आदित्यपुर: सरायकेला- खरसावां जिला के आदित्यपुर स्थित श्रीनाथ विश्व विद्यालय में पांचवें श्रीनाथ हिन्दी महोत्सव के दूसरे दिन का प्रारम्भ जनजातीय मामलों के केंद्रीय अर्जुन मुंडा द्वारा दीप प्रज्वलित कर हुआ.
स्वागत भाषण विश्वविद्यालय के सलाहकार कौशिक मिश्रा ने दिया. उन्होंने कहा कि महोत्सव के आयोजन से हमें गर्व और हर्ष की अनुभूति हो रही है. श्रीनाथ हिंदी महोत्सव में कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है यह प्रतियोगिताएं बच्चों की दक्षता को बढ़ाएगा.
वहीं केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि आज श्रीनाथ विश्व विद्यालय में पांचवें श्रीनाथ हिंदी महोत्सव का आयोजन हो रहा है, और मुझे इसमें सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ है. उन्होंने महोत्सव में उपस्थित संस्थापक शम्भु महतो, संध्या महतो, सभी शिक्षकों, श्रीनाथ विश्व विद्यालय के सभी सदस्यों एवं विद्यार्थियों का का अभिनन्दन करते हुए उन्हें इस महोत्सव के लिए शुभकामनाएं दीं. श्री मुंडा ने आगे कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है. हम इस महोत्सव के माध्यम से हिंदी भाषा के उदगम और विकास के बारे में और अधिक समझ सकेंगे साथ ही इसके स्वाद का अनुभव और अधिक गहराई से कर पाएंगे. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भाषा ज्ञान का द्वार है, क्योंकि इसी के माध्यम से हम अपने मन में उभरते विचारों को प्रकट करते है. उन्होंने महोत्सव की सराहना करते हुए कहा, कि मुझे यह देख बहुत खुशी हो रही है, कि विश्व विद्यालय इस क्षेत्र में काम कर रहा है.
साथ ही यह भाषा के प्रति समरसता का भाव प्रस्तुत कर रहा है. अपने वक्तव्य में श्री मुंडा ने कहा, कि भाषा और साहित्य को हमारे पूर्वजों ने हमें निधि के रूप में दिया है और निधि तब सुरक्षित और व्यवस्थित रहती है, जब समाज के माध्यम से प्रयास किया जाता है. हमारी भाषा में सरसता है, मिठास है और इसे हम तारतम्यता के साथ जोड़ते हुए नई श्रृंखला नया सोपान तैयार कर सकते है. भाषाओं के अनुवाद करने पर कभी- कभी उसका मूल भाव समाप्त हो जाता है. हमारे पूर्वजों कि दी हुई निधि में हमे और जोड़ने का कार्य करते रहना चाहिए. हिंदी एक समृद्ध भाषा है और हमें इस पर गर्व करना चाहिए, उन्होंने अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का जिक्र करते हुए कहा, कि हमारे प्रधानमंत्री जी भी हिंदी भाषा पर बहुत अधिक जोर देते है. श्री मुंडा ने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा, कि हमे हमेशा समय का सदुपयोग करना चाहिए क्योंकि समय के सदुपयोग से आंनद की अनुभूति होती है, क्योंकि आंनद बाजारों में नहीं मिलता है यह तो स्पंदन और भावों की अभिव्यक्ति से प्राप्त होता है. आज के पहले वक्ता विभूति नारायण राय थे, जो अवकाश प्राप्त आईपीएस अधिकारी है, साथ ही वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति भी है. उनके वक्तव्य का विषय “साहित्य क्यों” था. उन्होंने अपनी बात आरम्भ विश्वविद्यालय को शुभकामना देते हुए किया. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, कि हिंदी के लिए आज के समय में ऐसा आयोजन देखना एक बड़ी बात है. एक समय था जब आजादी की लड़ाई में हिंदी एक औजार की तरह काम करती थी. आज मेरे वक्तव्य का विषय है “साहित्य क्यों” साहित्य हमें मनुष्य बनती है. यदि हम अपने जीवन से प्रेम, आस्था और सहानुभूति को समाप्त कर दें तो जीवन का अर्थ समाप्त हो जाएगा. इसे बनाए रखने के लिए साहित्य अपना योगदान देती है. आज की दूसरी वक्ता श्रीमती वंदना राग थी जो उपन्यासकार एवं अनुवादक है. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, कि हम संस्कृति को क्या समझते है, क्या नाच- गाना तक ही सीमित है, पर ऐसा नहीं है. नाच- गाना तो इसका एक भाग है, इसमें तो खान- पान, परिधान, धार्मिक तथा दूसरी विचारधारा भी संस्कृति में सम्मिलित है. इतिहास में जाएं, तो संस्कृति का व्यापक रूप पाते है. झारखंड में कई लोककलाएं है और लोककलाएं भी संस्कृति का एक भाग है. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वंदना राग ने कहा, कि हमारे यहां विवाह, जन्मोत्सव आदि अवसरों पर भी संस्कृति दिखती है. संस्कृति समय के साथ स्वयं को परिष्कृत और परिमार्जित करती है. आज होने वाली प्रतियोगिताएं विज्ञापन रचना, कुर्ते पर चित्रकारी, मुहावरे से मुहावरे तक, शब्द संयोजन, लिखो कहानी, वाक् चातुर्य, प्रतीक चिह्न निर्माण थी. साथ ही प्रश्नोत्तरी का अंतिम चरण भी सम्पन्न हुआ.