से मामूली रिपोर्टर की हैसियत से पत्रकारिता शुरू करने वाले अरूप चटर्जी देखते ही देखते अरबपति बन गए आखिर कैसे ? कौन है उनका गॉडफादर ? किसने अरूप चटर्जी को फंडिंग किया ? क्या इसकी जांच होगी ? जब जिसकी सत्ता रही तब अरूप चटर्जी उसके साथ हाथ मिलाकर अधिकारियों का भया दोहन कर जैसे चाहा वैसे अपना काम निकाला. अपने रिपोर्टरों को ढाल बनाकर अकूत संपत्ति अर्जित की. यहां तक की कई जगह अपने पिता के नाम में भी हेरफेर की. कई मामले राज्य के अलग-अलग जिलों में अरूप चटर्जी के खिलाफ दर्ज हैं. मगर अब तक राजनीतिक सरपरस्ती के कारण अरूप चटर्जी पर कोई हाथ डालने की हिमाकत नहीं जुटा सका.
भला हो राकेश कुमार का जिन्होंने हिम्मत जुटाई. अब देखना यह दिलचस्प होगा, कि अरूप चटर्जी के काले साम्राज्य की खुदाई होती है, या लीपापोती कर क्लीन चिट मिल जाता है. मगर जिस तरह से उनकी गिरफ्तारी हुई है, उससे लगता है कि अब अरूप चटर्जी के पापों का घड़ा फूट चुका है.
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