औरंगाबाद/Dinanath Mouar सदर अस्पताल पिटाई, मौत पर मौत, धरना और भाजपा- राजद के नेताओं की एंट्री से राजनीति का अखाड़ा बना है. गौरतलब है कि 25 मार्च को सदर प्रखंड के फेसर थाना क्षेत्र में बाकन गांव के पास ट्रैक्टर के अनियंत्रित होकर पलटने से बघोई खुर्द निवासी विनय सिंह(40वर्ष) की मौत हुई थी और साथ में रहा मृतक का पुत्र रौशन कुमार(16वर्ष) गंभीर रूप से घायल हुआ था.
हादसे के बाद उसे इलाज के लिए सदर अस्पताल लाया गया था. यहां पर आरोप है कि अस्पताल में इलाज में लापरवाही बरती गई और इलाज के अभाव में रौशन की मौत हो गई. उस वक्त इस मामले में स्थानीय बीजेपी सांसद सुशील कुमार सिंह की एंट्री हुई थी क्योकि परिजनों ने इलाज में लापरवाही की शिकायत सांसद से की थी. सांसद ने शिकायत पर संज्ञान लिया और वे भाजपा के जिलाध्यक्ष और मुखिया प्रतिनिधि अमरीश सिंह के साथ अस्पताल पहुंचे. स्थिति की जानकारी ली. सिविल सर्जन, अस्पताल के उपाधीक्षक, अस्पताल के प्रबंधक और डॉक्टर की उपस्थित नही रहने की शिकायत से सांसद ने जिलाधिकारी सौरभ जोरवाल को अवगत कराया.
सांसद के अनुसार उनके सदर अस्पताल पहुंचने के 20 मिनट बाद सिविल सर्जन और उपाधीक्षक अस्पताल पहुंचे तब उन्होने पूछा कि इलाज में लापरवाही क्यों बरती गई और आप उस समय कहां थे. सिविल सर्जन ने कहा कि मैं और अस्पताल उपाधीक्षक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चल रही मीटिंग में थे. इसपर सांसद ने कहा कि इमरजेंसी केस में इलाज जरूरी है या पहले मीटिंग. यह सब चल ही रहा था कि उधर घायल की मौत हो गई और परिजन उग्र हो उठे और उनके द्वारा अस्पताल के लिपिक संजय कुमार की पिटाई कर दी गई. यहां पर बात किसी तरह समाप्त हुई. मामला पुलिस तक भी पहुंचा. अब इस घटना के तीन दिन बाद 28 मार्च को सदर अस्पताल के डॉक्टर एवं चिकित्सा कर्मी तीन सूत्री मांगों को लेकर धरना पर बैठ गये. 24 घंटे के अंदर लिपिक को पीटने वालों की गिरफ्तारी की मांग की. धरना में राजद नेताओं ने भी एंट्री मारी. उनके द्वारा आरोप लगाया गया कि लिपिक की पिटाई सांसद की मौजूदगी में और उनके उकसावे पर हुई है. सांसद पर आरोप लगाये जाने के बाद ही सदर अस्पताल की व्यवस्था- कुव्यवस्था को लेकर अब राजनीति हो रही है. इस राजनीति में पहली मौत के बाद धरना के दिन भी अस्पताल में हुई एक मौत के लिए सदर अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है. दोनों ही मौत को लेकर सांसद की ओर से भाजपा के जिला मीडिया प्रभारी मितेंद्र सिंह ने मोर्चा खोला है.
मितेन्द्र ने कहा कि सदर अस्पताल में एक रोस्टर में दो डॉक्टरो की ड्यूटी रहती है. पहली मौत के दिन उस समय मात्र एक डॉक्टर ही ड्यूटी में थे. आरोप लगाया कि सिविल सर्जन और सदर अस्पताल के उपाधीक्षक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में नही थे, बल्कि कही और थे. कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कौन- कौन लोग थे, इसकी भी जांच होनी चाहिए कि यह झूठ बोल रहे है या सच. कहा कि अस्पताल कर्मियों के 28 मार्च को सुबह 9 बजे से धरना पर बैठ जाने से अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई. धरना और इमरजेंसी में व्यवस्था नही रहने के कारण नबीनगर प्रखंड के कालापहाड़ निवासी अशोक कुमार सिंह की इलाज के अभाव में अस्पताल में आधे घंटे तक तड़पने के बाद दोपहर 2:40 पर मौत हो गई और कर्मी धरना पर बैठे रहे और इलाज नही किया गया. यह मौत का दूसरा मामला हुआ.
मितेंद्र ने कहा कि मैं यह मांग करता हूं कि मौत की इस दूसरी घटना की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए. कहा कि अशोक कुमार सिंह की मृत्यु के जिम्मेवार धरना पर बैठे राजद के नेता, सिविल सर्जन, अस्पताल उपाधीक्षक, अस्पताल प्रबंधक और स्वास्थ्य कर्मी है. इन सभी पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए और जल्द से जल्द गिरफ्तारी होनी चाहिए. मृत परिवार के सदस्यों को 50 लाख रुपये का मुआवजा मिलना चाहिए. कहा कि धरना की सूचना वरीय पदाधिकारी को दी गई थी कि नहीं यह भी जांच का विषय है. अगर सूचना वरीय पदाधिकारी को दी गई थी तो सिविल सर्जन, अस्पताल उपाधीक्षक और अस्पताल प्रबंधक के द्वारा इमरजेंसी के लिए पर्याप्त व्यवस्था क्यों नहीं की गई. मितेंद्र ने यह भी कहा कि राजद नेताओं द्वारा धरना में सांसद पर जो आरोप लगाए गए हैं, वह बिल्कुल गलत है. इसकी जांच अस्पताल के वीडियो फुटेज से हो जाएगी.
दरअसल राजद के नेताओं द्वारा सांसद के खिलफ षड्यंत्र किया जा रहा है. राजद के नेता अपने सरकार और बिहार सरकार के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव की नाकामयाबी को छिपाने के लिए धरना पर बैठे हुए थे. आए दिन हमेशा इस तरह की लापरवाही सदर अस्पताल में देखने को मिलती है और इलाज के अभाव में लोगों की मौत होती है. बहरहाल देखना यह है कि आगे यह मामला क्या रंग लेता है.
Reporter for Industrial Area Adityapur